आज उत्तर भारत ही नही बल्कि सम्पूर्ण भारत में अगर शिव के साथ शक्ति की पूजा एक जगह की जाती हैं, तो वह स्थान झारखंड के देवघर में हैं जिसे बाबा वैधनाथ धाम या बाबा बैजनाथ का मन्दिर हैं।
यह मन्दिर भारत में स्थित द्वादश ज्योतिर्लिंग में से एक ज्योर्तिलिंग हैं। यह भारत का एक मात्र ऐसा मन्दिर हैं जिसके गर्भगृह मन्दिर के शिखर और माता पार्वती के मन्दिर के शिखर को लाल कपड़े से धागा बांध कर गठबंधन किया जाता हैं।
बाबा वैधनाथ धाम मंदिर कहाँ स्थित हैं?
भारत के झारखंड राज्य में संथाल परगना के अंतर्गत जिला देवघर में शहर के बीचों बीच यह मन्दिर स्थित हैं। यह एक अतिप्राचीन मन्दिर परिसर हैं, जिसके गर्भगृह में शिवलिंग धरती में भोले के अरघा में दबा हुआ हुआ हैं।
वैधनाथ धाम के लिए कांवड़ यात्रा कहाँ से शुरू होती हैं?
बाबा वैधनाथ धाम या बैजनाथ धाम की कावंड़ यात्रा को श्रद्धालु दो प्रकार से पूरा करते हैं। इस यात्रा को आप धार्मिक ट्रैकिंग भी कह सकते हैं.
पहली यात्रा बहुत कठिन मानी जाती हैं, जिसमें शिवभक्त अपने यहाँ से केसरिया रंग का ड्रेस पहन कर हाथ में कावंड़ ले कर ट्रेन, बस या निजी साधन से बिहार के भागलपुर जिले में स्थित सुल्तानगंज आते हैं।
यह पवित्र स्थान गंगा नदी के किनारे बसा एक धार्मिक स्थल हैं, जो कि यहाँ से गंगा नदी उत्तरवाहिनी हैं।
यहाँ बने घाट पर पुण्य की डुबकी लगा कर और गंगाजल पात्र में भर कर पैदल यात्रा करते हुए तथा "बोलबम" का जयकारा लगाते हुए लगभग 100 से 101 Km की दूरी तय करके बैजनाथ धाम जा कर शिवलिंग पर जल चढ़ाते हैं।
यात्रा के दूसरे प्रकार में भक्तगण अपने निवास स्थान से अपने बजट के अनुरूप जैसे ट्रेन, बस या निजी साधन द्वारा सीधे मन्दिर धाम पर पहुँच कर मन्दिर परिसर में स्थित कुआँ से पवित्र जल भर कर शिवलिंग पर चढ़ा देते हैं।
वैधनाथ मन्दिर दर्शन करने कब जाये?
बैजनाथ धाम दर्शन करने आप वर्ष भर में अपने सहूलियत के हिसाब से कभी भी जा सकते हैं। लेकिन भक्ति भाव में बाबा के दर्शन करने के लिए प्रत्येक वर्ष में श्रावण मास जिसे सावन का महीना बोलते हैं।
यह पूरे एक माह का समय है जो जुलाई से अगस्त माह में पड़ता हैं और इस समय श्रद्धालुओं की भीड़ लाखों तक होती है जल चढ़ाने के लिए जाते हैं।
इसके अलावा महाशिवरात्रि के दिन भी यहाँ जबरदस्त भीड़ होती हैं। देश से ही नही विदेशों से भी लोगो आना होता हैं महादेव के दर्शन के लिए।
अगर आप शांत माहौल में दर्शन करना चाहते हैं तो ऊपर बताये गए महीने को छोड़ कर कभी भी जा सकते हैं दर्शन करने के लिए।
इसके अलावा वर्ष भर में प्रत्येक सोमवार और प्रदोष व्रत में भी दर्शन करने भक्त पहुँचते हैं। इस दिन और दिनों के अपेक्षा ज्यादा भीड़भाड़ मिलेगा देवघर में।
वैधनाथ मंदिर का इतिहास
मन्दिर का इतिहास बहुत पुराना हैं। प्राचीन काल में रावण जो कि बहुत बड़ा शिवभक्त था। रावण ने कैलाश पर्वत पर वर्षों तपस्या करके आशुतोष यानी शिव जी को प्रसन्न कर के वरदान में स्वयं शिव जी मांग लिया कि आपको शिवलिंग के रूप में अपने देश श्रीलंका में ले जाकर स्थापित करूंगा।
लेकिन वर्तमान के झारखंड के जंगलों से होता हुआ शिवलिंग को लेकर जा रहा होता हैं लेकिन उसे देवघर के स्थान पर जोरो की लघुशंका लगी लेकिन-
इस शिवलिंग को देते हुए शंकर जी ने यह भी कहा था कि यदि इसे लेजाते समय कही रख दिये तो वही यह शिवलिंग स्थापित हो जाएगा फिर तुम इसे हिला भी नही पाओगे इस शर्त को जानते हुए वह वही पास बैजू नामक ग्वाले को जो अपनी गाय चरा रहा था को दे दिया पकड़ने के लिए और अपने लघुशंका करने चला गया।
शिवलिंग इतना भारी था कि इस भार को सह नही पाया और वही धरती पर ग्वाले ने रख दिया जिसके फलस्वरूप वह शिवलिंग वही स्थापित हो गया।
रावण वापस आने पर उस शिवलिंग को उठा नही पाया और क्रोधित होकर उसे वही अपने अंगूठे से धरती में धंसा दिया जिससे कि शिवलिंग धरती में धस गया।
पुरानी मान्यताओं के अनुसार वह ग्वाला और कोई नही श्री गणेश जी थे। इस प्रकार से वह शिवलिंग आज भी उसी अवस्था में स्थापित हैं, जहाँ पर आज एक प्राचीन मंदिर बन गया हैं।
आगे चलकर उस स्थान पर विश्कर्मा भगवान ने बहुत सुंदर मन्दिर का निर्माण कराया था। लेकिन आधुनिक समय में इस मंदिर का निर्माण राजा पूरनमल ने कराया था।
श्रावण मास (सावन मास) का प्रसिद्ध मेला
देवघर सावन महीने में होने वाले कावड़ यात्रा के लिए विशेष तौर पर जाना जाता हैं। पूरे शहर में मेले जैसा उत्सव मनाया जाता हैं।
पौराणिक मान्यताओं पर यह बात ख़ास रूप से प्रचलित हैं कि जो भी भक्त देवघर स्थित शिवलिंग के दर्शन करने के बाद माता पार्वती के दर्शन करके दुमका जिले में स्थित बासुकीनाथ मन्दिर(देवघर से मात्र 45 Km की दूरी पर स्थित हैं) में दर्शन करने नही जाता हैं तो उसकी यात्रा अधूरी मानी जाती हैं।
अतः आपसे निवेदन है कि बैजनाथ धाम में जल चढ़ाने के बाद बासुकीनाथ के दर्शन करने जरूर जाये।
वैधनाथ धाम - देवघर कैसे पहुँचे?
बैजनाथ धाम यानी देवघर शहर का मुख्य रेलवे स्टेशन जसीडीह जंक्शन हैं। यह रेलवे स्टेशन नई दिल्ली- कानपुर- प्रयागराज- पंडित दीनदयाल उपाध्याय जंक्शन- पटना- हावड़ा मुख्य रेल लाइन पर स्थित एक बड़ा स्टेशन हैं, जहाँ पर सभी ट्रेन (राजधानी से जनशताब्दी तक) का ठहराव हैं।
स्टेशन से उतर कर आप मात्र 7 से 8 Km की दूरी टेम्पो से तय कर के आसानी से पहुँच सकते हैं।
बस से भी अच्छी कनेक्टिविटी हैं जिससे आप सीधे देवघर पहुँच सकते हैं। पूरे बिहार, झारखण्ड और पश्चिम बंगाल से बस की सुविधा मिल जाएगी।
निकटम हवाई अड्डा - जय प्रकाश नारायण अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा देवघर से निकटतम हवाई अड्डा है, जो पटना में स्थित हैं। इस हवाई अड्डे से देवघर की दूरी लगभग 262 Km की हैं।
अगर कम खर्च में पहुँचने की बात की जाय तो ट्रेन की सुविधा सबसे सही हैं।
प्रमुख स्थानों से देवघर की दूरी
वासुकीनाथ से- 45 Km
रांची से- 254 Km
जमशेदपुर से- 266 Km
दार्जलिंग से- 435 Km
कोलकाता से- 324 Km
गंगटोक से- 487 Km
पटना से- 255 Km
सासाराम से- 342 Km
वाराणसी से- 470 Km
लखनऊ से- 747 Km
देवघर में कहाँ रुके?
देवघर में श्रावणी मेले का आयोजन प्रतिवर्ष होता हैं और इसके अलावा भी वर्ष भर दर्शन करने वालों की लाखों संख्या में यहाँ आते रहते हैं, तो इस भीड़ को ध्यान में रख कर हज़ारों की संख्या में रहने तथा रुकने के लिए कई धर्मशाला, होटल, होम- स्टे, आप को मिल जायेगा।
खाने-पीने के लिए रेस्टोरेंट, ढाबा के साथ जगह जगह पर स्ट्रीट फूड एन्जॉय करने के बेहतरीन ऑप्शन मिलेगा। बिहार की तरह झारखंड में भी बाटी-चोखा की दुकान बहुत मिलेगा जिसे आप एक बार टेस्ट जरूर करें।
अब देवघर में भी रुकने के लिए हॉस्टल और पेइंग गेस्ट की सुविधा उपलब्ध हैं, आप इसके लिए कम खर्च में भी अच्छी सुविधा प्राप्त करके रुक सकते हैं।
देवघर से क्या खरीदे?
आप देवघर से बांस लकड़ी से बने डोलची, पूजा पात्र के साथ ही बड़े आकार का खाँची (डाल- दौरी) खरीद सकते हैं। यहाँ से आप लोहे की बनी कड़ाही, खल-बट्टा इत्यदि भी जो आपके किचन से संबंधित सामान को भी उचित रेट पर खरीद सकते हैं।
देवघर में खाने-पीने का क्या प्रसिद्ध हैं?
देवघर का सबसे प्रसिद्ध प्रसाद हैं, जो चूरा (चूड़ा चावल का बना हुआ) और प्योर खोये का बना हुआ पेड़ा जो सभी के मन को भाता हैं। दूर-दूर से लोग इसे खरीद कर अपने लिए ले जाते हैं।
इस पेड़े की सबसे बड़ी ख़ासियत ये है कि इसे बहुत दिनों तक रख कर खाया जा सकता हैं यह इतना शुद्ध होता हैं कि जल्दी खराब नही होता जिसके कारण इसे कई दिनों तक स्टोर कर के प्रयोग में लाया जाता हैं।
यदि आप देवघर दर्शन के लिये जाते हैं, तो इस पेड़ा रूपी प्रसाद को जरूर खरीद कर खाये और घर के बाकी लोगों को भी खिलाये।
आशा करता हूँ कि आज का लेख आप सभी को बहुत पसंद आया होगा, तो हमें कमेंट्स करना मत भूलियेगा और साथ ही साथ आपने इस तीर्थ स्थल की यात्रा की हैं पहले से तो अपना यात्रा का अनुभव हमसे जरूर साझा करें।
धन्यवाद।
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