जिस प्रकार से आप घूमने के शौकीन हैं, तो भारत दर्शन से अच्छा कोई पर्यटन नही हैं।
ठीक उसी प्रकार से यदि आप लज़ीज व्यंजन के शौकीन हैं, तो यकीन मानिये भारतीय व्यंजन से अच्छा कोई व्यंजन नही हैं।
और जब बात आती हैं जल्दी से जल्दी बना कर खाया जाये तो याद रहे कि लिट्टी-चोखा या बाटी-चोखा से अच्छा कोई व्यंजन नही, जी हाँ दोस्तो,
मिल बाँट कर बनाया जाये और मिल बाँट कर खाया जाये जिससे आपसी रिश्ते मजबूत और प्रेम बढ़े, तो लिट्टी-चोखा से अच्छा कोई विकल्प नही हो सकता हैं।
चाहे ग्रामीण क्षेत्र हो या शहरी तथा शादी विवाह हो या फिर कोई दावत जहाँ आज कल लिट्टी-चोखा नही बने तो पूरा व्यंजन का मीनू अधूरा हैं।
यह ऐसा लज़ीज देशी व्यंजन हैं, जिसे "मेज़बान" और "मेहमान" दोनों साथ मिलकर बनाते हैं और खाते हैं।
भारतीय व्यंजन के कई रूप हैं
भारत के व्यजंन अपने-अपने क्षेत्रों के अलग-अलग हैं, जैसे कि हम दक्षिण भारतीय व्यंजन की बात करे तो जुबान पर उत्तपम, इडली- बड़ा, सांभर-बड़ा, डोसा का नाम आता हैं,
वैसे ही उत्तर भारतीयों का वह भी स्पेशली पूर्वी उत्तर प्रदेश, झारखंड और बिहार में विश्व प्रसिद्ध लिट्टी-चोखा या बाटी-चोखा हैं, जिसका स्वाद आज देश ही नही विदेश तक फैल चुका हैं।
अगर मैं ये बात बोलू की जब तीन दोस्त एक साथ बैठकर ( सोलो यात्री मैं, आप और tripghumo) किसी भी पर्यटक स्थल या भारतीय संस्कृति के साथ ही पकवान संस्कृति पर चर्चा करते हैं, तो यकीन मानिये परिणाम सकारात्मक मिलेगा यानी आपकी और हमारी जानकारी भी बढ़ेगी और साथ में अनुभव मिलेगा।
आज का लेख "बाटी-चोखा" पर हैं, जो हम भारतीयों की पहचान भी हैं। भारत में इसे "लिट्टी-चोखा" के नाम से भी जानते हैं।
बाटी-चोखा का इतिहास
बाटी-चोखा या लिट्टी-चोखा का इतिहास अतिप्राचीन हैं यानी बात करें कि जब भारत में मगध साम्राज्य के मौर्य वंश के राजा चंद्रगुप्त मौर्य का शासन था तो युद्ध में वह जब भी महल से बाहर रहते थे, तो अपने साथ पूरी सेना को लिट्टी-चोखा को ही भोजन के रूप में ग्रहण करते थे।
आज यब मगध का क्षेत्र आधुनिक रूप में अपना बिहार राज्य हैं, जहाँ की धरती से इतना स्वादिष्ट व्यंजन का जन्म हुआ है।
इसके बाद 1857 की क्रांति के समय में भी स्वतंत्रता सेनानियों के द्वारा और झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के युद्ध के दौरान सभी के साथ मिलकर लिट्टी-चोखा खाने का साक्ष्य मिलता हैं।
आधुनिक समय में यानी 18 शताब्दी में मुगलों और अंग्रेजी हुकूमत के समय भी लिट्टी को मांसाहारी बना कर और चिकन के साथ खाने की परंपरा शुरू हुई थी।
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बाटी-चोखा कितने प्रकार से बनता हैं?
लिट्टी-चोखा दो प्रकार से बनाया जाता हैं-
सादा लिट्टी या बाटी- चोखा
इस प्रकार से बने लिट्टी को चोखा, अरहर (तुअर) दाल, रसेदार सब्जी, चिकेन- मटन, सलाद, चटनी के साथ विधिवत परोसा जाता हैं।
भरा हुआ लिट्टी या बाटी-चोखा
इस प्रकार की लिट्टी में सत्तू का प्रयोग किया जाता हैं, जिससे कि यह और अत्यधिक पौष्टिक हो जाता हैं। हाँ इतना जरूर ध्यान रहे कि इस प्रकार की भरी लिट्टी को हमेशा चोखा, चटनी, सलाद के साथ खाया जाता हैं।
लिट्टी-चोखा कैसे बनता हैं?
लिट्टी-चोखा (Litti-Chokha) को बाटी-चोखा (Bati- Chokha) दो शब्दों से मिल कर बना हैं।
लिट्टी या बाटी
लिट्टी या बाटी शुद्ध रूप से गेहूँ के आटे से बनता हैं। आटा पेट और सेहत के लिए सुपाच्य होता हैं। इसमें भुजे हुए काले चने जिसे सत्तू कहते हैं।
इस सत्तू में मसाला, नमक, नींबू, मिर्च का आचार, काली मिर्च, अजवाइन, प्याज, लहसुन, अदरक और हरी मिर्च का भरावन बना कर आटे की लोई में भर कर उसे उपले की आग में मध्यम आंच में सेका जाता हैं और शुद्ध देशी घी में उसे लपेट कर परोसा जाता हैं।
Note- उपले में ही सादी बाटी को भी सेका जाता हैं।
दूसरे तरीके से सरसों तेल में या रिफाइन तेल में इसे डीप फ्राई करके परोसा जाता हैं।
चोखा
इसे भर्ता भी कहते हैं। यह शुद्ध रूप से बैगन, टमाटर, आलू को उपले पर भुज कर या उबाल कर छिलका उतार कर उसमें सरसों तेल, नमक, प्याज, लहसुन, हरी मिर्च, को मिला कर बनाया जाता हैं।
Note- कुछ लोग बैगन, टमाटर, आलू को फ्राई करके एक साथ मिलाकर भी तैयार किया जाता हैं।
बाटी-चोखा के फ़ायदे
लिट्टी-चोखा या बाटी-चोखा का सबसे अच्छा फायदा पेट के लिये होता हैं अर्थात सत्तू ( काले चने को भुज कर पाउडर बनाना) की तासीर ठंडी होती हैं और इसके साथ पचने में सहायक होता हैं।
यदि पेट ठीक तो हाजमा भी ठीक। इस पारंपरिक भारतीय व्यंजन के कई फायदे हैं, जैसे कि यह ट्रेडिशनल फ़ूड बड़े- बड़े रेस्टोरेंट, ढाबा और होटल में नही मिलता हैं बल्कि लाइन होटल या शुद्ध रूप से कहे तो स्ट्रीट फूड का सबसे लोकप्रिय व्यंजन या डिस हैं।
इसे आज कल डेली रूटीन में या शादी विवाह या किसी भी शुभ अवसर पर भी खूब पसंद किया जा रहा हैं।
इस व्यंजन से लोकल दुकानदार या स्ट्रीट फूड वेंडर को कमाई का एक जरिया बन जाता हैं, ताकि उनका जीवन निर्वाह भी होता रहे।
लिट्टी-चोखा सबसे ज्यादा कहाँ खाया जाता हैं?
लिट्टी चोखा सबसे ज्यादा उत्तर भारत में पसंद किया जाता हैं, वैसे आज के परिवेश में तो सम्पूर्ण भारत और विदेशों में भी बाटी- चोखा की धूम मची हुई हैं।
लेकिन इन सभी में सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल, बिहार और झारखंड राज्य में पसंद किया जाता हैं।
आज भी आप उपरोक्त किसी भी जगह पर जाइयेगा तो रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड, किसी भी सरकारी कार्यालय, पार्क, अस्पताल इत्यादि के पास आपको बाटी- चोखा की दुकान या ठेला मिल जाएगा।
बाटी-चोखा के प्रसिद्ध स्थान
आप उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल के साथ उत्तर भारत के किसी भी ज़िले में घूमने जाइये, आपको "बाटी- चोखा" या "लिट्टी- चोखा" का स्वाद चखने को जरूर मिल जायेगा, जैसे-
वाराणसी
वाराणसी भारत की धार्मिक और सांस्कृतिक नगरी हैं, जो गंगा नदी के किनारे बसे पवित्र और धार्मिक नगरों में से एक नगर हैं।
आप जब भी यहाँ घूमने जाइयेगा तो वाराणसी के मुख्य रेलवे स्टेशन कैंट से मात्र 1 से 1.5 Km की दूरी पर सिगरा नामक लोकेशन पर बाटी- चोखा की प्रसिद्ध दुकान हैं। आप जरूर टेस्ट करियेगा।
आप वाराणसी के लंका पर (बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के पास) और सिगरा पेट्रोल पंप पर भी आपको लिट्टी- चोखा का जायका मिलेगा। विश्वनाथ गली या कचौड़ी गली की बाटी- चोखा की बात ही निराली हैं।
इसके अलावा काशी में कई स्थानों पर "बाटी- चोख" नाम का रेस्टोरेंट मिलेगा जहाँ पर शुद्व और प्योर वेजटेरियन रेस्टोरेंट में थाली स्टाइल में लुत्फ़ उठा सकते हैं। अंधरापुल के पास तेलियाबाग में यह रेस्टोरेंट आसानी से मिल जायेगा।
चंदौली
आप चंदौली जिले में चकिया कस्बे के नज़दीक ही जब भी राजदरी-देवदरी वाटरफॉल घूमने जाये तो रास्ते में आपको कई जगह स्ट्रीट फूड की तरह ही आपको रास्ते के किनारे बाटी- चोखा के ठेला मिलेगा, जहाँ आप शौक से खाने का मज़ा लीजिये।
गाज़ीपुर
ऋषि मुनियों के साथ वीर-शहीदों की धरती गाज़ीपुर में लिट्टी- चोखा बड़े चाव से खाया जाता हैं। अधिकतर लोग अपने घर द्वार और किसी भी शुभ समारोह जैसे शादी विवाह से जन्मदिन की पार्टियों में इसे बनाना और खाना सर्वाधिक प्रचलन में हैं।
यहाँ पर कामाख्या मंदिर धाम और बाबा परशुरामजी के मन्दिर के पास ज़मानिया में बाटी चोखा के कई दुकान मिल जायेगी।
बिहार के सासाराम, गया, भभुआ, पटना सहित पूरे बिहार में लिट्टी-चोखा मिलता हैं। इसके अलावा पूरे झारखंड, मध्य प्रदेश पश्चिम बंगाल सहित हिंदी भाषी राज्यों में बहुत आसानी से उपलब्ध हैं।
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