बचपन में मैंने केदारनाथ की यात्रा और अमरनाथ की यात्रा के बारे में काफी कुछ सुन रखा था कि केदारनाथ धाम में स्वयं शिव विराजते हैं, तो वही दूसरी ओर-
अमरनाथ में सावन मास के पवित्र दिनों में बर्फ की शिवलिंग बन कर साक्षात शिव जी दर्शन देते हैं। इसी प्राकृतिक हिमालयी बर्फ से बने होने के कारण भोले नाथ "बाबा बर्फानी" कहलाये।
केदारनाथ मंदिर भारत में स्थित द्वादश ज्योतिर्लिंग में से एक ज्योर्तिलिंग हैं, जिसकी यात्रा सबसे दुर्लभ यानी कठिन मानी जाती हैं।
अगर देखा जाये तो विश्व के कठिन रास्तों में यही दोनों जगहों की ट्रैकिंग सबसे जोखिम वाली होती हैं, परन्तु वही दूसरी ओर यह ट्रैक प्राकृतिक दृश्यों, एडवेंचर और रोमांच से भी भरपूर होती हैं।
भारत में, मैं जब भी ऐसी कोई भी यात्रा करता हूँ तो इसे धार्मिक ट्रैकिंग कहता हूँ क्योंकि यह यात्रा धर्म से जुड़ी हुई होती हैं।
मेरा मानना हैं कि किसी भी धार्मिक स्थलों की यात्रा को आप ट्रैकिंग के रूप में नही कह सकते हैं बल्कि वह यात्रा आपके अटूट श्रद्धा और विश्वास पर टिकी होती हैं, इसलिए पवित्रता और धार्मिक महत्व के कारण ऐसी सभी यात्रायें या धार्मिक यात्रायें, धार्मिक ट्रैकिंग के अंतर्गत आती हैं।
आज बचपन की वो ख्वाहिश पूरी होने वाली थी, जिसके बारे में या तो सुना था या पढ़ा था या फिर टेलीविजन पर देखा था।
आज मैंने पूरे 39वें सावन को देख चुका हूँ, अरे मेरे कहने का मतलब हैं कि मेरी उम्र इस समय 39 वर्ष हो चुकी हैं और मैं अक्सर सोलो ट्रिप ज्यादा करता हूँ,
परन्तु आज मैं अपने परिवार के साथ जिसमें मेरे पिता जी, माता जी और छोटा भाई भी हैं, के साथ यात्रा या सच कहें तो तीर्थयात्रा पर निकला हूँ।
ट्रेन के शेड्यूल से घण्टा भर पहले पंडित दीनदयाल उपाध्याय जंक्शन (मुग़लसराय जंक्शन) के प्लेटफार्म नम्बर 4 पर पहुँच कर अपनी ट्रेन दून एक्सप्रेस (हावड़ा से योगनगरी ऋषिकेश) का इंतज़ार कर रहा था।
निर्धारित समय से केवल 10 मिनट की देरी से जब ट्रेन पहुँची, तो मेरी निगाह केवल अपने सीट को तलाश रही थी कि कब अपने सीट पर बैठ कर रोमांचकारी यात्रा पर निकल जाये।
लगभग 20 घण्टे की लगातार यात्रा वाराणसी, लखनऊ के ट्रेन रूट से होते हुये मैं अपने गंतव्य स्टेशन योगनगरी ऋषिकेश पर पहुँच गया।
सुबह 6 बजे का समय और आसपास पहाड़ों के मध्य बने भारत के सबसे साफ सुथरे स्टेशनों में शुमार ऋषिकेश रेलवे स्टेशन पर अपने को पाना किसी गौरव से कम नही था।
स्टेशन के बाहर का नज़ारा अद्धभुत और अतिलुभावना था। खैर अपने परिवार के साथ मैं अपने प्री बुकिंग धर्मशाला स्वर्गाश्रम पहुँच कर बहुत ही आनंदित हो गया।
सच पूछे तो बहुत दिनों के बाद मैं अपने परिवार के सदस्यों के साथ किसी टूर पर निकला था और उसपर से यह सभी दिव्य नज़ारा किसी भी सपने से कम नही था।
धर्मशाला, गंगा नदी के तट के किनारे ही बना हुआ था, जहाँ से कुछ कदम की दूरी पर मेरा कमरा था। यहाँ गंगा नदी का दर्शन करना अपने आप में इतिहास था और हो भी क्यों न यहाँ की गंगा और हम लोगो के मैदानी इलाकों की गंगा में साफ जल का फर्क जो हैं।
एक दिन के ऋषिकेश प्रवास के दौरान ही दूसरे दिन हम सभी लोग निजी टैक्सी बुक करके अपने उत्तराखंड के चार धाम की यात्रा में से सबसे महत्वपूर्ण दो धाम की यात्रा अर्थात केदारनाथ धाम और बद्रीनाथ धाम के लिए निकल पड़े।
ऋषिकेश से जब केदारनाथ की यात्रा शुरू किया गया तो मात्र 73 Km की दूरी पर उत्तराखंड के पंच प्रयाग में से पहला प्रयाग, देवप्रयाग पड़ा।
जी हाँ सही पकड़े देवप्रयाग में ही अलकनंदा नदी और भागीरथी नदी का संगम हैं और यही से दोनों नदियों की संयुक्त धारा गंगा नदी कहलाती हैं।
यहाँ का दर्शन करना अपने आप में एक तीर्थ करने से कम नही हैं। वो कहते हैं न कि "गंगा तव दर्शनात मुक्ति"।
ऋषिकेश से केदारनाथ की दूरी लगभग 230 से 232 Km की हैं। आगे बढ़ते हुये हम लोग का अगला पड़ाव पंचप्रयाग के दूसरे प्रयाग, रुद्रप्रयाग पर हमलोग की टैक्सी रुकी।
देवप्रयाग से रुद्रप्रयाग की दूरी मात्र 65 से 70 Km की हैं। यही पर अलकनंदा नदी में मंदाकिनी नदी का मिलन होता हैं। यहाँ का अद्धभुत नज़ारा हम सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया।
हमलोगों को गाइड करने के लिए ड्राइवर अंकल थे, जिन्होंने सभी जगहों की जानकारी पूरे डिटेल में देते रहते थे। रूद्रप्रयाग से एक रास्ता बद्रीनाथ धाम के लिए गया हैं, जबकि दूसरा रास्ता सीधे केदारनाथ को जाता हैं।
फिलहाल हमलोगों के टूर प्लान में पहले केदारनाथ की यात्रा करनी थी तब बाद में बद्रीनाथ धाम जाना था।
हमलोग शाम तक केदारनाथ की यात्रा शुरू करने के बेस कैंप सोनप्रयाग तक पहुँच कर अपनी प्राइवेट टैक्सी को यही पार्किंग स्थल पर पार्क कर दिये।
वैसे भी हम आपको यहाँ बताते चले कि आप सोनप्रयाग तक किसी भी साधन से पहुँच जाये जैसे कि सरकारी रोडवेज बस या निजी साधन से आपको सोनप्रयाग में ही रोक दिया जाएगा।
यहाँ से आपको दो विकल्प हैं केदारनाथ जाने के एक विकल्प तो हैली सेवा जो सोनप्रयाग से कुछ ही दूरी लगभग 16 Km पहले फाटा नामक स्थान से मिलेगा।
हैलीकॉप्टर की सुविधा के लिये आप GMVN की साइट- https://heliservices.uk.gov.in/
से बुकिंग कर सकते हैं। किराया जानने के लिए साइट का अवलोकन कर सकते हैं।
वही दूसरा विकल्प की आप सोनप्रयाग से लोकल टैक्सी के माध्यम से गौरीकुंड जाये।एक बात और समझ ले कि अगर आप सोनप्रयाग या उससे लगभग 1 Km पहले सीतापुर में रुकना चाहे तो यहाँ पर कई प्रकार के बजट वाले होटल या लॉज मिल जायेंगे रुकने के लिये।
हमलोगों को अपनी यात्रा दूसरे विकल्प यानी गौरीकुंड से करनी थी वह भी पैदल। हम सभी शाम 6 बजे तक गौरीकुंड पहुँच गये तथा यही रात्रि विश्राम के लिए होटल बुक कर लिए।
दूसरे दिन सुबह भोर में नहा धोकर कर अपनी यात्रा शुरू कर दिये। कुछ लोग गौरीकुंड में स्थित गर्म जल के कुंड में स्नान करके गौरीमाता मन्दिर के दर्शन करके भी शुरू करते हैं।
हमलोगों ने दर्शन पहले ही कर लिया था जिस दिन गौरीकुंड पहुँचे थे। अब यहाँ ध्यान देने वाली यह बात है कि या तो आप 18 Km की ट्रैक पैदल जाये या फिर पिट्ठू या पालकी से।
मेरे माता-पिता जी पिट्ठू से जबकि मैं और मेरा छोटा भाई पैदल ट्रैकिंग शुरू कर दिए। 18 Km के इस धार्मिक ट्रैकिंग में आपको सुंदर दृश्य और हिमालय पर्वत के दर्शन करने को मिल जायेगा।
पूरी ट्रैकिंग केदारघाटी होते हुये आपको पूरी करनी होती हैं। रास्ते भर आपको खाने-पीने की दुकान मिल जायेगी। आपको बस इस सुविधा के लिए थोड़े ज्यादा पैसे खर्च करने पड़ेंगे क्योंकि आपकी यात्रा एक पहाड़ी यात्रा हैं जो लगातार ऊँचाई पर जाने से खाने- पीने की वस्तुओं का महंगा होना लाज़मी हैं।
जंगमचट्टी होते हुए हमलोग रामबाड़ा पहुँचे, फिर लिनचोली के रास्ते पूरी यात्रा लगभग 8 घण्टे में इस अतिदुर्लभ ट्रैकिंग को पूरा कर लिया।
हमलोग दोपहर के लगभग 12:00 बजे तक मन्दिर के सामने थे। अपने को महादेव यानी केदारनाथ मंदिर के सामने पाकर बरबस ही आंखों में खुशी के आंसू छलक गये।

आंसू आना भी लाज़मी था क्योंकि बरसों पुराना बचपन का सपना आज दर्शन करने मात्र से पूरा होने वाला था। द्वादश ज्योतिर्लिंगों में शुमार यह ज्योर्तिलिंग सबसे ऊँचाई पर बना हुआ हैं और यहाँ की यात्रा सबसे कठिन हैं।
खैर मन्दिर के गर्भगृह का दर्शन मात्र आधे घण्टे में ही हो जाने के बाद प्रभु भोलेनाथ का धन्यवाद किया कि इतनी दूर आने के बाद आसानी से बाबा के दर्शन हो गये।
मन्दिर परिसर के आस- पास के दृश्य बड़े ही मनोरम और रोमांचित कर देने वाले हैं। मन्दिर के ठीक पीछे एक विशालकाय शिला खण्ड हैं, जिसे भीम शिला कहते हैं।
यह वही विशाल पत्थर हैं, जो 2013 कि त्रासदी के दौरान बहते हुए ठीक मन्दिर के पीछे कुछ फ़ीट की दूरी पर आकर रुक गया था और मन्दिर को कुछ नही होने दिया।
मन्दिर परिसर में बने हुये रेस्टोरेंट या ढाबे में भोजन करने के बाद अब मन केवल आराम करने को था। तब वही पास के एक धर्मशाला में पहले से कमरा बुक था वही आराम करने चले गये।
यहाँ पर श्रद्धालुओं के लिये समय- समय पर लंगर भी चलता हैं, जिसमें भक्त प्रसाद के रूप में भोजन कर सकते हैं।
यहाँ आपको हम यह बताते चले कि गढ़वाल मंडल विकास निगम(GMVN) की तरफ से श्रद्धालुओं को टेंट की भी सुविधा उपलब्ध कराई जाती हैं, जो आपके बजट में फिट बैठता हैं।
एक रात्रि का चार्ज 300 रुपये से 500 रुपया तक लिया जाता हैं, जिसकी बुकिंग ऑनलाइन या ऑफलाइन कर सकते हैं।
GMVN की आधिकारिक वेबसाइट
https://heliservices.uk.gov.in/ से बुकिंग कर सकते हैं। वर्तमान में किराया जानने के लिए साइट को विजिट कर सकते हैं।
एक बात और कहना चाहूँगा की जब भी आप किसी ऊँचाई पर जाते हैं, तो ऑक्सीजन लेवल थोड़ा कम हो जाता हैं, जिससे सांस लेने में थोड़ा बहुत दिक्कत आ जाती हैं, तो घबड़ाने की कोई जरूरत नही हैं।
मैदानी इलाकों से आये हुए श्रद्धालुओं में यह समस्या नॉर्मल हैं, जो अधिकतर देखने को मिल जायेगी, आप को कोई भी परेशानी होती हैं, तो तुरंत वहाँ मेडिकल टीम से मिले आपकी समस्या सॉल्व हो जायेगी।
वैसे भी जिसके नाथ भोलेनाथ उसे क्या हो सकता हैं। मन में शिव जी का नाम लेते रहिये और आगे बढ़ते रहिये।
रात्रि विश्राम के बाद दूसरे दिन सुबह 7:00 बजे तक हमलोगों ने वापसी कर लिए और जिस रास्ते से गये थे ठीक उसी तरह से और उसी रास्ते से केदार घाटी से सकुशल वापस गौरीकुंड आगये।
हाँ इतना जरूर था कि वापसी में कुछ घण्टा जाने की अपेक्षा कम लगे। हमलोग 6 घण्टे में वापस गौरीकुण्ड आ गये। यहाँ हमलोगों ने लंच किया और सोनप्रयाग आकर अपने टैक्सी से आगे के दूसरे धाम यानी बद्रीनाथ धाम के लिए निकल गये।
बद्रीनाथ धाम की सम्पूर्ण यात्रा विवरण हमारे ही लेख- "बद्रीनाथ धाम यात्रा का महत्व और जाने का सही समय" में पढ़ सकते हैं।
मंदिर में दर्शन का समय
मन्दिर सुबह की आरती के साथ 6:00 बजे तक भक्तों के दर्शन के लिए खुल जाता हैं और 12:30 दोपहर को मन्दिर के कपाट बंद कर दिये जाते हैं।
पुनः मन्दिर शाम 4:00 खुलता हैं, जो रात्रि 9:00 के बाद फिर से बन्द कर दिया जाता हैं।
केदारनाथ धाम की यात्रा कब करें?
मन्दिर के कपाट श्रद्धालुओं के लिए प्रत्येक वर्ष अप्रैल या मई के माह में अक्षय तृतीया (परशुराम जयंती- भारत में परशुराम मन्दिर का दर्शन यहाँ करे) को विधिवत पूजा अर्चन करने के बाद खोल दिया जाता हैं,
जो अक्टूबर या नवंबर माह में दीपावली के बाद भैयादूज पर पूरे विधि विधान से बन्द कर दिया जाता हैं। जब मन्दिर के कपाट सर्दियों में बन्द होता हैं, तो बाबा भोलेनाथ को पालकी या डोली में बिठा कर केदारघाटी से नीचे ऊखीमठ लाया जाता हैं।
पुनः अगले वर्ष विधि विधान से डोली में ही बिठा कर मन्दिर के खुलने पर वापस केदारनाथ धाम में लाया जाता हैं। यह कार्य प्रत्येक वर्ष किया जाता हैं।
इस प्रकार बाबा के दर्शन करने के लिये यात्रा करने का उचित समय अप्रैल या मई माह से अक्टूबर या नवम्बर माह तक होता हैं।
अब मेरी राय में आपको भीड़भाड़ से बचना हैं, तो यात्रा करने का सही समय सिंतबर से अक्टूबर या नवंबर तक सबसे उपर्युक्त समय हैं। हमलोगों ने भी अक्टूबर माह के शुरुआती दिनों में ही यात्रा किये थे।
रुकने और खाने-पीने की सुविधा
ऋषिकेश से केदारनाथ तक की यात्रा के दौरान रास्ते भर आपको पेट पूजा के लिए और रुकने यानी नाईट- स्टे के लिए बहुत सारे ऑप्शन हैं, जैसे होटल, धर्मशाला, लॉज या खाने- पीने के लिए रेस्टोरेंट या ढाबा खूब मिलेंगे बस आपको अपनी टैक्सी रोक कर खाने और रुकने की देरी हैं।
आप रास्ते में श्रीनगर, रूद्रप्रयाग, सीतापुर, सोनप्रयाग या गौरीकुण्ड कही पर भी यात्रा विश्राम कर सकते हैं। सभी जगहों पर या और कहीं रास्ते में सस्ते और बजट वाले होटल, धर्मशाला या लॉज मिल जायेंगे।
Note-
भारत में वैसे जितने भी मन्दिर हैं देवी या देवताओं के उसमें विधिवत पूजा- पाठ और आरती होती रहती हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश के वाराणसी में मणिकर्णिका घाट के समीप महादेव का एक मन्दिर हैं जिसका नाम "रत्नेश्वर महादेव" जहाँ पर मन्दिर में कोई पूजा- पाठ, आरती या किसी भी प्रकार का धार्मिक अनुष्ठान नही किया जाता हैं, यहाँ पर केवल दर्शन ही किया जाता हैं भक्तों के द्वारा।
आशा करता हूँ कि आपको जानकारी अच्छी लगी होगी तो फिर कब केदारनाथ धाम की यात्रा पर जा रहे हैं? और रास्ते का अनुभव हमें कमेंट्स करके जरूर बताइयेगा।
ॐ नमः शिवाय।
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