हरिद्वार का नाम आते ही, मन प्रफुल्लित हो जाता हैं क्योंकि यह केवल एक नगर ही नही हैं बल्कि हिन्दू धर्म और सनातन संस्कृति की पहचान भी हैं।
वैसे तो भारत में अनेक धार्मिक महत्व के नगर या स्थल हैं, परन्तु हरिद्वार की गाथा सबसे अलग हैं। इस नगर का उल्लेख जहाँ एक तरफ द्वापरयुग में मिलता हैं, तो दूसरी ओर इसका सम्बन्ध त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु और महेश) से भी हैं।
पुराणों के अनुसार और महाभारत में हरिद्वार का प्राचीन नाम "गंगाद्वार" "मायापुरी" या फिर "मायाक्षेत्र" नाम मिलता हैं।
हरिद्वार अनेक ऋषियों की तपस्थली रही हैं, तो यहाँ गंगा नदी के किनारे बने प्रत्येक घाट की अपनी अलग ही कहानी हैं।
एक तरफ हरिद्वार को मंदिरो का शहर कहते हैं, तो दूसरी तरफ इसे तप और साधना का प्रमुख केंद्र भी माना गया हैं।
हरिद्वार की वर्तमान स्थिति
हरिद्वार शहर, देवभूमि उत्तराखंड राज्य में स्थित प्रमुख भूमि या नगर हैं, जो गंगा नदी के पावन तट पर बसा हुआ हैं। यह उत्तराखंड राज्य का प्रमुख व्यापारिक केंद्र के साथ ही सनातन धर्म का प्रमुख आध्यात्मिक केंद्र भी हैं।
आज हम आपको हरिद्वार का दर्शन भी करायेंगे तो दूसरी तरफ इसके इतिहास से लेकर दर्शनीय स्थलों के महत्व पर भी चर्चा करेंगे बस आप हमारे साथ इस लेख में बने रहिये और मेरे साथ हरिद्वार को घूम कर भी आइये।
सर्वप्रथम हम हरिद्वार के पांच प्रमुख और अद्वितीय तथ्य पर एक नज़र डालें तो आप पाएंगे कि यह-
- पौराणिक कथा
- प्रसिद्ध आश्रम
- महाकुंभ / कुंभ मेला
- प्रसिद्ध मंदिर
- हर की पौड़ी और अन्य घाट
के लिए विश्व प्रसिद्ध हैं। आज के लेख में चरण बद्ध सभी तथ्यों पर विधिवत चर्चा करेंगे। सबसे पहले मैं आपको एक बात बता दे कि हरिद्वार तीन अन्य बातों के लिए भी प्रसिद्ध हैं-
हरिद्वार तीर्थ स्थल घोषित हैं
हरिद्वार हिन्दू आस्था का पवित्र केंद्र हैं, जिसे तीर्थ नगरी के रूप में घोषित किया गया हैं।
यहाँ पर नगर के अंदर आपको कोई भी एल्कोहल यानी लिकर अर्थात मधुशाला की दुकान नही मिलेगी। यह क्षेत्र इसके लिए पूरी तरह प्रतिबंधित हैं।
यहाँ आपको मांसाहारी (Non-Veg) भोजन या उससे संबंधित भोजनालय या कच्चे मांस की बिक्री दुकान नही मिलेगी। यह भी पूरी तरह से प्रतिबंधित हैं।
यहाँ पर प्लास्टिक बैग पूरी तरह से बैन हैं। आप इस नगर में प्लास्टिक या प्लास्टिक से बने कैरी बैग का प्रयोग सार्वजनिक क्षेत्रों में नही कर सकते हैं। यह भी पूरी तरह से प्रतिबंधित हैं।
हरिद्वार से गंगा नदी मैदानी क्षेत्र को बहती हैं
हरिद्वार से आगे लगभग 100 Km की दूरी पर स्थित देवप्रयाग से अलकनंदा नदी और भागीरथी नदी के संगम की संयुक्त धारा गंगा नदी के नाम से जानी जाती हैं।
ऋषिकेश के रास्ते प्रवाहित हो कर हरिद्वार आती हैं और यही से गंगा नदी मैदानी इलाकों में प्रवेश करके उत्तर प्रदेश में प्रवाहित होती हैं।
इसीलिए हरिद्वार को गंगा नदी का प्रवेश द्वार भी कहते हैं।
उत्तराखंड के चारधाम का प्रवेश द्वार हैं
उत्तराखंड को देवभूमि कहते हैं क्योंकि यही से ऋषिकेश के साथ ही साथ और उत्तराखंड के पंचप्रयाग और चारधाम (छोटा चारधाम) जाने का या यहाँ की यात्रा शुरू करने का प्रारम्भिक स्थल हैं।
चारधाम में शामिल हैं- (क्रमशः)
- यमुनोत्री धाम
- गंगोत्री धाम
- केदारनाथ धाम
- बद्रीनाथ धाम
हरिद्वार कैसे पहुँचे?
हरिद्वार का अपना स्वयं का रेलवे स्टेशन हैं, जो उत्तराखंड के बड़े रेलवे स्टेशनों में से एक हैं। यहाँ आने के लिए भारत के प्रमुख स्थानों से सीधे ट्रेन की सुविधा हैं।
नज़दीकी एयरपोर्ट की बात करे तो उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में जॉली ग्रांट हवाई अड्डा हैं, यह हरिद्वार से मात्र 40 Km की दूरी पर स्थित हैं।
अब बात करें सबसे ज्यादा प्रयोग में आने वाली सुविधा की तो वह सड़क मार्ग हैं। हरिद्वार लगभग सभी जगहों से अच्छे से वेल कनेक्टेड हैं। हरिद्वार में सरकारी बस स्टैंड और रेलवे स्टेशन आमने- सामने हैं।
अगर भारत की राजधानी नई दिल्ली की बात करें तो हरिद्वार से मात्र 210 Km की दूरी पर स्थित हैं।
आप अपने बजट के अनुसार यहाँ पहुँचने का प्लान कर सकते हैं।
प्रमुख नगरों से हरिद्वार की दूरी
- देहरादून से- 50 Km
- ऋषिकेश से- 25 Km
- अल्मोड़ा से- 303 Km
- चोपता से- 181 Km
- रुड़की से- 32 Km
- सहारनपुर से- 85 Km
- लखनऊ से- 501 Km
हरिद्वार में 12 वर्षीय महाकुंभ भी लगता हैं
विश्व के सबसे बड़े मेले में शुमार महाकुम्भ मेला का आयोजन, भारत में क्रमशः हैं-
- उत्तराखंड के हरिद्वार में।
- मध्य प्रदेश के उज्जैन में।
- महाराष्ट्र के नासिक (नाशिक) में।
- उत्तर प्रदेश के प्रयागराज (इलाहाबाद) में।
में प्रत्येक बारह वर्षों में आयोजित होता रहता हैं। अगर आप कुंभ के बारे में विस्तार पूर्वक जानकारी चाहते हैं, तो मेरा लेख "कुंभ मेला- भारत की धार्मिक पहचान" का अवलोकन करें।
बात हरिद्वार की करें तो हर की पौड़ी वाले क्षेत्र में यह मेला लगभग एक माह तक चलता हैं। यहाँ पर प्रयागराज की तरह प्रत्येक 6 वर्षो के बाद अर्द्धकुंभ का भी आयोजन स्थल हरिद्वार हैं।
ऊपर में वर्णित जो चार स्थान हैं, जहाँ पर महाकुंभ का आयोजन होता हैं, उसमें से दो स्थान ऐसे हैं, जहाँ पर द्वादश ज्योतिर्लिंग में से एक-एक ज्योर्तिलिंग स्थित हैं, जो क्रमशः हैं-
- उज्जैन में महाकाल मंदिर।
- नासिक (नाशिक) में त्रयम्बकेश्वर मंदिर।
जबकि वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर, प्रयागराज से मात्र 125 से 130 Km की दूरी पर स्थित ज्योर्तिलिंग हैं।
हरिद्वार किस मौसम में जाएं
वैसे तो आप हरिद्वार वर्ष के किसी भी महीने में जा सकते हैं, लेकिन जून से अगस्त के महीने में जाने से बचे क्योंकि यह महीना गर्मी और बरसात का होता हैं।
वर्षा के मौसम में थोड़ा घूमने का माहौल फीका पड़ जाता हैं इसलिए आप सभी को मेरी यही राय हैं कि सितम्बर माह से लेकर मई माह तक हरिद्वार घूमने का सबसे अच्छा मौसम होता हैं।
हरिद्वार में रुकने के कई सस्ते विकल्प हैं
हरिद्वार में कितनी भी भीड़ क्यों न हो जाये रुकने या ठहरने की कोई भी समस्या नही होगी, बल्कि मैं यह बोलू आपसे की आप किसी भी माह में आये आपको रुकने की कोई दिक्कत नही तो यह शत प्रतिशत सत्य बात हैं।
हरिद्वार एक धार्मिक स्थल में शुमार हैं, तो यहाँ सभी प्रकार के लोग जैसे कि साधु, सन्यासी, विद्यार्थी, श्रद्धालु, देशी और विदेशी सैलानी, व्यापारी वर्ग इत्यादि तो यहाँ सभी को ध्यान में रख कर रुकने की व्यवस्था हैं।
मैं यहाँ रुकने की कई व्यवस्था का वर्णन कर रहा हूँ, जैसे कि धर्मशाला, होटल, लॉज, डॉरमेट्री, होम-स्टे इत्यादि। इनमें से जो आपके बजट में फिट बैठे वह विकल्प चुन लीजिए-
आश्रम
यहाँ हरिद्वार मुख्य शहर के बाहर नगर के समीप और अंदर मुख्य बाजार में, हर की पौड़ी या ऋषिकेश हाई वे जैसे स्थानों पर कई बड़े से छोटे आश्रम बने हुए हैं।
आश्रम में आप फ्री में या मामूली शुल्क दे कर या जितना सामर्थ्य हो दान कर के जितना दिन चाहे रह सकते हैं।
अधिकतर आश्रम चैरिटेबल ट्रस्ट के द्वारा चलाये जाते हैं, जिसके रख- रखाव के लिए शुल्क लिया जाता हैं।
सभी प्रकार के कमरे आपको मिलेंगे जैसे कि सिंगल या डबल, AC और Non-AC, फैमिली के लिए फ्लैट टाइप की सुविधाओं वाले आश्रम बने हैं, सच पूछिये तो इनके आगे अच्छा से अच्छा होटल भी फेल हैं।
धर्मशाला
हरिद्वार में धर्मशाला की भरमार हैं, रेलवे स्टेशन से हर की पौड़ी या हरिद्वार के प्रत्येक जगह आपको छोटे से बड़े धर्मशाला मिल जायेंगे। इनमें आपको कभी भी कमरे मिल जायेंगे।
कमरे का चार्ज 300 रुपये से 500 तक में अच्छी सुविधाओं वाला रूम आपको मिल जायेगा।
फैमिली रूम से लेकर सिंगल और डबल तथा ज्यादा पैसा खर्च न करना चाहे तो 100 रुपये से 150 तक में प्रति बेड डॉरमेट्री की सुविधा मिल जाएगी।
डॉरमेट्री में आपको दिया जायेगा गद्दा, चादर, कम्बल, तकिया, पीने का पानी और कॉमन टॉयलेट।
होटल
हरिद्वार में होटल भी आपको सस्ते से महंगे वाले मिलेंगे बस आपको अपने बजट के अनुरूप ऑनलाइन या ऑफलाइन बुकिंग करनी होगी।
हरिद्वार में आपको होटल या तो रेलवे स्टेशन और सरकारी बस स्टैंड के पास मिलेंगे नही तो अधिकांश होटल हरिद्वार- ऋषिकेश बाईपास पर मिल जायेंगे और आपको यहाँ पार्किंग की भी कोई समस्या नही होगी।
Note- हरिद्वार में रुकने के लिए अन्य विकल्पों में लॉज, होम- स्टे, पेइंग गेस्ट और होस्टलर जैसी सुविधाओं की कोई कमी नही हैं। बस आप अपने सहूलियत और छुट्टी तथा बजट के हिसाब से अपनी बुकिंग कन्फर्म कर लीजिए।
हरिद्वार का खान-पान ज़बरदस्त हैं
आपको पहले ही बता दिया हूँ कि हरिद्वार तीर्थ नगरी घोषित हैं, तो वैसे में Non-Veg की भूल से भी बात मत करियेगा।
यहाँ न तो खाया जाता हैं और न ही बनाया जाता हैं और न ही परोसा जाता हैं।
अब बचे शुद्ध शाकाहारी और वैष्णव खान-पान वाले तो आपको बता दे कि रेस्टोरेंट, ढाबा, स्ट्रीट फूड, जैसे कि तो भरमार हैं।
हर की पौड़ी पर "चोटीवाला रेस्टोरेंट" और "मोहन पूरी वाला" तो पूरे हरिद्वार में फेमस हैं। यहाँ जरूर सेवा का मौका दे।
यहाँ आपको 50 रुपये की थाली से लेकर 300 या 400 तक कि थाली व्यवस्था खाने के लिए मिल जाएगी।
अगर आप लहसुन और प्याज भी नही खाते हैं, मत घबराइये, अपने अगल- बगल देखिए शुद्ध वैष्णव ढाबा भी मिल जाएगा।
Note- कुछ धर्मशाला और आश्रम में खाने- पीने की व्यवस्था भी मिल जायेगी, जो या तो निःशुल्क होती हैं या फिर मामूली सा चार्ज देना पड़ता हैं।
हरिद्वार में कुछ जगहों पर या हर की पौड़ी पर कभी-कभी लंगर या भण्डारा भी देखनो को मिल जाता हैं।
हरिद्वार के दर्शनीय स्थल
यदि आप हरिद्वार की यात्रा पर हैं, तो कम से कम 2 Nights and 3 Days का टूर प्लान बनाइये ताकि हरिद्वार के छोटे से बड़े सभी स्थानों का विजिट किया जा सके और प्रमुख मन्दिर का दर्शन किया जा सके।
लोग मोक्ष प्राप्ति के लिए हरिद्वार आते हैं और मनसा देवी तथा चंडी देवी का दर्शन करके अपने को धन्य करते हैं।
हरिद्वार में घूमने के प्रमुख स्थान-
हर की पौड़ी
यह हरिद्वार का प्रसिद्ध स्थान हैं, जहाँ पर स्वयं श्री हरि अर्थात श्री विष्णु जी प्रकट हुए थे इसलिए इस स्थान का नाम "हरि की पौड़ी" पड़ गया लेकिन बाद में अपभ्रंश के चलते ही यह "हर की पौड़ी" कहलाने लगा।
हरिद्वार आने के बाद सबसे पहले यही श्रद्धालुओं के द्वारा स्नान किया जाता हैं। यह वही स्थान हैं, जहाँ पर-
अमृत की बूंदें गिरी थी जिसके चलते ही इस पवित्र स्थान पर कुंभ मेले का आयोजन किया जाता हैं प्रत्येक 12 वर्षो में।
यह हरिद्वार का प्रमुख घाट हैं, जहाँ पर प्रत्येक सुबह और शाम को गंगा माता की आरती होती हैं और इस समय यहाँ श्रद्धालुओं तथा देश- विदेश से आये हुये सैलानियों की ज़बरदस्त भीड़ होती हैं।
Note- हरिद्वार के हर की पौड़ी पर आपको शंकर जी खड़े अवस्था में प्रतिमा स्थापित हैं जबकि ऋषिकेश में परमार्थ निकेतन के सामने गंगा नदी में ही बैठे अवस्था में शंकर जी की प्रतिमा बनी है।
मनसा देवी मंदिर
हर की पौड़ी से जब आप रेलवे स्टेशन की ओर चलेंगे तो मुश्किल से 50 कदम की दूरी पर दाहिने हाथ की तरफ "मनसा देवी मन्दिर" पैदल यात्रा वाला रास्ता तथा कुछ कदम और चलने पर ही रोप- वे या रज्जू मार्ग या उड़नखटोला मार्ग के लिए द्वार मिलेगा।
मनसा देवी का अर्थ हैं, माता जी मन की मुराद को पूरी करने वाली देवी हैं। यहाँ मन्दिर पर भक्तों के द्वारा अपने मनवांछित फल की प्राप्ति हेतु धागा बांधते हैं और जब भी वो मुराद पूरी हो जाये तो पुनः माता के दर्शन करके धागा को खोलना होता हैं।
Note- आप धागा जब भी बांधते हैं और जब खोलने जाते हैं तो जरूरी नही की वही धागा खोलने को चाहिए, आप उन धागों में से कोई भी खोल सकते हैं।
अब बात कर ले मंदिर पर पहुँचने की तो बता दें कि यह माता भी पहाड़ो वाली हैं यानी माता मनसा देवी का मन्दिर हर की पौड़ी से सटें हुये शिवालिक श्रेणियों की पर्वत में से एक पर विराजमान हैं।
अब नीचे से पहाड़ तक कि दूरी कुल 1.5 Km तक कि हैं, जिसे पैदल मार्ग के द्वारा तथा सीढ़ियों के माध्यम से मन्दिर तक आसानी से पहुँचा जा सकता हैं।
पूरा रास्ता आरामदायक रूप से बनाया गया हैं ताकि आप आसानी से ट्रैकिंग कर सकते हैं।
पर्वत पर पहुँच कर नीचे हरिद्वार का नज़ारा देखने लायक बनता हैं। मन्दिर में वैसे भी बहुत ज्यादा शुकुन हैं। आप माता के दरबार में जाते ही सब कुछ भूल कर भक्ति में रम जाएंगे।
दूसरा विकल्प हैं रोप- वे के माध्यम से हैं, जी हाँ, आप चाहे तो दोनों तरफ का या फिर एक तरफ का टिकट ले सकते हैं तथा कुछ मिनटों में माता के दरबार में पहुँच कर दर्शन कर सकते हैं।
चंडी देवी मंदिर
माता मनसा देवी मंदिर से या हर की पौड़ी से लगभग 6 से 7 Km की दूरी पर स्थित चंडी देवी का मन्दिर भी नील पर्वत पर बना हुआ हैं।
इस मंदिर की पौराणिक कथा भी बहुत रोचक हैं कि शुम्भ और निशुम्भ नामक राक्षसों से जब पृथ्वी में हाहाकार मच गया तब देवी और देवताओं के आग्रह करने पर माता ने चंडी देवी के रूप में प्रकट हो कर इन राक्षसों का वध कर दिया था।
इस मंदिर की धार्मिक यात्रा भी लगभग 2.5 Km से 3 Km तक कि हैं, जिसे आप सीढ़ियों और पैदल के रास्ते पूरा कर सकते हैं, जबकि दूसरा विकल्प के अनुसार आप के लिए सर्वसुलभ-
उड़नखटोला या रज्जू मार्ग या रोप- वे हैं, जिससे आसानी से मन्दिर परिसर में पहुँच सकते हैं। रोप वे का टिकट पहाड़ के नीचे बने काउंटर से लिया जा सकता हैं।
आप चाहे तो सिंगल वे या डबल यानी दोनों तरफ का टिकट ले सकते है, अपनी सुविधा के अनुसार।
बेहतर विकल्प रोप-वे की टिकट के लिये
जब भी आप हरिद्वार जायेंगे दर्शन करने और घूमने तो जाहिर है कि सभी मंदिरों में दर्शन करना जरूर चाहेंगे और उसमें से मनसा देवी मंदिर तथा चंडी देवी मंदिर का रास्ता पहाड़ी हैं अर्थात यह दोनों मन्दिर पर्वत पर स्थित हैं।
ऐसे में आप हर की पौड़ी में स्नान करके मनसा देवी मंदिर का टिकट लेते समय ही चंडी देवी मंदिर का भी कंबाइंड टिकट यानी दोनों मन्दिर के दर्शन करने का दोनों तरफ से यात्रा का टिकट ले ले तो सस्ता भी पड़ेगा
और दोनों मन्दिर के मध्य की दूरी को ले जाने और ले आने का किराया भी इन्ही टिकटों के रेट में ही शामिल हैं। इस प्रकार से कुल टिकट का मिला कर प्रति व्यक्ति 400 तक चार्ज किया जाता हैं, जिसमें-
★ मनसा देवी का दर्शन करना।
★ चंडी देवी का दर्शन करना।
★ दोनों मंदिरों के मध्य की दूरी के लिये आने- जाने का चार्ज।
शांतिकुंज/ गायत्री परिवार
श्री श्रीराम शर्मा आचार्य के द्वारा स्थापित शांतिकुंज मुख्य रूप से गायत्री शक्तिपीठ हैं। यहाँ पर एक गायत्री देवी का मुख्य मंदिर हैं। यही पर एक अखंड द्वीप वर्ष 1926 से लगातर जल रहा हैं।
यहाँ शांतिकुंज परिसर में निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था हैं, और साथ ही साथ विद्यार्थियों को रहने और खाने की सुविधा भी निःशुल्क हैं।
यहाँ पर फूल- पौधों की बागवानी देखने लायक हैं। श्रद्धालु या सैलानी चाहे देशी हो या फिर विदेशी पर्यटक सभी को यह आश्रम अपनी ओर आकर्षित करता हैं।
यहाँ पर सैलानियों के रहने और खाने- पीने का भी अच्छा प्रबंध हैं और इस सुविधा लिए किसी भी प्रकार का चार्ज या शुल्क नही लिया जाता हैं।
यहाँ भी आपको आत्मचिंतन करने के लिए कई कमरे बने हुए हैं, जहाँ बैठ कर घण्टो ध्यान लगाया जा सकता हैं।
ब्रह्मकुंड
यह वही स्थान हैं, जहाँ पर ब्रह्मा जी ने यज्ञ किया था। श्री विष्णु जी ने यही पर प्रकट हो कर भक्तों को दर्शन दिया था।
विष्णु जी का चरण निशान यहाँ पर स्थित हैं, ऐसा यहाँ के स्थानीय लोगो की मान्यता हैं। इसी के चलते यहाँ हमेशा लाखों भक्तों की भीड़ रहती हैं चरण निशान को स्पर्श करने के लिए।
यही ब्रह्मकुंड पर ही गंगा नदी पर्वतीय क्षेत्र को छोड़ कर मैदानी इलाकों में प्रवेश करती हैं।
भारत माता मंदिर
हरिद्वार की पहचान यदि भारत माता मंदिर हैं, तो यह कहना गलत नही हैं। 7 मंजिला बना यह मन्दिर बरबस ही सबका ध्यान अपने ओर खींच लेता हैँ।
इस मंदिर के प्रत्येक तल पर जाने के लिए या तो सीढ़ियों का प्रयोग कर सकते हैं या फिर लिफ्ट के माध्यम से भी आप जा सकते हैं।
यह मन्दिर विभिन्न देवी और देवताओं को समर्पित हैं, जैसे-
- प्रथम तल- इस तल पर भारत के महान शूरवीरों की प्रतिमा स्थापित हैं।
- द्वितीय तल- मातृ शक्ति को निरूपित प्रतिमा स्थापित हैं।
- तृतीय तल- भारत के प्रसिद्ध साधु- संतो को समर्पित हैं।
- चतुर्थ तल- अखण्ड भारत और वर्तमान भारत के राज्यों के बारे में चित्रण।
- पंचम तल- आदि शक्ति दुर्गा माँ के सभी नवों रूपों की स्थापना।
- षष्ठ तल- श्री विष्णु जी के दशावतार का वर्णन हैं।
- सप्तम तल- देवाधिदेव महादेव शिव जी को समर्पित यह मन्दिर अद्धभुत हैं।
Note- उत्तर प्रदेश के वाराणसी में भी सिगरा के पास महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के परिसर में भी अखंड भारत के नक्शे वाला "भारत माता मंदिर" स्थित है।
राजा जी नेशनल पार्क
टाइगर रिजर्व में शामिल राजा जी नेशनल पार्क एडवेंचर के लिए जाना माना स्थान हैं। इसे चिल्ला वाइल्ड लाइफ भी कहते हैं।
यह हरिद्वार से और देहरादून से नज़दीक हैं। इसमें आप जीप सफारी का भी आनंद ले सकते हैं। यहाँ पर आपको जंगली जानवरों में चिता, बाघ, हिरन, जंगली सुअर, हाथी इत्यादि देखने को मिल जायेंगे।
पावन मन्दिर धाम
हरिद्वार से मात्र 5 या 6 Km की दूरी पर बना यह मन्दिर सैलानियों और श्रद्धालुओं के मध्य अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं और आस्था के केंद्र के रूप में विख्यात हैं।
यहाँ लोग ध्यान लगाने के लिए आते हैं, और घण्टो बैठ कर शांत वातावरण का लाभ उठाते हैं।
मन्दिर का आंतरिक साज- सज्जा के निर्माण में कांच का प्रयोग किया गया हैं, तभी तो एक ही मूर्ति या प्रतिमा कई संख्या में दिखाई देती हैं।
माया देवी मंदिर
51 शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ हैं, माया देवी का मन्दिर जो हर की पौड़ी से मात्र 1 Km की दूरी पर स्थित हैं।
यह मन्दिर सती माता (भोलेनाथ शिव जी की पत्नी) को समर्पित हैं। इन्ही देवी के पिता जी थे राजा दक्ष, जिन्होने शिव जी का अपमान कर दिया था, जिसके चलते माता सती ने यज्ञकुंड में कूदकर आत्मदाह कर लिया था।
ध्यान दें, अगर आप हरिद्वार से 143 Km की दूरी पर ऋषिकेश- केदारनाथ धाम हाईवे पर श्रीनगर नामक कस्बे के पास "माँ धारी देवी मन्दिर- 108 शक्तिपीठों में एक शक्तिपीठ हैं" नामक धाम का भी दर्शन कर सकते हैं।
कनखल
हरिद्वार से मात्र 3 से 4 Km की दूरी पर स्थित "कनखल" नाम का छोटा सा कस्बा पवित्र भूमि में अपना अलग पहचान रखता हैं।
जब गंगा नदी की मुख्य धारा से छोटा प्रवाह निकाल कर उसी पर हर की पौड़ी की स्थापना किया गया हैं।
वही धारा आगे चलकर हरिद्वार से दक्षिण में कनखल में पुनः मुख्य धारा में गंगा नदी में मिल जाती हैं और आगे उत्तर प्रदेश को चली जाती हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार श्रीविष्णु भक्त राजा दक्ष ने अपनी यज्ञशाला बनाई थी।
आशा करता हूँ कि आज आपको खूब एन्जॉय किये होंगे लेख को पढ़ कर, तो अब आप की बारी हैं हमें कमेंट करने की तो फटाफट हमें कमेंट्स कर के बताइए कि हरिद्वार आप कब गये हैं? या गये हैं तो अपना अनुभव हमसे साझा करें।
धन्यवाद।
यात्रा का अनुभव साझा करें