क्या यह बात आपको अज़ीब नही लगती हैं कि भारत जैसे धार्मिक देश में ऐसा मन्दिर भी हैं, जहाँ दैनिक या समय-समय पर पूजा-अर्चना, घण्टा बजाना और अनुष्ठान जैसे कार्य नही होते हैं।
अगर भोले भंडारी का मन्दिर हैं, तो शिवलिंग पर जल चढ़ाया जाता हैं, लेकिन इस शिव मंदिर में जल भी नही चढ़ाया जाता हैं। ऐसा कोई भी पूजा- पाठ और अनुष्ठान अगर किसी मन्दिर में न होता हो, तो आपका क्या रिएक्शन होगा?
जी हाँ, दोस्तो आपका प्रिय सोलो यात्री सूर्य प्रकाश अपनी घुमक्कड़ी के तहत उत्तर प्रदेश की धार्मिक नगरी और गंगा नदी किनारे बेस धार्मिक शहर में से एक, भोले की नगरी काशी (वाराणसी) पहुँचा।
वो कहते हैं न कि या तो शिव शम्भू कैलाश पर विराजते हैं या फिर सीधे धर्म नगरी काशी में।
काशी अर्थात वाराणसी को दुनिया का सबसे प्राचीन नगर माना जाता हैं। कई मान्यताओं के अनुसार शिव के त्रिशूल के नोंक पर काशी स्थित हैं, जिसके चलते काशी नगर कभी भी खत्म होगी।
मैंने बचपन में पढ़ रखा था कि काशी में ऐसा भी मन्दिर हैं, जो एक तरफ से झुका हुआ हैं, मन में बहुत व्याकुलता हुई कि क्या सच में ऐसा हैं?।
मैं बनारस या काशी हज़ारों बार गया उदय प्रताप इंटर कॉलेज से पढ़ाई भी की, यहाँ तक कि घाटों पर भ्रमण भी किया लेकिन कभी काशी करवट कहे या रत्नेश्वर महादेव कभी भी इस मंदिर को नजदीक से नही देखा था।
आज मौका मिला तो, सोचे कि क्यो न अपने प्यारे दोस्तों और साथियों को इस मंदिर के बारे में पूरा बताया जाये।
आप यकीन नही करेंगे कि इस मंदिर में न तो पूजा- पाठ होता हैं न ही घण्टा बजाया जाता हैं और न ही कोई धार्मिक अनुष्ठान का ही आयोजन होता हैं।
हम सभी एक- एक करके इस मंदिर के सभी पहलुओं पर विस्तृत चर्चा करेंगे वह भी आपके मनपसन्द भाषा हिंदी में, तो फिर चलिए शुरू करते हैं आज की धार्मिक यात्रा-
रत्नेश्वर महादेव मंदिर की कहानी संख्या 1
कहते हैं कि जब रानी अहिल्याबाई होल्कर भारत भ्रमण पर निकली थी तो अगले पड़ाव काशी पहुँची, जहाँ इनके साथ इनकी दासी रत्नाबाई भी थी।
गंगा के पवन तट पर मणिकर्णिका घाट से लगा हुआ मणिकर्णिका कुंड हैं जिससे सटा हुआ दत्तात्रेय घाट हैं पर रत्नाबाई ने एक भोले भंडारी शिव शंकर का मन्दिर बनवाया।
रत्नाबाई ने इस मंदिर का नामकरण अपने नाम पर करने की इच्छा रानी अहिल्याबाई से की जिसको की रानी अहिल्याबाई ने मना कर दिया कि आप इस मंदिर का नाम अपने नाम पर नही करेंगी।
लेकिन दासी रत्नाबाई ने मन्दिर का नामकरण अपने नाम पर करते हुए रत्नेश्वर महादेव नाम रख दिया, जिस के कारण कहते हैं कि रानी अहिल्याबाई ने क्रोधित हो कर श्राप दिया कि अब इस मंदिर में कोई भी पूजा- पाठ, अनुष्ठान घण्टा बजाना इत्यादि का कार्य नही कर पायेगा और मन्दिर भी एक तरफ से झुक गया।
रत्नेश्वर महादेव मंदिर की दूसरी कहानी
एक दूसरी कहानी के अनुसार 15 वीं शताब्दी के आस- पास भारत के कई इलाकों से राजा- महाराजा काशी आकर कई भवन, मन्दिर, धर्मशाला इत्यादि का निर्माण करवा रहे थे।
उन्ही राजाओं में से एक राजा का प्रधान सेवक और उनकी माता जी भी आई हुई थी। सेवक ने अपनी माता को समर्पित कर के उनके नाम पर एक मन्दिर मणिकर्णिका घाट के समीप महादेव का मन्दिर बनवाया और माता को आकर बोला कि चलो माता मंदिर को देखलो मैंने यह मंदिर बनवा कर आपके दूध का कर्ज उतार दिया।
माता ने बोला कि नही बेटा संसार में कोई भी अपने माँ के दूध का कर्ज नही उतार सकता और मुझे मन्दिर दिखाने मत ले जाओ नही तो कुछ अनिष्ट हो जाएगा।
सेवक नही माना और ज़बरदस्ती माता को मन्दिर दिखाने ले गया, माता के मन्दिर के तरफ देखते ही मन्दिर एक तरफ झुक गया।
कहानी कुछ भी हो परन्तु यह तो हकीकत ही हैं कि मन्दिर एक तरफ से झुका हुआ हैं। मन्दिर में आप स्थिर एक जगह कभी भी नही खड़े हो सकते हैं।
कुल मिला कर यह जान लीजिये की इस मंदिर में कोई भी पूजा- पाठ, कोई भी अनुष्ठान या शिव जी पर जल भी नही चढ़ाया जाता हैं।
अगर कोई भी ऐसा करता हैं, तो लोग कहते हैं कि उसके साथ कुछ न कुछ अनिष्ट हो जाता हैं।
मन्दिर तो छोटी कचहरी हैं
मन्दिर के गर्भ में समूह में कुल 6 शिवलिंग बने हुए हैं। लोगो का मानना हैं कि स्वयं शिव शम्भू लोगो के समस्या का निपटारा करने के लिए न्याय करते हैं।
कुछ लोगो की मान्यता यह हैं कि रत्नेश्वर महादेव का मन्दिर ही काशी करवट हैं, परन्तु कुछ लोगो कहते हैं कि काशी करवट इस स्थान से कुछ दूर पर सकरी और तंग गलियों से होते हुए नेपाल खप्पड़ पर बना हैं।
अब हकीकत चाहे कुछ भी हो, लेकिन यह मंदिर तो पिसा की झुकी मीनार से भी ज्यादा झुकी हुई हैं। वर्ष के कई महीनों तक यह मंदिर गंगा नदी में बाढ़ के कारण पानी में डूबा रहता हैं।
मन्दिर में बालू और मिट्टी की कई परत जमा रहती हैं। सभी श्रद्धालु केवल बाहर से ही हाथ जोड़ कर आशीर्वाद लेते हैं।
कोई भी श्रद्धालु पूजा- पाठ, घण्टा, जल चढ़ाना, धार्मिक कार्य नही करते हैं। शायद ऐसा मन्दिर पूरे भारत में इकलौता मन्दिर हैं।
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