भारत में होली सभी जगह मनाई जाती हैं, लेकिन अवध क्षेत्र यानी अयोध्या और ब्रज क्षेत्र यानी मथुरा के होली की बात ही निराली हैं।
यदि आपको न यकीन हो तो इन दोनों जगहों के होली के लिये बहुत से होली गीत या भजन प्रसिद्ध हैं, उनको आप एक बार जरूर सुने जैसे कि अवध यानी अयोध्या में- होली खेले रघुवीरा अवध में, होली खेले रघुवीरा। तो दूसरी ओर ब्रज यानी मथुरा के लट्ठमार होली में- आज बिरज में होली रे रसिया।
जैसे गीत या लोकगीत या कहे तो भजन, जिसे सभी लोग मन में गुनगुनाने लगते हैं और इस प्रेम रूपी रंग के त्योहार में रंगने हेतु बेताब हो जाते हैं।
ब्रज में बरसाना की लट्ठमार होली
उत्तर प्रदेश में ब्रज की होली बहुत ही प्रसिद्ध हैं और ब्रज के चौरासी कोस में स्थित श्री राधारानी का ग्राम "बरसाना की लट्ठमार होली" की ख्याति तो भारत ही नही अपितु पूरे विश्व भर में अपनी अलग पहचान बनाये हुये हैं।
तभी तो दूर- दराज से लोग इस होली का परम आनंद प्राप्त करने के लिये मथुरा या बरसाना पहुँच जाते हैं।
सूर्य प्रकाश भी घूमते- घूमते ब्रज यानी मथुरा आ पहुँचा और मौसम था रंगों का, जी हाँ आप सही पकड़े। यह समय था होली का, तो मथुरा यानी ब्रज के प्रसिद्ध और पावन पर्व बरसाना की लट्ठमार होली का तो इस आनंदमयी और ऐतिहासिक पल को अपने हाथ से कैसे जाने देता।
होली का त्योंहार मुझे बेहद भाता हैं क्योंकि इस त्योहार को मैं बचपन से ही बड़े चाव से मनाता आया हूँ, तो वही दूसरी ओर यह त्योहार ही नही भारतीय संस्कृति का अनोखा संगम हैं तभी तो रंग के हुड़दंग के साथ ही अबीर- गुलाल में हम सभी सरोबार हो जाते हैं।
होली ऐसा त्योहार हैं, जो रंग, गुलाल के साथ ही भारतीय पकवान और आपसी भाईचारा का भी संदेश देता हैं। होली पूरे भारत में ही बड़े उल्लास के साथ मनाई जाती हैं, जिसमें अवध और ब्रज की होली का अपना अलग पहचान हैं।
कब मनाई जाती हैं बरसाना की लट्ठमार होली
भारतीय पञ्चाङ्ग के अनुसार हिंदी कैलेंडर के अंतिम माह फाल्गुन में पूर्णिमा को मनाया जाता हैं। वैसे रंग भरी होली के ठीक एक दिन पहले यानी पूर्व संध्या पर होलिका दहन का भी आयोजन होता हैं।
"बरसाना की लट्ठमार होली" मुख्य रूप से पड़ने वाली होली के हफ़्ते या दस दिन पहले ही शुरू हो जाता हैं। लगातार चलने वाले इस लट्ठमार होली का समापन फाल्गुन माह के अंतिम दिन ही हो जाता हैं।
वैसे तो होली पूरे भारत में धूमधाम से मनाई जाती हैं, परन्तु उत्तर भारत में इसका विशेष महत्त्व हैं। अगर सटीक बात किया जाये तो होली फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष के अष्टमी से होलाष्टक की शुरुआत हो जाती हैं, अर्थात फगुवा गीत (होली गीत) को टोली के रूप में गाया जाता हैं और घर- घर जा कर त्योहारी लेने की परम्परा हैं।
ऐसे में ब्रज के बरसाना में फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष में नवमीं तिथि से लट्ठमार होली शुरू हो जाती हैं, जो फाल्गुन माह के पूर्णिमा तक चलती हैं।
क्यों होली पर बरसाई जाती हैं लाठियां
अगर आप कोई सनातन संस्कृति के प्रसिद्ध त्योहार को मनाना चाहें और आप का स्वागत लाठियों से किया जाये, तो आपको कैसा लगेगा?
अरे! मेरा मतलब हैं कि आपको कैसी अनुभूति होंगी? अब आप कहेंगे कि मेरे काबिल दोस्त लाठी- डंडे की बात कर रहे हैं और पूछ रहे हैं कि कैसा लगेगा?
मैं आपको बताऊँ, बहुत ही सुखद अनुभूति होगी जिसकी आप कल्पना भी नही किये होंगे, यही तो यहाँ की अनोखी परम्परा और संस्कृति हैं, जिसे देखने को देश- विदेश से या दूर- दूर से लोग आते हैं।
लट्ठमार होली कैसे होती है
नंद गांव के पुरुष होली खेलने के लिए बरसाना आते हैं और यहाँ रंग, गुलाल के साथ होली खेलते हैं और मटकी फोड़ जैसी खेल प्रतियोगिता में भाग लेते हैं, तो बरसाना की महिलाओं के द्वारा इन्हें रोका जाता हैं।
इन्हें रोकने के क्रम में इनपर लट्ठ बरसाया जाता हैं तो इससे बचने के लिए पुरुष बांस के द्वारा बनी खचोली या एक प्लेट जैसी ढाल की आकृति से अपना बचाव करते हैं तथा चतुराई से यहाँ के महिलाओं को रंग लगाते हैं।
बरसाना लट्ठमार होली का इतिहास
ब्रज के होली का इतिहास यह हैं कि श्री कृष्ण भगवान जब बाल्यकाल में नंद गांव रहते थे, तो अपने बाल सखा के साथ बरसाना आते थे श्री राधारानी के साथ होली खेलने के लिये और इनके साथ ही-
बाल सखा भी गोपियों के साथ होली खेलते थे। यह रंगों का त्योहार पूर्ण रूप से आपसी भाईचारा का संकेत देता हैं, तभी तो मुग़ल बादशाह अकबर भी होली का त्योहार बहुत धूम धाम से मनाते थे अपने शाही दरबार के साथ ही प्रजा के साथ।
इससे गंगा- जमुनी तहजीब की भी मिशाल पेश होती हैं।
होली के लज़ीज पकवान और व्यंजन
होली के समय सबसे ज्यादा बनने वाले व्यंजन में गुझिया (खोया से निर्मित) प्रमुख व्यंजन हैं। इसके अलावा आलू के पापड़ और चिप्स इत्यादि घर- घर बनते हैं।
मथुरा में यानी ब्रज के होली के समय मथुरा के पेड़ा, रबड़ी, बेड़मी की पूरी भी खूब लोगो को भाता हैं।
वैसे मथुरा में यह सभी चीज़ बारहों महीने मिलता रहता हैं। मथुरा का पेड़ा तो भारत ही नही बल्कि पूरे विश्व में प्रसिद्ध हैं।
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