किसी भी धार्मिक जगह जैसे की शिरडी के साई बाबा, स्वर्ण मंदिर, अन्य गुरुद्वारा, वैष्णो देवी गुलशन कुमार का लंगर इत्यादि के बारे में तो आपने सुना ही होगा। आज हम इस लेख में जानेंगे लंगर का इतिहास और लंगर क्या होता है?
लंगर का इतिहास
लंगर की व्यवस्था के जनक सिक्ख धर्म के प्रथम गुरु और संस्थापक श्री गुरुनानक देव जी को जाता है, इन्होंने ही 15 वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में लंगर की शुरूवात की थी।
गुरुनानक देव जिनका मानना था कि कोई भी भूखा अपने दरवाजे से नही लौट सकता हैं, इसीलिए लंगर के रूप में सामूहिक रूप से एक जगह बैठ कर ईश्वर का नाम ले कर भोजन रूपी प्रसाद को ग्रहण करने की शुरुआत की।
आगे चलकर सिक्ख धर्म के सभी गुरुओं ने इस लंगर की परम्परा को आगे बढ़ाते रहे और आज लगभग सभी गुरुद्वारा में इसकी यानी लंगर की व्यवस्था हो चुकी हैं।
लंगर शब्द पंजाब से निकला हैं, अर्थात लंगर अधिकतर गुरुद्वारा में मिलता हैं, जो शुद्ध शाकाहारी भोजन की निःशुल्क व्यवस्था हैं।
निःशुल्क का मतलब साफ है कि आपको लंगर में दिया जाने वाला भोजन ग्रहण करने या खाने का कोई भी पैसा नही देना होता हैं।
अगर आप पैसे देकर के भोजन या नाश्ता ग्रहण कर रहे हैं, तो ये व्यवस्था आपकी लंगर नही रेस्टोरेंट या ढाबा या लाइन होटल कहलाती हैं। हज़ारों लोगों की संख्या में व्यक्ति लंगर में पेट भर कर खाते हैं। हाँ किसी- किसी लंगर में सेल्फ सर्विस की व्यवस्था होती हैं।
Self Service यानी भोजन आपको खुद लेना होगा और भोजन ग्रहण करने के बाद अपनी थाली स्वयं ही धोना पड़ता हैं। जबकि बहुत से लंगर में पांत में एक साथ बैठ कर सैकड़ो की संख्या में लोग भोजन ग्रहण करते हैं।
चूंकि लंगर की व्यवस्था अधिकतर सिक्ख धर्म में तथा गुरुद्वारा में चलता हैं, जहाँ किसी भी धर्म के लोग आकर भोजन या नाश्ता को ग्रहण कर सकता हैं।
लंगर की व्यवस्था जाति धर्म से ऊपर उठ कर की जाती हैं, जहाँ लोग निःस्वार्थ भाव से श्रमदान करते हुये लंगर को चलाते हैं। भोजन या नाश्ता के दौरान किसी भी व्यक्ति से कोई भी शुल्क नही लिया जाता हैं, अर्थात निःशुल्क होती हैं सारी व्यवस्था।
भारत का सबसे बड़ा लंगर संचालन
भारत के कुछ प्रमुख धार्मिक स्थल हैं जहाँ बड़े स्तर पर लंगर का संचालन किया जाता है, जहाँ रोजाना लाखो की संख्या में श्रद्धालु प्रसाद ग्रहण करते हैं। उन लंगरों के नाम निम्नलिखित है।
अमृतसर गुरुद्वारा
अमृतसर में गोल्डन टेम्पल ( स्वर्ण मंदिर) भारत में ही नही अपितु पूरे विश्व में सबसे बड़ा लंगर का संचालन किया जाता हैं।
यह सिक्ख धर्म को समर्पित व्यवस्था हैं, परन्तु किसी भी धर्म के लोगो को भोजन ग्रहण करने को मनाही नही हैं।
यहाँ के भोजनालय में कई सिक्ख महिलाओं का समूह भोजन बनाने में लगा होता हैं। यहाँ एक साथ हज़ारों रोटियां बड़े से तवा पर बनाई जाती हैं।
दिन भर लंगर चलता रहता हैं, प्रतिदिन लाखों श्रद्धालु यहाँ गुरुद्वारा में माथा टेक कर लंगर में प्रसाद रूपी भोजन को ग्रहण करते हैं।
कुछ भक्त अपना कीमती समय निकाल कर श्रमदान भी करते हैं, और भोजनालय में भोजन बनवाने में सहयोग करते हैं।
जो भी भक्त या श्रद्धालु रुपया और पैसा से सक्षम हैं, वह लोग धन से भी सहयोग करते हैं।
वैसे भारत में कई गुरुद्वारा हैं जैसे कि- नांदेड़, पटना साहिब, ऋषिकेश, नैनीताल, भटिंडा, जालंधर, लुधियाना, चंडीगढ़ और पंजाब के कई शहरों में गुरुद्वारा स्थित हैं, जहाँ पर लंगर की व्यवस्था हैं।
श्री वैष्णों माता मंदिर, कटरा जम्मू
यहाँ पर आप जब भी वैष्णों देवी के दर्शन करने के लिये अपनी यात्रा शुरू करते हैं अर्थात धार्मिक या आध्यात्मिक ट्रैकिंग की शुरुआत करते हैं (आप सरल शब्दों में केवल ट्रैकिंग भी कह सकते हैं)
तो शुरुआत में ही बाणगंगा में ही एक लंगर की व्यवस्था की गई हैं T- Series म्यूजिक कम्पनी के द्वारा इसका देख- रेख किया जाता हैं।
यहाँ पर प्रतिदिन हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं के द्वारा भोजन ग्रहण किया जाता हैं।
श्री साईं बाबा शिर्डी प्रसादालय
महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में साईं बाबा समाधि स्थल मन्दिर स्थित हैं, जहाँ मन्दिर से लगभग 1.5 Km की दूरी पर बने प्रसादालय में प्रतिदिन लाखो श्रद्धालुओं के द्वारा भोजन ग्रहण किया जाता हैं।
यहाँ एक बार में 10000 से भी अधिक लोगो को एक साथ बैठ कर प्रसाद रूपी भोजन ग्रहण करने की सुविधा उपलब्ध हैं।
हाँ इतना जरूर हैं कि कभी- कभी मामूली शुल्क भोजन के लिए लिया जाता हैं नही तो अधिकांशतः कोई न कोई भक्त अपने दान के माध्यम से प्रसादालय की पूरी व्यवस्था देखता रहता है।
शिरडी से लगभग 70 Km की दूरी पर प्रसिद्ध शनि देव मन्दिर शनिशिंगणापुर स्थित हैं, तो वही दूसरी तरफ लगभग 85 Km की दूरी पर प्राचीन नगर नाशिक गोदावरी नदी के किनारे बसा हैं, जहाँ पर 12 वर्षो वाला महाकुंभ लगता हैं।
श्री जगन्नाथ मंदिर पुरी की खिचड़ी
ओडिसा राज्य के पूरी जो समुन्द्र के किनारे बसा हुआ हैं पर आदिगुरु शंकराचार्य जी के द्वारा स्थापित किये चार धाम में से एक धाम हैं-
जगन्नाथपुरी मन्दिर जहाँ का मुख्य प्रसाद मन्दिर में भोग लगाने के बाद सभी श्रद्धालुओं में वितरित किया जाता हैं।
इस खिचड़ी रूपी महाप्रसाद को प्रतिदिन लाखों श्रद्धालुओं या दर्शनार्थियों के द्वारा ग्रहण किया जाता हैं।
यह मन्दिर श्रीकृष्ण, बलराम और सुभद्रा के लिए प्रसिद्ध हैं। इस मन्दिर के साथ ही शंकराचार्य जी के द्वारा बद्रीनाथ, श्रृंगेरी मठ और द्वारका भी स्थापित किया गया था। द्वारकाधीश अर्थात द्वारका तो श्रीकृष्ण की राजधानी थी।
मानव धर्म प्रसार आश्रम बयेपुर गाज़ीपुर
यह आश्रम उत्तर प्रदेश के गाज़ीपुर जिला में स्थित श्री गंगा रामदास बाबा जी के इस आश्रम में आज भी दोपहर और रात्रि को भोजनालय में सैकड़ों लोगों का भोजन बनता हैं और प्रसाद के रूप में प्रतिदिन वितरण किया जाता हैं।
Note- भारत में ऐसे कई धर्मशाला या रुकने के स्थान हैं, जहाँ लंगर की भी व्यवस्था साथ- साथ चलती हैं, यानी रहना और खाना दोनों ही पूरी तरह से निःशुल्क, इसे ही "Lodging and Fooding Free" कहते हैं।
परंतु होटल या मोटल के साथ ही रेस्टोरेंट या ढाबा में रुकने और खाने की व्यवस्था के लिए निर्धारित शुल्क देना पड़ता है।
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