Man Singh Observatory (Varanasi)
वाराणसी को आप केवल आध्यात्मिक ज्ञान का केंद्र मानते हैं, तो आप काशी को हल्के में ले रहे हैं। यह वही वाराणसी हैं, जहाँ पर विश्व प्रसिद्ध सारनाथ बौद्ध विहार हैं तो एक तरफ रानी लक्ष्मीबाई का जन्म स्थान हैं तो वही दूसरी तरफ गंगा घाट पर बना पुरात्तव गौरव को उजागर करता डॉ राजेन्द्र प्रसाद घाट पर बना मानसिंह वेधशाला भी स्थित हैं
हम काशी को जहाँ एक तरफ धार्मिक स्थलों के रूप में जानते हैं और मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूँ कि-
वाराणसी, जहाँ कण-कण में शिव विराजते हैं। प्राचीन वेद और पुराणों में उल्लेखित अनेक प्रकार से और हर रूप से काशी का वर्णन किया गया हैं।
एक तरफ वाराणसी गंगा नदी के तट पर बसा सबसे पवित्र स्थल हैं, तो दूसरी तरफ पर्यटन स्थलों में भी अपनी विशेष पहचान बनाये हुये हैं।
वाराणसी केवल द्वादश ज्योतिर्लिंग के मन्दिर काशी विश्वनाथ के लिए ही नही अपितु भारत में अपनी प्रसिद्धि मोक्ष प्राप्ति वाले स्थान में भी प्रथम स्थान रखता हैं।
आज घुमक्कड़ी के कुछ फुर्सत के पल मैं सोलो यात्री सूर्य प्रकाश जा पहुँचा हूँ वाराणसी के दशाश्वमेध घाट पर तो पहले माँ गंगा के पवित्र जल को स्पर्श करने के बाद जैसे ही पीछे मुड़ा तो मेरी नजर पानी के टंकी के बगल में बने एक खूबसूरत हवेली रूपी मकान पर पड़ा।
बरबस मैंने बगल के भैया से पूछ लिया कि यह पीले रंग की हवेली वाली भवन कैसा हैं? तो भैया चहक के बोले कि का भईया बनारस पहली बार आये हैं क्या? यहाँ इस भवन में बहुत बड़ा सूर्य घड़ी हैं।
सूर्य घड़ी का नाम बोलने पर मैं आश्चर्यचकित होकर को उस भवन के तरफ चल पड़ा कि आज इस घड़ी को मैं देखकर अपने अनुभव को सबके साथ साझा करूंगा।
मानसिंह वेधशाला का इतिहास
वाराणसी में स्थित मानसिंह वेधशाला राजपूताना शैली और मुग़लकालीन स्थापत्यकला का अद्धभुत नमूना हैं। अगर इसके इतिहास का बारीकी से अध्ययन किया जाए तो-
इसकी स्थापना राजा जय सिंह द्वितीय ने 1737 ईo के आस पास वाराणसी में करवाया था। राजा जय सिंह द्वितीय को ही जयपुर शहर के स्थापना का भी श्रेय जाता हैं।
वो कहते हैं न कि आवश्यकता ही अविष्कार की जननी हैं। महाराजा जय सिंह द्वितीय स्वयं एक खगोलशास्त्री थे। उन्होंने अपने अनुभव और ज्ञान के आधार इसका निर्माण करवाया था।
इस वेधशाला को ही जंतर मंतर कहते हैं क्योंकि आम जनमानस में इसे जंतर मंतर ही कहा जाता है लेकिन खगोल विज्ञान में इसे वेधशाला कहा गया हैं।
भारत में कुल 5 वेधशाला या जंतर मंतर हैं
18 वीं शताब्दी में भारत में जंतर मंतर की शुरुआत महाराजा जय सिंह द्वितीय ने किया था। वर्ष 1724 से 1737 के मध्य भारत के 5 प्रमुख और महत्वपूर्ण शहरों में इसकी स्थापना करवाई थी, जिसमें-
जंतर मंतर की सहायता से ही ग्रहों, नक्षत्रों और समय इत्यादि का मान और गति का अध्ययन करने के लिए किया जाता था। आज यह सभी भारत की अनमोल धरोहर विरासत के रूप में विद्यमान हैं।
राजा जयसिंह द्वितीय के ही पुत्र थे मानसिंह जिनके देख रेख में इन वेधशालाओं में अंतिम का निर्माण किया गया था ख़ास तौर से वाराणसी स्थित वेधशाला का इसीलिए वाराणसी में स्थित वेधशाला का नाम मानसिंह वेधशाला रख दिया गया था।
मानसिंह वेधशाला कैसे पहुँचे?
आप वाराणसी किसी भी साधन से अर्थात वायु मार्ग, रेल मार्ग या सड़क मार्ग से भारत के किसी भी शहर से या वायु मार्ग से देश- विदेश से सीधे पहुँच सकते हैं।
रेल मार्ग की बात करें तो प्रमुख और सबसे बड़ा निकटम रेलवे स्टेशन वाराणसी कैंट हैं, जहाँ पर उतर कर ऑटो और टैक्सी की सहायता से दशाश्वमेध घाट पहुँचा जा सकता हैं।
वाराणसी एक धार्मिक स्थल के साथ ही पर्यटन स्थल के रूप में भी प्रसिद्ध हैं। यहाँ प्रतिदिन हजारों की संख्या में काशी विश्वनाथ मंदिर के दर्शन करने और सारनाथ घूमने के लिए आते हैं।
वाराणसी में रुकने के लिए सस्ता से महंगा होटल, धर्मशाला, मोटल, होम स्टे मिल जाएंगे। आज कल ज्यादा दिन रुकने वालो के लिए पेइंग गेस्ट और होस्टल की भी सुविधा मिल जायेगी।
खाने पीने के लिए यहाँ एक से बढ़कर एक रेस्टोरेंट, ढाबा लाइन होटल और स्ट्रीट फूड के ऑप्शन मिल जायेंगे।
वाराणसी में प्रमुख आकर्षण घूमने के लिए
- रानी लक्ष्मीबाई का जन्म स्थली।
- मणिकर्णिका घाट पर बना रत्नेश्वर महादेव मंदिर।
- सारनाथ।
- बाबा विश्वनाथ मंदिर।
- BHU में स्थित नया विश्वनाथ मंदिर।
- वाराणसी के घाटों पर नौका विहार।
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धन्यवाद।
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