हिन्दू सनातन संस्कृति में देवी तथा देवता के पूजन और अर्चन करने का उचित फल तभी प्राप्त होता हैं, जब आप उनके जोड़े की पूजा- अर्चना पूरे विधि विधान से करें।
ऐसी पूजा और भी जरूरी तब हो जाती हैं जब कोई मनोरथ सिद्ध करना हो। बहुत सारे भक्त तो मन की शांति के लिए ही मन्दिर में पूजा करने आते हैं।
आज हम जिस मंदिर की बात कर रहे हैं वह हैं- "गौरीकुण्ड मंदिर" या "गौरीमाता मंदिर" यह मन्दिर पार्वती माता को समर्पित हैं।
आज आपका सोलो यात्री आपको इस मंदिर की पूरी जानकारी देने जा रहा हैं, बस आपको एक छोटा सा काम यह करना है कि यदि जानकारी पसंद आये तो-
हमें कमेंट्स जरूर करियेगा क्योंकि आपके कमेंट्स से हमें बल मिलता हैं और फिर आगे किसी अन्य टॉपिक पर लिखने का मन करता हैं।
तो चलिए फिर आज मेरे साथ भक्ति में रम जाइये और मन्दिर दर्शन करके आइये।
जब भी आप केदारनाथ धाम की यात्रा पर आयेंगे तो जो भी श्रद्धालु हैली सुविधा से दर्शन करना चाहते हैं, तो वे सभी फाटा, गुप्तकाशी या सिरसी ही रुकना पड़ेगा क्योंकि हेलीपैड यही पर बना हुआ हैं।
इस व्यवस्था से आप केदारनाथ मंदिर के दर्शन तो कर लेंगे, परन्तु गौरीकुंड मन्दिर के दर्शन नही कर पायेंगे और इस प्रसिद्ध मंदिर का दर्शन उनको ही नसीब होगा, जो केदारनाथ की यात्रा बेस पॉइंट गौरीकुण्ड से शुरू करते हैं।
गौरीकुण्ड से केदारनाथ धाम की ट्रैकिंग कुल 16 से 18 Km की हैं, जिसे भक्तों के द्वारा या तो पैदल या फिर पिट्ठू या पालकी से पूरा किया जाता हैं। मैंने इस प्रकार की धार्मिक यात्रा को "धार्मिक ट्रैकिंग" का नाम दिया हैं।
गौरीकुण्ड कहाँ स्थित हैं?
यह पवित्र गौरीकुण्ड यानी गौरीकुण्ड मन्दिर या गौरीमाता का मन्दिर भारत के उत्तराखंड राज्य के रूद्रप्रयाग जिले में सोनप्रयाग से लगभग 6 Km की दूरी पर स्थित एक छोटा सा कस्बा हैं।

यह उत्तराखंड के चारधाम में से एक धाम और पंचकेदार में से एक केदार, केदारनाथ मंदिर का आधार बिंदु (Base Point) हैं।
केदारनाथ धाम द्वादश ज्योतिर्लिंग में से एक ज्योर्तिलिंग हैं, जिसका जीर्णोद्धार आदिगुरु शंकराचार्य ने कराया था।
गौरीकुण्ड मन्दिर का इतिहास
गौरीकुण्ड मन्दिर मुख्य रूप से गौरीमाता अर्थात माता पार्वती को समर्पित हैं। इस मंदिर में अपनी केदारनाथ धाम के यात्रा सकुशल सम्पन्न हो उसकी मंगलकामना माता के आशीर्वाद से शुरू करते हैं।
आप को यहाँ यह बताने की आवश्यकता नही हैं कि माता पार्वती कौन थी? सर्वविदित हैं कि माँ पार्वती जी, भोलेनाथ की पत्नी हैं।
तभी तो भोलेनाथ और गौरीमाता सम्लित रूप से गौरीशंकर भी कहे जाते हैं और एक बात बता दे कि हमारे उत्तर भारत में शादी- विवाह या धार्मिक अनुष्ठान के समय सबसे पहले गणेश जी और गौरीशंकर की पूजा करके ही अन्य कार्य की शुरुआत होती हैं।
पुराणों और धर्म शास्त्रों में उल्लेखित कथा-कहानियों के अनुक्रम में गौरीकुण्ड मन्दिर का वर्णन कुछ इस प्रकार से मिलता हैं-
प्रथम कथा
यह कि माता पार्वती, सती माता के अगले जन्म का ही एक अवतार हैं, जिसमें यह कहा गया कि माता पार्वती जी अपने आराध्य देव शिव शम्भू को पुनः प्राप्त करने के लिए इसी स्थान यानी गौरीकुण्ड के पास मंदाकिनी नदी के तट पर घोर तपस्या की थी।
शंकर जी तपस्या से प्रसन्न हो कर इनको दर्शन दिए और इनके साथ विवाह जिस दिन को सम्पन्न हुआ तो आज भी उस पवित्र दिन को अर्थात शिवरात्रि के दिन को एक पर्व के रूप में मनाते हैं।
द्वितीय कथा
इस स्थान को लेकर एक कथा और प्रसिद्ध हैं कि माता पार्वती इस गौरीकुण्ड में स्नान करने को गई वही अपने तप से एक बालक का निर्माण किया जिसे श्री गणेश कहा जाता हैं, और उन्हें आदेश दिया कि आप द्वार पर खड़े होकर किसी को भी इस कुण्ड की तरफ आने मत दीजियेगा क्योंकि आपकी माता स्नान करने जा रही हैं।
माता भक्त श्री गणेश जी ने वहाँ खड़े हो कर पहरेदारी करने लगे तभी वहाँ भोलेनाथ आ गये और पार्वती जी से मिलने की इच्छा जताई परन्तु श्री गणेश जी शंकर जी को पहचान नही पाये और मिलने से रोक दिया तभी भोलेनाथ गुस्से में आकर इस बालक का सर, शरीर से अलग कर दिया।
स्नान करने के बाद जब माता पार्वती वापस आयी तो बालक को मृत पा कर शिव जी से बालक को पुनः जीवित करने का आग्रह किया तब भोलेनाथ ने हाथी के सर को उस बालक से जोड़ कर उस नन्हे बालक को पुनः जीवित कर दिया तब वो बालक गजानन या गणपति गणेश जी कहलाये।
तब से इस स्थान का विशेष महत्व हो गया और इस स्थान पर पार्वती जी का भव्य मंदिर बन गया। आज भी यहाँ हज़ारों श्रद्धालुओं का दर्शन करने के लिए तांता लगा रहता हैं। खासतौर से वे सभी श्रद्धालु जो केदारनाथ मंदिर की यात्रा पर आते हैं तो इस मंदिर में दर्शन जरूर करते हैं।
गौरीकुण्ड में गर्म जल का एक कुण्ड हैं
आप यहाँ कभी आये चाहे गर्मी का महीना हो या फिर कड़ाके की सर्दी वाला मौसम हो, यहाँ गौरीकुण्ड में गर्म जल मिलेगा जहाँ इस पवित्र कुण्ड श्रद्धालुओं के द्वारा स्नान करके तथा गौरीमाता के दर्शन करने के बाद अपनी केदारनाथ मंदिर की यात्रा को शुरू करते हैं।
गौरीकुण्ड कैसे पहुँचे?
गौरीकुण्ड मन्दिर पहुँचने के कई साधन हैं जिसमें-
निकटम रेलवे स्टेशन
अगर निकटम रेलवे की बात करें तो योगनगरी ऋषिकेश यहाँ पहुँचने के लिए सबसे निकट का रेलवे स्टेशन हैं। हाँ इतना जरूर हैं कि ऋषिकेश रेलवे स्टेशन पर अभी ज्यादा ट्रेन का ठहराव नही हैं।
आप के लिए नज़दीक का अन्य रेलवे स्टेशन हरिद्वार और देहरादून हैं, जहाँ पर भारत के प्रमुख स्थानों से सीधा रेल सुविधा उपलब्ध हैं।
निकटम हवाई अड्डा
गौरीकुण्ड पहुँचने के लिए नज़दीकी एयरपोर्ट देहरादून का जॉली ग्रांट एयरपोर्ट हैं, जहाँ से गौरीकुण्ड की दूरी लगभग 230 Km हैं।
सड़क मार्ग भी सबसे अच्छा विकल्प हैं
आप चाहे ट्रेन से आये या फिर हवाई जहाज से लेकिन अंत में ऋषिकेश या हरिद्वार या देहरादून से सरकारी बस, टैक्सी या निजी साधन से ही सड़क मार्ग के द्वारा गौरीकुण्ड जाना होगा।
रास्ते में आपको उत्तराखंड के पंचप्रयाग और माँ धारी देवी का मन्दिर जरूर मिलेगा जिसके दर्शन भी आप करके अपनी यात्रा को यादगार बना सकते हैं।
प्रमुख स्थान से गौरीकुण्ड की दूरी
- हरिद्वार से- 236 Km
- देहरादून से- 245 Km
- ऋषिकेश से- 210 Km
- रूद्रप्रयाग से- 75 Km
- सोनप्रयाग से- 6 Km
- केदारनाथ से- 18Km
- बद्रीनाथ से- 225 Km
- चोपता से- 73 Km
- माना गांव से- 229 Km
- अल्मोड़ा से- 262 Km
- लखनऊ से- 940 Km
- वाराणसी से- 1252 Km
- उज्जैन से- 1225 Km
गौरीकुण्ड दर्शन करने कब जाये?
यह स्थान हिमालय पर्वत के समीप का क्षेत्र हैं, जहाँ पर सर्दी में बहुत ठंड होती हैं। तो जब प्रत्येक वर्ष केदारनाथ की यात्रा शुरू होती हैं अर्थात अप्रैल माह से नवम्बर माह के मध्य ही आप यहाँ जा सकते हैं।
प्रत्येक वर्ष अक्षय तृतीया यानी परशुराम जयंती से शुरू होकर दीपावली के दूसरे दिन भैयादूज तक का समय श्रद्धालुओं के लिए सबसे उपयुक्त होता हैं।
मन्दिर के कपाट सुबह 6:00 बजे के बाद और रात्रि में 7:00 बजे के बाद बन्द हो जाता हैं। माता जी के मन्दिर में आरती प्रतिदिन सुबह और शाम होती हैं। मन्दिर के प्रमुख पुजारी का निवास स्थान यही मन्दिर के परिसर में ही बना हुआ हैं।
गौरीकुण्ड मन्दिर पर विशेष मेला का आयोजन
हर वर्ष शिवरात्रि के दिन, सावन का पवित्र महीना और नवरात्रि के दिनों में भक्तों की भीड़ सबसे ज्यादा होती हैं।
यहाँ इन विशेष दिनों में कई धार्मिक अनुष्ठानों और पर्व का आयोजन किया जाता हैं और इन विशेष दिनों में मन्दिर में दर्शन करने का अपना अलग ही महत्व हैं।
गौरीकुण्ड में ठहरने के विकल्प
जब आप सड़क मार्ग से गौरीकुण्ड आयेंगे तो 7 Km पहले सीतापुर या 6 Km पहले सोनप्रयाग तथा स्वयं गौरीकुण्ड पर रुकने के कई विकल्प हैं जैसे- धर्मशाला, होटल और लॉज की व्यवस्था मिल जायेगी जहाँ आप अपने बजट के अनुरूप रुक सकते हैं।
GMVN यानी गढ़वाल मंडल विकास निगम की ओर से भी रुकने के लिए होटल और डॉरमेट्री की व्यवस्था हैं। जिसकी बुकिंग ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों प्रकार से हैं।
ऑनलाइन बुकिंग के लिए GMVN की वेबसाइट- https://heliservices.uk.gov.in/ पर विजिट कर सकते हैं।
गौरीकुण्ड पर खाने-पीने की व्यवस्था
गौरीकुण्ड की यात्रा के दौरान रास्ते भर या सोनप्रयाग के पार्किंग स्थल के पास या फिर गौरीकुण्ड पर आपको खाने- पीने की कोई दिक्कत नही होने वाली हैं।
शुद्ध शाकाहारी भोजन, नाश्ता की व्यवस्था आपके बजट के हिसाब से मिल जायेगी। यहाँ आपको जगह-जगह रेस्टोरेंट, ढाबा या खाने के लिए होटल आसानी से मिलेंगे बस आपको अपने सहूलियत के अनुसार खाने की देरी हैं।
जय माता की! जय गौरीमाता! जय केदारनाथ!
यात्रा का अनुभव साझा करें