आज के इस लेख में हम आपको झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई के जीवन की कुछ महत्वपूर्ण जानकारी दे रहे हैं। आपको बताएँगे की झाँसी की रानी कहे जाने वाली लक्ष्मी बाई का जन्म कब हुआ था और किस स्थान पर जनम हुआ था।
सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी, बूढ़े भारत में आई फिर से नयी जवानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी
आज भी जब यह वीर रस का काव्य कानों में सुनाई देता हैं, तो हम भारतियों का सीना चौड़ा हो जाता हैं। देश प्रेम को दर्शाती यह कविता लोगो में जान फूंक देती हैं।
यह प्रसिद्ध कविता सुभद्रा कुमारी चौहान के द्वारा लिखी गई हैं, जो उनकी कविता ' झाँसी की रानी' से लिया गया हैं। यह सुभद्राकुमारी चौहान की सर्वश्रेष्ठ रचनाओं में से एक हैं, जो रानी लक्ष्मीबाई को समर्पित हैं।
जी हाँ, दोस्तों आज मैं आपका सोलो साथी, आपको काशी या वाराणसी के तंग गलियों से होते हुये उस स्थान पर ले जा रहा हूँ, जहाँ पर देवी रानी लक्ष्मीबाई का जन्म हुआ हैं।
आज की पूरी चर्चा उस भूमि पर हैं, जहाँ लक्ष्मीबाई जैसे वीरांगना का जन्म हुआ हैं।
हम में से कई लोग वाराणसी कितने बार गए होंगे घूमने कई मंदिरों में दर्शन किये होंगे, सारनाथ के साथ- साथ घाटों पर मौज मस्ती के साथ घण्टो समय बिताये होंगे, परन्तु उनमें से 5% भी लोग इस जन्म स्थान पर नही जा पाते हैं,
अर्थात सीधे शब्दों में कहा जाये तो 90% से भी ज्यादा लोग इस जन्म स्थान के बारे में जानते ही नही हैं, और यदि जानते भी हैं तो इस जन्मभूमि पर जाना जरूरी नही समझते हैं।
तो आइये सबसे पहले रानी लक्ष्मीबाई के बारे में जानते हैं, फिर आगे की चर्चा जन्म स्थान पर करेंगे।
रानी लक्ष्मीबाई जन्म स्थली- 'भदैनी'
रानी लक्ष्मीबाई जी का जन्म गंगा नदी के किनारे बेस वाराणसी (काशी) शहर में अस्सी घाट से मात्र 250 या 300 मीटर की दूरी पर स्थित भदैनी नामक मुहल्ले में 19 नवम्बर, 1828 में एक सम्भ्रांत मराठी परिवार में हुआ था।
इनके पिता जी का नाम मोरोपन्त ताम्बे और माता जी का नाम भागीरथी सापरे था। इनके पिता जी मराठा बाजीराव के दरबार में सेवारत थे।

इनके बचपन का नाम मणिकर्णिका और प्यार से इन्हें 'मनु' और 'छबीली' कहते थे। बचपन में ही इन्होंने शास्त्र तथा शस्त्र दोनों की शिक्षा ग्रहण की थीं।
हालांकि वाराणसी के मणिकर्णिका घाट अपने अद्भुत रत्नेश्वर महादेव मंदिर में कभी पूजा-पाठ ना होने के लिए जाना जाता है।
इनका विवाह 1842 में झाँसी के राजा गंगाधर राव के साथ हुआ था। शादी के बाद जब झाँसी की रानी बनी तब इनका नाम लक्ष्मीबाई हुआ और फिर यह रानी लक्ष्मीबाई कहलाई।
इनको एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुईं थी, परंतु कुछ माह बाद ही पुत्र की मृत्यु हो गईं थी।
रानी लक्ष्मीबाई का संघर्ष 1857 की क्रांति
जब इनके पुत्र की मृत्यु हुई तो कुछ माह के बाद 1853 में इनके पति राजा गंगाधर राव की भी मृत्यु हो गईं, तब झाँसी की गद्दी पर स्वयं आसीन हुई और दत्तक पुत्र के रूप में दामोदर राव को अपने वारिस के रूप में रखा।
जब ये सभी घटना झाँसी में घटित हुई थी तब उस समय भारत के गवर्नर जनरल लार्ड डलहौजी थे और उन्होंने एक नियम बनाया था-
"Doctrine of Lapse" या "हड़प नीति का सिद्धांत" या "डलहौजी नीति" के नामों से जानते हैं। इस नियम के तहत यदि किसी राज्य के राजा की मृत्यु हो जाती हैं, तो ऐसे राज्य का ब्रिटिश शासन में विलय हो जायेगा।
इसी के कारण रानी लक्ष्मीबाई का अंग्रेजी हुकूमत से युद्ध हुआ और तभी भारत में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857 की क्रांति हुईं थी।
इस क्रांति में रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजी हुकूमत के छक्के छुड़ा दिये थे। एक तरफ रानी की छोटी सी रियासत की सेना तो दूसरी तरफ ब्रिटिश सरकार की विशाल सेना जिसका नेतृत्व ह्यूरोज़ कर रहा था।
इस युद्ध में रानी लक्ष्मीबाई वीरता से लड़ते हुये अपने प्रिय घोड़े पवन के साथ लड़ते हुये 18 जून 1858 को वीरगति को प्राप्त हुई थीं।
इनकी मृत्यु ग्वालियर राज्य में हुई थीं, तो वही पर रानी लक्ष्मीबाई का वर्तमान में समाधि स्थल बनाया गया हैं।
भारत सरकार की तरफ से इनकी वीरगति प्राप्त करने वाले दिन 18 जून को "वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई बलिदान दिवस" रूप में प्रतिवर्ष मनाया जाता हैं।
इनकी समाधि पर सुभद्रा कुमारी चौहान की लिखी हुई कविता को शिलापट्ट के रूप में लिख कर लगाया गया हैं ताकि भारत की आने वाली पीढ़ी उनके बलिदान को युगों- युगों तक याद रखे।
रानी लक्ष्मी बाई की जन्मस्थली आम जनमानस की पहुँच से दूर हैं
आज के समय में इनके जन्मस्थली "भदैनी" को पर्यटन के रूप में बढ़ावा देने के लिये वाराणसी के अस्सी घाट के नज़दीक इस स्थान पर पार्क बना कर उनकी मूर्ति के साथ उनके वीरगाथा को चित्र के माध्यम से बताया गया हैं।
आप सभी से मैं इतना जरूर कहूँगा कि जब भी आप वाराणसी घूमने और दर्शन के लिये जाये तो अस्सी घाट के समीप भदैनी जा कर इनके जन्मस्थान को भी जरूर से विजिट करें।
आप हमें कमेंट्स करके जरूर बताये की आपको वहाँ जा कर कैसा लगा क्योंकि अपने कीमती समय में कुछ समय वहाँ बिताये तथा उनके बारे में जाने और महशुश करें।
रानी लक्ष्मीबाई के बचपन के नाम पर वाराणसी में मणिकर्णिका घाट हैं, जिसका निर्माण रानी अहिल्याबाई होलकर ने करवाया था। मणिकर्णिका घाट के बगल में रत्नेश्वर महादेव का मन्दिर हैं, जो एक तरफ से झुका हुआ हैं।
ऐसे देशभक्त वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई को कोटि- कोटि नमन।
नमस्कार सबसे पहले एक बात कहूंगा कि महारानी लक्ष्मी बाई का जन्म भदेनी नही मणिकर्णिका घाट पर हुआ था और वो भी १८२७ में न की १८२८ please login ko correct information dijiye shi logon se miliye history ko bekar mat kriye