हमारे भारत देश में ऐसे कई स्थान ऐसे हैं, जिसके बारे में शायद ही सभी लोग जानते हैं, तो ऐसे मामलों में लोगो से जानकारी इकट्ठा करके उसके बारे में पता लगाया जाता हैं।
जैसा कि टाइटल से उल्लेखित हैं माणा गांव इसे माना गांव भी कहते हैं। यह ग्राम आम बोलचाल में भारत का सिमान्त ग्राम (Last Indian Village) भी कहलाता हैं।
अपनी प्राकृतिक सौंदर्य और बर्फ से ढके हिमालय के पर्वतीय चोटियों के बीच में बसे सुंदर और छोटा सा पहाड़ी गांव हैं।
आज आपका सोलो यात्री आपके ज्ञान को चार चांद लगाने एक ऐसे ही स्थान के बारे में चर्चा करेगा जो कि सभी के पहुँच से अभी दूर हैं।
आज इस अनोखे गांव की पूरी विस्तृत चर्चा स्टेप बाई स्टेप करते हुए सबसे पहले इसकी वास्तविक स्थिति जानेंगे-
भारत का अंतिम गांव - माना
आज माना गांव अपने पहचान का मोहताज नही हैं क्योंकि भले ही अधिकतर लोग यहाँ जा नही पाये हैं, लेकिन थोड़ा बहुत इसके बारे में जानते जरूर हैं।
"माणा गांव or माना गांव" उत्तराखंड राज्य के चमोली जिले में बद्रीनाथ धाम से महज 3 से 4 Km की दूरी पर स्थित हैं। इस गांव से मात्र 25 से 30 Km की दूरी पर ही तिब्बत का बॉर्डर हैं।
यहाँ एक प्रसिद्ध माना दर्रा भी हैं जो तिब्बत के लिए एक रास्ता हैं। यही पर अलकनंदा और सरस्वती नदी का संगम भी स्थित हैं, जो प्राकृतिक रूप से देखने लायक हैं।
चूंकि भारत- तिब्बत का बॉर्डर होने के से और पूरा क्षेत्र पहाड़ी तथा हिमालयन चोटी होने के कारण इसके आस- पास कोई दूसरा गांव नही है इसलिए इस गांव को भारत का अंतिम गांव कहा जाता हैं।
अमूनन जो लोग भी बद्रीनाथ मन्दिर जो कि उत्तराखंड के चार धाम में से एक धाम हैं, का दर्शन करने जाते हैं तो इस गांव को भी जरूर से घूमने जाते हैं और फिर घूमे भी क्यो नही, आखिर यह कोई मामूली मैदानी इलाकों वाला कोई छोटा गांव नही बल्कि अन्तिम गांव माना जो हैं।
कब माणा गांव में जाये घूमने
जितने दिन बद्रीनाथ धाम के कपाट खुले होते हैं, उतने दिन तो यहाँ रौनक रहती हैं। गांव के रहने वाले अपने घरों को वापस लौट आते हैं,
अर्थात जब मन्दिर के कपाट बंद हो जाते हैं तब उस समय सर्दी का मौसम रहता हैं, तब माणा गांव के निवासी नीचे जोशीमठ या इसके आसपास आकर रहने लगते हैं क्योंकि-
सर्दी में इस गांव में ज़बरदस्त बर्फबारी होती हैं। गर्मी में ये सभी लोग अपने- अपने घरों को लौट जाते हैं।
कुल मिला कर अप्रैल माह से लेकर नवम्बर माह तक आप इस गांव को घूमने का प्लान बना सकते हैं।
माना गांव के निवासियों के आजीविका के साधन
वैसे माना गांव को भारतीय स्टेट बैंक (SBI) ने गोद लिया हैं, यानी कुछ इंफ्रास्ट्रक्चर में यह बैंक ग्रामीणों की मदद करता हैं, जबकि सरकार भी हर सम्भव यहाँ के लोगो की मदद करती रहती हैं।
अब सवाल हैं इनके रोजी रोटी का तो आपको बता दे सरकार द्वारा यह गांव पर्यटन स्थल के रूप में घोषित हैं,
तो यहाँ आपको छोटे-छोटे रेस्टोरेंट, हैंडलूम की दुकान, देशी या पहाड़ी जड़ी बूटियों की दुकान और गर्म कपड़ों की दुकान खूब मिल जायेगी।
यह सभी दुकानें स्थानीय लोंगो के द्वारा चलाया जाता हैं। होममेड वस्तुओं के होने से थोड़ी महंगी जरूर होती हैं।
लेकिन आप सभी से सादर अनुरोध हैं कि आप यहाँ खरीदारी जरूर करें ताकि इनका भी घर चल सकें।
माणा या माना गांव कैसे पहुँचे?
मैंने एक बात बोली हैं कि स्पेशली कोई माना गांव घूमने नही जाता है। जब भी कोई बद्रीनाथ धाम दर्शन करने आता है, तो इस पर्यटन स्थल को घूम कर जाता हैं।
आप अपने निजी साधन, बस या बाइक राइड करके इस गांव में आ सकते हैं। बस उत्तराखंड सरकार की सरकारी बस चलती हैं।
जब भी आप लोग बद्रीनाथ के करीब आएंगे तो एक चेकपोस्ट पड़ेगा जहाँ पर थोड़ी सी जानकारी आपसे सेना के जवान पूछेगें और यह सुरक्षा की दृष्टि से जरूरी भी हैं, फिर वापस जाते समय उतने लोग पुनः होने चाहिए।
अगर हम बात करे नज़दीकी रेलवे स्टेशन की तो वह ऋषिकेश, हरिद्वार और देहरादून रेलवे स्टेशन हैं। जिसकी दूरियां माना गांव से-
- हरिद्वार से- 320 Km
- देहरादून से- 330 Km
- ऋषिकेश से- 296 Km
अब बात करलें नज़दीक के एयरपोर्ट की तो देहरादून का जॉली ग्रांट एयरपोर्ट हैं, जहाँ से इस गांव की दूरी लगभग 305 Km हैं। यहाँ से आप निजी टैक्सी कर के गांव को जा सकते हैं।
माना गांव के आसपास घूमने वाली जगहें
माना गाँव के आसपास घुमने के लिए दो प्रमुख गुफाएं हैं जहाँ जाकर आप मौज-मस्ती कर घूम सकते हैं.
व्यास गुफा
यह महर्षि वेदव्यास की गुफा हैं, जिसका अन्य नाम "व्यास पोथी" भी हैं। इसी गुफा में व्यास जी रह कर महाभारत जैसे महाग्रंथ की रचना किये थे।
गणेश गुफा
व्यास गुफा से थोड़ी ही दूरी पर गणेश गुफा भी हैं, जिसमें गणेश जी रहा करते थे। इन्होंने महाभारत महाग्रन्थ की रचना यानी लिखे थे।
प्राचीन मान्यताओं की माने तो ये कहा जाता हैं कि महर्षि वेदव्यास जी ने मौखिक रूप से महाभारत के श्लोक बोले थे तो वही गणेश जी ने इन सभी श्लोकों को सुनकर लिखने का कार्य किया था।
आप जब भी इस गांव के भ्रमण को जाये तो इन गुफाओं को जरूर देखने जाये। यह दोनों गुफा माना गांव से आगे कुछ दूरी पर यानी 2 से 3 Km की दूरी पर ही स्थित हैं।
आपको बस इन दोनों गुफाओं पर पहुँचने के लिए ट्रैकिंग करना होगा यानी पैदल यात्रा ऊबड़ खाबड़ रास्ते से होते हुए तथा हरियाली का नज़ारा देखते हुए चलते चले जाइये।
कुछ लोग इसी पैदल यात्रा को हाईकिंग का भी नाम देते हैं। आपको तो बस अपना कारज सिद्ध करना हैं तो चाहे ट्रैकिंग कहे या फिर हाईकिंग बस घूमने का प्लान बना लीजिए।
इसके अलावा कई अन्य भी प्राकृतिक हरी भरी वादियों का नज़ारा अपने कैमरे में कैद कर सकते हैं।
माणा गांव के साथ "अंतिम" शब्द का संयोग
जैसे माणा गांव को भारत का अंतिम गांव कहते हैं ठीक उसी प्रकार से यहाँ पर आपको अंतिम का संयोग कई के साथ मिलेगा, जैसे कि-
- अंतिम चाय की दुकान यही पर हैं।
- अंतिम डाकघर(Pin Code- 246422) यही स्थित हैं।
- अंतिम बच्चों के लिए स्कूल भी यही पर मिलेगा।
आपको इन सभी के साथ एक सेल्फी लेने का मौका मिले तो फिर क्या पूछना। शायद ही कोई होगा जो इस ऐतिहासिक पल को अपने हाथ से जाने दे। कैमरा जरूर साथ ले जाये ताकि इस अंतिम का फोटो खींच सके।
रुकने और खाने-पीने के स्थान
यहाँ पर इस गांव में वैसे रुकने के लिए कोई होटल, धर्मशाला या लॉज इत्यादि नही बने हैं, लेकिन आप चाहे तो गांव घूम कर वापस बद्रीनाथ धाम आ कर रुक सकते हैं, जहाँ पर रुकने के कई ठिकाने बने हुए हैं।
खाने- पीने के लिए छोटे रेस्टोरेंट तो गांव में मिल जायेंगे परन्तु अच्छे और बड़े रेस्टोरेंट या ढाबे आपको बद्रीनाथ धाम पर ही मिलेंगे।
आज की जानकारी आपको कैसी लगी?, हमें कमेंट्स कर के जरूर बताइयेगा। अब आप हमें बताइए कि कब माना गांव घूमने जा रहे हैं?।
यात्रा का अनुभव साझा करें