होली तो आपने बहुत खेली और देखी होगी, परन्तु आज जिस प्रकार की होली का जिक्र करने जा रहे हैं-
"वह होली न तो रंग से, न ही पानी से, न ही गुलाल से और न ही फूलों से खेली जाती हैं।"
यह होली तो "भस्म से या चिता भस्म" से खेली जाती हैं, तभी तो इस विचित्र होली को ही "मसाने की होली" के नाम से जानते हैं, जो पूरे भारत में और विदेशों में बहुत ही प्रसिद्ध हैं।
जी हाँ दोस्तो आप आश्चर्य चकित हो रहे होंगे कि क्या ऐसी भी होली भला खेली जाती हैं? या ऐसी होली कौन खेलता होगा? या कहाँ खेली जाती है? कब खेलते है?
इन सभी प्रश्नों के उत्तर मैं सूर्य प्रकाश आपका सोलो यात्री आज और अभी अपने इस हिंदी में लेख के माध्यम से देने जा रहा हूँ।
यदि आपको होली के बारे में विधिवत जानना हैं, तो मेरे इस लेख को एक बार जरूर पढ़ें "भारत में होली का त्योहार कितने प्रकार से मनाते हैं?"
वही दूसरी ओर यदि आपको लट्ठमार होली के बारे में विस्तार पूर्वक जानना हो तो मेरे इस लेख "बरसाने की विश्व प्रसिद्ध लट्ठमार होली हैं" का जरूर अवलोकन करें।
सच पूछे तो मेरा भी सबसे पसंदीदा त्योहार होली हैं। मुझे रंग खेलना, फिर शाम को अबीर गुलाल एक दुसरो को लगाना बहुत अच्छा लगता हैं।
भारत में होली का त्योहार बहुत ही दिलचस्प तरीके से और विभिन्न प्रकार से मनाया जाता हैं।
होली त्योहार के रंग भरी बाल्टी में प्रेम, सौहार्द को मिलाकर और भाई चारे का संदेश देने वाले इस प्रसिद्ध पर्व को बड़े ही धूम धाम से मनाया जाता हैं, जिसे सभी धर्म के लोग मनाते हैं।
आमूमन सभी लोग होली का त्योहार अपने घर या इष्ट मित्रो तथा रिश्तेदारों के साथ मिलकर रंग, गुलाल, हुड़दंग और भारतीय पकवान के साथ मनाते हैं, परंतु आज हम जिस होली की बात करने जा रहे उसमें जगह मात्र केवल काशी का महाश्मशान घाट- मणिकर्णिका घाट हैं,
जहाँ पर (यही एक भोलेनाथ का रत्नेश्वर महादेव मंदिर हैं, जहाँ पर पूजा नही होता हैं) जलती हुई चिताओं के साथ भस्म की होली साधु संतों और अघोरियों के द्वारा अपने में होली खेली जाती हैं।
ध्यान रहे कि इस होली में आम व्यक्ति भाग नही लेते हैं क्योंकि यहाँ पर रंग गुलाल नही चारो तरफ जलने वाली चिताओं से निकलने वाली राख से खेलते हैं।
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होली का त्योहार हिन्दू कैलेंडर के अनुसार
हिन्दू पंचांग के अंतिम मास फाल्गुन के शुक्ल पक्ष के अष्टमी से होलाष्टक शुरू हो जाता हैं और इसी दिन से पूरे हफ्ते भर होली के गीत तथा गाना बजाना चलता रहता हैं, तो शुरुआत करते हैं-
होलाष्टक
फाल्गुन मास शुक्ल पक्ष अष्टमी से शुरू।
रंगभरी एकादशी
फाल्गुन मास शुक्ल पक्ष एकादशी से बरसाना की लट्ठमार होली शुरू। काशी (वाराणसी) में होली शुरू।
मसाने की होली या चिता भस्म होली
फाल्गुन मास शुक्ल पक्ष द्वादश को काशी के मणिकर्णिका घाट पर।
होलिका दहन
फाल्गुन मास शुक्ल पक्ष के पूर्णिमा को होलिका दहन होता हैं।
होली
चैत्र मास कृष्ण पक्ष के प्रतिपदा को रंग गुलाल की होली खेली जाती हैं।
Note- उत्तर प्रदेश, बिहार या ये कहे कि पूरे उत्तर भारत में अधिकतर होली के बाद रंग पंचमी तथा होली के बाद आने वाला पहला मंगलवार को "बुढ़वा मंगल" के नाम से होली मनाने की एक परंपरा हैं।
रंगभरी एकादशी की होली
जब हिन्दू धर्म में विवाह होता हैं, तो पहली विदाई या गौना भी होता हैं यहाँ गौना एक भोजपुरी शब्द हैं। महाशिवरात्रि के दिन भोलेनाथ और पार्वती का विवाह हुआ था।
जब पहली विदाई या गौना करा कर शिव जी पार्वती को लाये थे काशी (वाराणसी) तो उस दिन फाल्गुन मास शुक्ल पक्ष का एकादशी था।
वैसे तो प्रत्येक माह का एकादशी विष्णु जी से सम्बंधित हैं, परन्तु फाल्गुन मास का एकादशी शिव जी से सम्बंधित हैं, इसका उल्लेख "शिव पुराण" में मिलता हैं।
काशी में पहली बार विदाई करा कर जब शिव जी आये तो इस खुशी को देवताओं और मनुष्यों के साथ रंग और गुलाल खेल कर मनाया था।
इसलिए उस दिन से इस एकादशी को रंगभरी एकादशी या शिव जी के एकादशी के रूप में मनाते हैं।
मसाने या चिता भस्म की होली
रंगभरी एकादशी के ठीक अगले दिन ही शिव जी अपने गणों के साथ मिलकर होली खेलते हैं वह भी रंग या गुलाल का नही बल्कि मसाने अर्थात श्मशान घाट के राख से।
पुराण की मान्यताओं के अनुसार शिव जी का निर्देश हैं कि देवताओं और मनुष्यों के साथ आप होली नही खेलेंगे या फिर उनके साथ खुशियों में शामिल नही होंगे।
आप लोगो के लिए अलग से होली की व्यवस्था होगी। इसीलिए रंगभरी एकादशी के ठीक अगले दिन द्वादश को यह होली खेली जाती हैं।
भस्म होली या चिता भस्म होली कैसे खेली जाती हैं?
इस होली में बाबा विश्वनाथ की आरती तथा पूजा करके और उनसे विधिवत आज्ञा लेकर चिता भस्म होली की शुरुआत होती हैं।
यह कोई साधारण होली नही हैं, जिसमें सभी भाग ले सके, हाँ इतना जरूर है कि इस विचित्र पर्व को अपने आंखों से देख सकते हैं।
शिव पार्वती के गौने का साक्षात दर्शन कर सकते हैं या गवाह बन सकते हैं। इस खेल में साधु, संन्यासी और अघोरी भस्म जो जलती चिता से ले कर एक दूसरे को तिलक लगाने से ले कर पूरे शरीर पर भभूत की तरह मलते हैं।
गुलाल उड़ाने की जगह जलती हुई चिता के बने राख को उठा कर एक दूसरे पर फेंकते रहते हैं। डमरू के धुनों पर नाचते हुए अघोरी वाले दृश्य बहुत ही डरावने होते हैं, परन्तु तब भी बहुत से लोग इस प्रकार की विचित्र होली को दूर से ही सही लेकिन देखेंगे जरूर।
मसाने या भस्म की होली कहाँ खेली जाती हैं?
भारत ही नही बल्कि पूरे विश्व में इस प्रकार का अनोखा और प्रसिद्ध होली उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल के सबसे बड़े शहर वाराणसी में मणिकर्णिका घाट पर होली त्योहार के ठीक 4 दिन पहले ही चिता भस्म की होली खेली जाती हैं।
इसे "मसाने की होली" या "चिता भस्म होली" या "भस्म की होली" के नाम से जानते हैं। यह गंगा के किनारे बसे पवित्र और धार्मिक नगर में से एक वाराणसी या काशी में जिसे मोक्ष नगरी के नाम से जानते हैं, में खेली जाती हैं।
इस अनोखे और विचित्र होली को देखने देश और विदेश से सैलानी आते हैं। विदेशी सैलानियों के द्वारा यह होली खूब पसंद किया जाता हैं।
चिता से उठते लपटों में से राख ले कर साधु संतों और अघोरियों के द्वारा एक दूसरे को टीका लगा कर गुलाल के जगह भस्म से खेली जाने वाली होली भोले शंकर का सबसे पसंदीदा पर्व हैं।
आम व्यक्ति भी इस होली में भाग लेता है लेकिन वे सभी लोग इस होली को शंकर जी की होली कह कर पूजते हैं और देखने मात्र को भी अपना सौभाग्य मानते हैं।
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