जब भी हम किसी स्थान विशेष पर घूमने जाते है या किसी स्थान विशेष के प्रसिद्ध मंदिर में दर्शन करने जाते हैं, तो कभी- कभी रुकना पड़ता हैं।
ऐसे में हम अपने रुकने की व्यवस्था तलाश करते हैं कि कम खर्च में कैसे और कहा रुके जिससे कि अपना बजट भी न बढ़े और अपना ट्रिप भी कामयाब हो जाये।
आज के परिवेश में यदि हम किसी स्थान पर जाते हैं और किसी रिश्तेदार या दोस्त या किसी के परिचय में रुकते हैं तो मेज़बान तथा मेहमान दोनों ही असहज महशुश करते हैं।
क्योंकि अब पहले जैसा कुछ नही रह गया है, पहले धर्मशाला, होटल इत्यादि की कमी थी और जो भी रुकने की व्यवस्था थी वह उम्मीद से ज्यादा अर्थात महंगी होती थी।
परन्तु आज ऐसा नही हैं क्योंकि अब समाज की नज़रिया और नज़र दोनों बदल चुकी हैं। अब हर एक शहर ख़ास तौर से धार्मिक, सांस्कृतिक, ऐतिहासिक, पौराणिक और बड़े से छोटे शहरों तथा नगरों में रुकने की अच्छी व्यवस्था हो गई हैं।
जी हाँ दोस्तो मैं आपका साथी सोलो ट्रैवलर सूर्य प्रकाश आज अपने इस लेख के जरिये आपकी इस परेशानी का सम्पूर्ण समाधान ले कर हाज़िर हुआ हूँ कि-
जब भी हम किसी शहर को घूमने जाते हैं तो अपने बजट के मुताबिक कहाँ और कैसे रुके कि कम पैसे में भी अपने ट्रिप को एन्जॉय पूर्ण बना सकें।
आज की पूरी जानकारी वह भी हिंदी में आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ कि-
धर्मशाला, लॉज, होटल, मोटेल, होम- स्टे, डारमेट्री, रिटायरिंग रूम में क्या अंतर हैं ताकि आप अकेले या अपनी फैमिली के साथ पूर्ण रूप से सुरक्षित यात्रा पूरी कर सकें।
धर्मशाला - Hospice कैसा होता है
यह एक व्यवस्था ही नही अपितु एक अथिति- सेवा की परंपरा हैं। यह भारत में अति प्राचीन समय से चली आ रही एक ऐसी व्यवस्था हैं, जहाँ रुका जाता हैं।
भारत में कई शहरों या धार्मिक स्थानों पर यात्रियों के रुकने की व्यवस्था हैं, जो या तो बिल्कुल निःशुल्क होती हैं या फिर मामूली शुल्क देना पड़ता हैं।
अधिकतर धर्मशालाओं की व्यवस्था धार्मिक स्थलों के संघटनो या मंदिरों की तरफ से किया जाता हैं। धर्मशालाओं में रुकने के नाम पर जो भी शुल्क चार्ज किया जाता हैं वह सुविधा शुल्क मात्र होता हैं।
इस सुविधा शुल्क से केवल धर्मशाला का प्रशासन या ये कहे कि रख- रखाव पर खर्च किया जाता हैं। भारत में कई ऐसे धर्मशाला हैं, जो अपनी व्यवस्थाओं के लिए विश्व प्रसिद्ध हैं और सुविधाओं में अच्छे से अच्छे होटलों को भी पीछे छोड़ देते हैं।
यह भारत के लगभग सभी छोटे से बड़े शहरों में स्थापित हैं तथा सफलता पूर्वक लम्बे समय से चल रहे हैं। भारत के अधिकतर धार्मिक स्थलों पर धर्मशाला की सुविधा मिल जायेगी।
धर्मशाला में रुकने के लिये कमरे बने होते हैं, किसी- किसी में रुकने के लिए बड़े- बड़े हाल बने होते हैं, जहाँ अकेले या परिवार के साथ इन कमरों में सुरक्षित रुका जा सकता हैं।
भारत में अधिकांशतः यात्री अकेले या परिवार के साथ अपने बजट को ध्यान में रख कर यहाँ रुकना पसंद करते हैं।
रुकने के लिए समय या दिन की कोई बाध्यता नही होती हैं, हाँ इतना जरूर हैं कई धर्मशालाओं में रुकने के कुछ विशेष नियम बनाये गये होते हैं, जिसका पालन करना यात्रियों का कर्तव्य होता हैं।
होटल - Hotel
वर्तमान समय में भारत में यात्रा के दौरान रुकने के लिए धर्मशाला के साथ ही साथ होटल को भी शामिल किया जा रहा हैं।
विगत कुछ वर्षों में यात्रियों या श्रद्धालुओं या सैलानियों की पहली पसन्द होटल हो गयी है रुकने के लिए क्योंकि होटल में सुविधा का ख़ास ध्यान रखा जाता हैं।
आप अपने बजट के अनुसार होटल को बुक कर सकते हैं। होटल में कई कमरे बने होते हैं, रुकने के साथ ही साथ सभी सुविधा जैसे भोजन, नाश्ता, स्वीमिंग पूल, खेलने के लिए गेम की सुविधा इत्यादि।
होटल में रुकने के लिए आपको निश्चित शुल्क अदा करना पड़ेगा। होटल निःशुल्क नही होते हैं धर्मशाला की तरह, हाँ इतना जरूर हैं कि-
आप जितना रुपया होटल के लिए अदा करेंगे उसके हिसाब से ही आपको सुविधा मिलती हैं।
होटल में आप जितना दिन चाहे रुक सकते हैं बस इसके लिए उनके कुछ नियम फ़ॉलो करने होंगे तथा किराया देना होगा।
होटल की सुविधाओं को ध्यान में रख कर ही इनकी ग्रेडिंग अर्थात दो सितारा, तीन सितारा से लेकर सात सितारा तक ( 1 Star से 7 Star तक) की जाती हैं।
मोटल - Motel किसे कहते हैं
यह होटल का छोटा भाई हैं, मैं मजाक नही कर रहा हूँ, आप इसे ऐसे समझे कि होटल का छोटा रूप मोटल होता हैं।
"मोटर" और "होटल" को मिला कर यानी मोटर का 'मो' तथा होटल का 'टल' मिलाकर-
"मोटल" बनता हैं।
यह अधिकतर हाईवे पर मिलते हैं, जहाँ पर लम्बी दूरी तय करके यात्री जब अपने साधन जैसे- मोटर साइकिल, मोटर बाइक या मोटर कार (Four Wheeler) से आता हैं, तो इन्ही मोटल पर वह कुछ देर या रात भर आराम करता हैं।
मोटल पर मोटर गाड़ी या निजी साधन को पार्क करने से लेकर उनके मरम्मत तक कि व्यवस्था मिल जाती हैं। इन सभी सुविधाओं को लेने के लिए यात्री को शुल्क अदा करना पड़ता हैं।
लॉज - Lodge क्या होता है
लॉज एक तरह से धर्मशाला का ही छोटा रूप होता हैं। यहाँ भी कमरे बने होते हैं परन्तु धर्मशाला या होटल जितने नही होते हैं।
हाँ इतना जरूर है कि लॉज में रुकने के लिए आपको शुल्क देना पड़ेगा। किसी- किसी लॉज में रुकने के साथ ही भोजन और नाश्ते की भी व्यवस्था होती हैं।
होम स्टे (Home Stay)
जैसा कि नाम से ही पता चल जा रहा हैं कि होम स्टे यानी घर में ठहरना। यह ऐसी व्यवस्था हैं जिसमें घर जैसा माहौल रहता है।
होम स्टे फ्लैट के रूप में ( 2 BHK, 3 BHK इत्यादि ) होता हैं। आप होटल रूपी कमरें में रुके रहेंगे लेकिन फीलिंग घर जैसा ही लगेगा आपको।
रिटायरिंग रूम - Retiring Room
यह सुविधा भारतीय रेलवे, एयरपोर्ट, मल्टी बस स्टैंड पर मिलता हैं। यह एक कॉमन रूम (बरामदे जैसा लम्बे आकर का रूम) रहता हैं, जिसमें अलग- अलग सिंगल रूप में बेड लगा होता हैं।
सामान को सुरक्षित रखने के लिए लॉकर की व्यवस्था होती हैं। यह कुछ घण्टे से लेकर 12 घण्टे या कुछ विशेष परिस्थितियों में 24 घण्टे के लिए ही बुक किया जा सकता हैं।
डारमेट्री - Dormitory क्या है
यह होटल या धर्मशाला में उस कॉमन रूम कहते हैं जहाँ अलग- अलग बेड लगे होते हैं। इसमें अधिकतर सोलो यात्रा करने वाले ही रुकते हैं। इसका किराया भी होटल के कमरे के किराया से बहुत ही कम साधारण होता हैं।
आज कल वेस्टर्न कल्चर के अनुसार डारमेट्री में एक बेड दूसरे बेड के ऊपर सीढ़ी नुमा संरचना में बना होता हैं। जिससे कि कम जगह में ज्यादा बेड लगा कर लोगो ठहराया जा सके।
आज का सफर फिलहाल यही तक है, आगे फिर किसी लेख में आपके समक्ष प्रस्तुत होऊँगा तब तक के लिये… जय हिंद।
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