आज आपको बहुत ही मज़ा आने वाला हैं इसकी भी पूरी गारंटी हैं, क्योंकि आज का लेख एक आध्यात्मिक और धार्मिक यात्रा के ऊपर हैं। आप सभी का प्रिय साथी सोलो ट्रैवलर सूर्य प्रकाश एक नई राह पर आपको ले कर चल रहे हैं।
इससे पहले भारत में ट्रैकिंग कैसे और कहाँ किया जाता हैं पर चर्चा करने के बाद हम सब ट्रैकिंग के दूसरे भाग यानी धार्मिक ट्रैकिंग कहाँ- कहाँ होता पर चर्चा किया जा रहा हैं।
ट्रैकिंग के लिए क्या तैयारी करना चाहिए और कौन ट्रैकिंग कर सकता हैं इत्यादि सब जानकारी जानने के लिये मेरे पिछले लेख "भारत में ट्रैकिंग कैसे करें? और कहाँ-कहाँ होता हैं?" का अवलोकन करें।
धार्मिक ट्रैकिंग क्या होता हैं?
जब हम ट्रैकिंग के जरिये किसी पहाड़ी पर पहुँच कर मन्दिर में दर्शन करते हैं, तो-
"एक पंथ दो काज"
वाली मुहावरा सिद्ध होती हैं, अर्थात ट्रैकिंग करने वाले को एक्टिविटी करने का मौका मिलता हैं, तो वही दूसरे तरफ एक से बढ़ कर एक प्रसिद्ध मंदिर में दर्शन करने को मिल जाता हैं।
हो सकता हैं कि धार्मिक ट्रैकिंग करने वाले अधिकतर उम्र वाले होते हैं, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में यह देखा गया हैं कि बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक में धार्मिक ट्रैकिंग का एक ट्रेंड चल रहा हैं।
यह पर्यटन की दृष्टि से बहुत ही अच्छी बात हैं या एक सकारात्मक विकास हैं।
इस प्रकार की ट्रैकिंग से पर्यटन को बढ़ावा तो मिलेगा ही साथ में सभी पीढ़ी को आध्यात्मिक और सांस्कृतिक के रूप में अपने धर्म से जुड़ने के साथ ही जानने का बेहतरीन मौका भी मिल रहा हैं।
भारत में धार्मिक ट्रैकिंग के महत्वपूर्ण स्थान
वैसे बहुत से हिल स्टेशन हैं जहाँ ट्रैकिंग का मजा लिया जा सकता है जैसे गंगटोक (सिक्किम), कुल्लू घाटी, कंचनजंघा इत्यादि। लेकिन धार्मिक ट्रैकिंग के लिए कुछ प्रमुख धार्मिक स्थल है जो पहाड़ियों में स्थित हैं।
माता वैष्णों देवी धाम
माता के दरबार जाने में जो सुखद अनुभूति होती हैं कि क्या कहना, इसका अहसास आपको स्वयं वहाँ जाकर ही पता चल सकता हैं।
माता रानी जम्मू और कश्मीर राज्य के रायसी जिले के अंतर्गत कटरा में प्रसिद्ध त्रिकुट पर्वत पर विराजमान हैं।
कटरा के बाणगंगा से माता दरबार की ट्रैकिंग जो कुल 14 KM की ट्रेक हैं, को श्रद्धालु बड़े ही तन, मन से पूरी करते हैं।
यह ट्रेक पथरीला न होकर के प्लेन बना हुआ रास्ता हैं, जिस पर से भक्तगण हमेशा चलते रहते हैं।
रास्ते भर खाने- पीने की बहुत ही अच्छी व्यवस्था हैं। आपको आराम करने से लेकर रुकने या फिर जन सुलभ से ले कर सबकी व्यवस्था वह भी बेहतर ढंग से मिल जायेगी।
भैरों घाटी
वैष्णों माता के दर्शन के बाद भक्त अपनी आगे की यात्रा भैरों घाटी के लिए शुरू करते हैं। जी हाँ,
दोस्तों जब आप वैष्णोदेवी मन्दिर से ऊपर 2 KM से 2.5 KM की ट्रैकिंग कर के भैरव मंदिर पहुँचा जा सकता हैं।
पूरे रास्ते में मनमोहन प्राकृतिक दृश्यों को देखते ही आपकी थकान छू मंतर हो जाती हैं।
Note- अधिकतर श्रद्धालुओं के द्वारा वैष्णोदेवी मन्दिर और भैरव मन्दिर का मिला कर कुल 16 किलोमीटर का अद्धभुत ट्रेक, जो कि-
जाने तथा आने को मिला कर लगभग 32 KM का हो जाता हैं, जो जीवन पर्यंत आपको याद रहता हैं।
मैहर देवी धाम
इस मंदिर को माँ शारदा देवी मंदिर भी कहा जाता हैं। यह धाम मध्य प्रदेश के सतना जिले के मैहर नामक स्थान पर स्थित हैं।
मन्दिर पर पर पहुँचने के लिए लिए लगभग 1000 से अधिक सीढ़ी बनी हुई हैं। माता जी का प्राचीन मंदिर जो शक्तिपीठ में से एक हैं, त्रिकुट पर्वत पर बना हुआ हैं।
यहाँ ट्रैकिंग के लिए जो रास्ता हैं, पर्वत पर नीचे से लगभग आधा किलोमीटर का बना हुआ हैं, जिसे सभी श्रद्धालु हँसते हुए माता का जयकारा लगाते हुए पूरी कर लेते हैं।
केदारनाथ
केदारनाथ मंदिर आदि देव शिव को समर्पित द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक ज्योर्तिलिंग हैं। यहाँ की यात्रा चार धाम और पंच केदार में से एक मानी जाती हैं।
उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में गौरी कुंड से शुरू होने वाले ट्रैकिंग की लम्बाई लगभग 16 KM से 18 KM तक कि हैं।
आपकी ट्रैकिंग केदार घाटी में जाने के लिए शुरू होती हैं। पूरी तरह से आप हिमालय गोंद में अपनी यात्रा को पूर्ण करते हैं।
यह मंदिर हिमालय श्रेणी के गोंद में स्थित अति प्राचीन मंदिर में से एक हैं। यहाँ की यात्रा प्रत्येक वर्ष अक्षय तृतीया (परशुराम जयंती) पर शुरू हो कर दीवाली के बाद भैया दूज पर बन्द हो जाती हैं।
इस मंदिर के दर्शन के लिए ट्रैकिंग करना अपने आप में बहुत ही सौभाग्य की बात होती हैं।
वो कहते हैं न कि मन्दिर में दर्शन करना उसी को नसीब होता हैं, जिसे भगवान बुलाते हैं।
पूरे ट्रैकिंग में प्राकृतिक झरने और हरे- भरे दृश्य मन को मोहने वाले हैं। रास्ता पथरीला हैं लेकिन पैदल चलने वालों के हौसलों के आगे यह मंज़िल पाना कोई बड़ी बात नही होती हैं।
तुंगनाथ
तुंगनाथ मन्दिर पंच केदार में से एक मन्दिर हैं, जो सबसे ऊंचाई पर स्थित शिव का मन्दिर हैं। उत्तराखंड के चोपता नामक हिल स्टेशन से इसकी ट्रैकिंग की जाती हैं।
यह ट्रैकिंग चोपता से लगभग 5 KM की होती हैं। यहाँ भी रास्ता पथरीला हैं और चढ़ाई भरा हैं, परन्तु ट्रेक चलने लायक हैं।
ट्रैकिंग करने में बहुत ही एन्जॉय करेंगे और आपको दर्शन भी होगा। यहाँ भी वर्ष भर ट्रैकिंग नही होती है।
सबसे अच्छा समय मई से अक्टूबर तक कि मानी जाती हैं।
गंगोत्री & यमनोत्री
उत्तराखंड में स्थित चार धाम में से गंगोत्री और यमुनोत्री हैं जहाँ पर ट्रैकिंग किया जाता हैं। यह भी हिमालय की गोंद में स्थित धाम हैं।
गंगोत्री धाम
उत्तरकाशी से मात्र 90 से 100 KM की दूरी पर स्थित गंगोत्री मन्दिर बना हुआ हैं। अगर आप वास्तविक गंगा माता के उदभव स्थान गोमुख की ट्रैकिंग करना चाहते हैं, तो लगभग 19 से 20 KM की दूरी पैदल तय करनी होगी।
पूरा रास्ता पथरीला और बर्फ वाला हैं, जिसे श्रद्धालु तय करते हैं। ये बात अलग है कि सभी लोग यहाँ की ट्रैकिंग नही करते हैं।
सही समय मई से अक्टूबर तक का होता हैं। मन्दिर की बात करे तो अक्षय तृतीया से दीवाली तक खुला होता हैं।
यमुनोत्री धाम
उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में स्थित यह मंदिर भी अक्षय तृतीया से दीवाली तक खुला होता हैं। इसकी ट्रैकिंग भी जानकी चट्टी या जानकी तट से शुरू होकर लगभग 6 KM के रास्ते को तय किया जाता हैं।
यह ट्रेक भी प्राकृतिक नज़रों से भरपूर हैं, जहाँ आप अनेक रमणीय दृश्यों को अपने कैमरे में कैद कर सकते हैं।
मुंडेश्वरी धाम
बिहार के भभुआ जिले में कैमूर पर्वत श्रेणी के पवंरा पहाड़ी पर स्थित मुंडेश्वरी माता का अतिप्राचीन मन्दिर हैं।
मुंडेश्वरी धाम पर ट्रैकिंग करने के लिए लगभग 500 मीटर का पहाड़ी रास्ता बना है। यहाँ पर सीढ़ी भी बना हुआ हैं, परन्तु ट्रैकिंग करने का लुत्फ़ तो आपको पैदल रास्ते पर मिलेगा।
राजगीर शांति स्तूप
यह बौद्ध धर्म का पवित्र स्थान बिहार के नालन्दा जिले के राजगीर (राजगृह) से लगभग 500 मीटर की ऊँचाई पर रत्नागिरी पहाड़ी पर स्थित शांति स्तूप हैं।
यह ट्रेक भी उन सैलानियों को बहुत भाता हैं, जो बौद्ध धर्म को मानने वाले हैं क्योंकि वे यहाँ पर ट्रैकिंग कर के पूजा- अर्चना करते हैं।
यहाँ पर ट्रैकिंग सर्दी के मौसम में किया जाता हैं क्योंकि यह पहाड़ी गर्मी वाली हैं, अतः सर्दी में लोग ट्रैकिंग करते हैं।
ठंड के समय में यहाँ आने पर सुखद अनुभूति होती हैं। सैलानी पैदल यहाँ आकर बहुत शांति का अनुभव करते हैं।
राजगीर में अनेक होटल, धर्मशाला, लॉज इत्यादि बने हुए हैं, जो रुकने के काम आती हैं।
राजगीर हिन्दू, बौद्ध और जैन धर्म तीनो का संगम नगरी हैं।
अमरनाथ गुफा
अमरनाथ की पवित्र गुफा जम्मू & कश्मीर राज्य के अनंतनाग में स्थित हैं। अमरनाथ की गुफा भगवान शिव को समर्पित मन्दिर हैं।
यहाँ पर प्राकृतिक हिम शिवलिंग बनता है श्रावण माह में और यहाँ सावन के पवित्र महीने में लगभग एक माह की पवित्र यात्रा होती हैं।
श्रद्धालुओं के द्वारा यहाँ पैदल चलकर यानी ट्रैकिंग कर के पवित्र गुफा के दर्शन करते हैं।
अमरनाथ की यात्रा दो रास्तो से किया जाता हैं। एक रास्ता सोनमर्ग बलटाल से शुरू होती हैं, जो लगभग 14 से 15 KM की ट्रैकिंग कर के पहुँचा जा सकता हैं।
यह रास्ता दुर्गम के साथ ही सुरक्षित भी नही हैं, लेकिन बहुत से लोग इस शार्ट कट रास्ते को चुनते हैं अपनी यात्रा को पूर्ण करने के लिए। प्राकृतिक नज़रों और बर्फ से ढके इस रास्ते की ट्रैकिंग एक अलग एहसास दिलाता हैं।
दूसरा रास्ता पहलगाम से शुरू होता हैं। यहाँ से दर्शनार्थी पैदल लगभग 38 से 40 KM की दूरी कुल तीन दिन में पूरा करके पवित्र गुफा के दर्शन करते हैं।
यह यात्रा कई टुकड़ियों में बटा हुआ हैं अर्थात जब हम सब पहलगाम से यात्रा शुरू करते हैं, तो 8 KM की दूरी पर स्थित चंदनवाड़ी पहुँचते है। यहाँ 14 KM की दूरी पर स्थित शेषनाग झील पहुँचते हैं फिर यहाँ से 8 KM पर दूर पंचतरणी पर पहुँचते हैं, अब यहाँ से 8 KM की दूरी पर अमरनाथ गुफा रह जाता हैं।
पूरा रास्ता ही खतरनाक और जोखिम भरा हुआ हैं, लेकिन एडवेंचर से भरपूर भी हैं। प्राकृतिक दृश्यों को अपने यादों में समेटे हुए एक इतिहास लिखने के लिए यात्री ट्रैकिंग करता हैं।
शिवखोड़ी गुफा
जम्मू कश्मीर के रॉयसी जिले में स्थित यह धार्मिक पवित्र गुफा लार्ड शिव के लिए प्रसिद्ध हैं। यहाँ पर प्राकृतिक शिवलिंग की पूजा की जाती हैं।
आप अपनी ट्रैकिंग रनसू से लगभग 4 KM की पैदल चलकर पवित्र शिवखोड़ी गुफा हैं। यहाँ वैसे तो वर्ष भर यात्रा चलती हैं लेकिन महाशिवरात्रि पर अत्यधिक भीड़ होती हैं।
इस पवित्र गुफा की ट्रैकिंग करना भी अपने आप में रोमांच से परिपूर्ण हैं। यहाँ भी ट्रैकिंग करने वाले भक्त बढ़- चढ़ कर हिस्सा लेते हैं।
सतोपंथ
उत्तराखंड के चमोली जिले में बद्रीनाथ धाम से 3 KM की दूरी पर माणा गांव हैं। आपकी ट्रैकिंग इस गांव से शुरू होगी, जो लगभग 16 से 18 KM की पैदल तथा चढ़ाई वाले रास्ते से होकर सतोपंथ पहुँचा जा सकता हैं।
सतोपंथ एक पर्वतीय झील हैं। इस क्षेत्र की मान्यता यह हैं कि पांडव यही से स्वर्ग के लिए प्रस्थान किये थे।
यहाँ की ट्रैकिंग भी आप गर्मी के महीने में करें तो ही प्राकृतिक दृश्यों का दीदार किया जा सकता हैं नही तो ठंड के समय बर्फ के कारण यहाँ की ट्रैकिंग बन्द रहती हैं।
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