भारत ही नही बल्कि पूरे विश्व से हिन्दू सनातनी या किसी भी धर्म को मानने वाले कुंभ स्नान और मेला दर्शन करना चाहते हैं। आज हमारे साथ बने रहिये क्योंकि आज के इस लेख में आप कुम्भ मेला की सम्पूर्ण जानकारी पाएंगे।
आज हम आपको कही घूमाने या दर्शन कराने नही ले चल रहें हैं बल्कि विश्व की सबसे बड़े धार्मिक आयोजन जो हमारे भारत की पहचान हैं- " कुम्भ मेला " पर चर्चा करने जा रहे हैं।
चाहे तो अकेले सोलो ट्रिप करिये या फिर परिवार के साथ एक छोटी सी यात्रा पर जाइये, धर्म के साथ ही घूमना भी हो जाएगा।
तो शुरू करे फिर आज का सफर घर बैठे- बैठे ही कुम्भ मेला की सम्पूर्ण जानकारी अपने दोस्त की जुबानी-
कुम्भ मेला कहाँ-कहाँ लगता है?
भारतीय संस्कृति की पहचान हैं प्रत्येक 12 वर्षों में यह मेला भारत के कुल 4 प्राचीन नगरों में आयोजित किया जाता हैं और यह नगर हैं-
- उत्तर प्रदेश के प्रयागराज (इलाहाबाद) में।
- उत्तराखंड के हरिद्वार में।
- मध्य प्रदेश के उज्जैन में।
- महाराष्ट्र के नासिक(नाशिक) में।
परन्तु ध्यान रहें कि सभी 4 नगरों में यह आयोजन एक साथ नही होता है।
यह मेला एक नगर से दूसरे नगर को प्रत्येक 3 वर्षों के अंतराल पर आयोजित किया जाता हैं,
अर्थात एक कुम्भ मेला के समाप्ति के ठीक 3 वर्ष के बाद यह दूसरे नगर में कुम्भ मेला सम्पन्न होता हैं।
यही चक्र (Rotation) चलता रहता हैं अर्थात जब पुनः उसी नगर में कुंभ का आयोजन किया जाता हैं, तो पूरे 12 वर्ष का समय बीत चुका होता हैं। इसलिये यह आयोजन जब भी होता हैं इन नगरों में तो 12 वर्ष पर होता हैं।
आज के इस लेख में आप जानेंगे
- कुंभ मेले का इतिहास क्या है?
- इन्ही 4 नगरों में ही क्यों मनाया जाता है?
- कुम्भ स्नान और दर्शन का लाभ क्या हैं?
के बारे में पूरी जानकारी देने वाले हैं, तो मेरे साथ बने रहिये और कुम्भ मेले के अनछुये पहलुओं पर अपनी जानकारी तथा ज्ञान को बढ़ाइये ताकि-
आने वाली भारत की पीढ़ी इस अतिप्राचीन और ऐतिहासिक महोत्सव या मेले को केवल किताबो के पन्नो में न पढ़े बल्कि उसे अपने अंदर महशुस कर सकें क्योंकि आज के इस भागमभाग परिवेश में हमारी संस्कृति, विरासत, धरोहर विलुप्त होती जा रही हैं। तो चलिये आगे हम बात करते कि-
कुम्भ मेले का इतिहास क्या हैं?
चर्चा करने से पहले आप को हम एक छोटी सी पौराणिक कथा (कहानी) सुनाते हैं कि-
एक बार ऋषि दुर्वासा के श्राप के कारण देवताओं की शक्ति क्षीण होने लगी, जिसका फायदा दानव उठाना चाहें जिसके परिणाम स्वरूप दानवों ने देवलोक पर आक्रमण कर दिया।
चूंकि श्राप के कारण देवताओं का बल काम नही आया, जिसके चलते सभी देवता दानवों से हारने लगे तो अंत श्री विष्णु जी से उपाय पूछने को विष्णुलोक गये।
श्री विष्णु जी के कहने पर समुन्द्र मंथन किये और उससे प्राप्त होने वाले अमृत का पान कर के ही देवताओं की शक्ति वापस आ जायेगी।
परन्तु जब अमृत समुंद्र मंथन से निकला तो देवता के राजा इंद्र के पुत्र जयंत जैसे ही अमृत कलश में से देवताओं में बाटना चाहा तभी ही दानवों ने देवताओं से छीना झपटी करने लगें ताकि अमृत केवल दानवों को मिले और वे अमरत्व को प्राप्त हो जाये।
देव् और दानव में लगातार 12 दिन तक अमृत कलश को ले कर युद्व होता रहा। अंत मे श्री विष्णु जी के द्वारा मोहिनी रूप धर कर इस युद्ध का समापन किया गया था।
देवताओं का यह 12 दिन मानव के लिए 12 वर्षो के समान माना गया हैं। इसलिये कुम्भ का आयोजन भी 12 वर्षो पर किया जाता हैं।
इन्ही 4 नगरों में ही कुम्भ मेला क्यों होता हैं?
अब बात कर ले कि जब देवताओं और दानवों में युद्ध हुआ तो परिणामस्वरूप इस अमृत कलश यानी कुम्भ के छलकने से पृथ्वी पर अमृत की कुछ बूंदे गिर गई।
ये अमृत की बूंदें पृथ्वी पर कुल चार स्थानों पर गिरी थी, ये कहा जाता है कि इन चारों स्थान के नदियों में यह अमृत गिरने के कारण ही पूरी नदी और स्थान ही अमृतमय और पवित्रमय हो गया। ये स्थान-
- प्रयागराज में- संगम में(गंगा, यमुना का संगम)
- हरिद्वार में- गंगा नदी में
- उज्जैन में- क्षिप्रा नदी में
- नाशिक में- गोदावरी नदी में
अमृत की बूंदें गिरने से पूरी नदी पवित्र हो गईं, जो हिन्दू सनातन धर्म में यहाँ इन चारों स्थानों पर आ कर स्नान करना, दान पुण्य करना बहुत ही शुभ माना गया हैं।
खास तौर से तब जब 12 वर्षो का कुम्भ मेला लगा हो तब और भी ज्यादा महत्व बढ़ जाता हैं, क्योंकि उस समय इन स्थानों को देवलोक और नदियों के जल को अमृत के तुल्य मान कर पूजा जाता हैं।
इसीलिये भारत (पूरे विश्व में भी) के केवल इन्ही चार नगर क्रमशः प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन नाशिक में ही कुम्भ मेले का आयोजन होता हैं।
और इन सभी में प्रयागराज (इलाहाबाद) का कुम्भ तो साक्षात देवताओं के कुम्भ मेले के समान बताया गया हैं। इस पर खास तौर से आगे चर्चा करूँगा।
कहते हैं कि प्रत्येक मनुष्य को, जो हिन्दू धर्म मे विश्वास रखता हैं अपने जीवन में कम से कम एक बार अवश्य कुम्भ स्नान तो जरूर करें ताकि मनुष्यों के पाप् खत्म हो सके या कट जाये और यह एक मान्यता हैं, एक परम्परा हैं।
NOTE -- सावधानी पूर्वक यह जरूर से ध्यान दे कि
यहाँ यह धारणा लगा लेना कि जानबूझ कर कोई भी गलत काम करके या अपने अपराध से बचने के लिये कुम्भ स्नान कर के और दर्शन कर लेने मात्र से ही अपने अपराध से मुक्त हो जायेंगे क्या?
यह बिल्कुल गलत हैं, कृपया ऐसा विचार मन मे मत लाइयेगा और न ही कोई उटपटांग बात मन में सोचियेगा।
आज का यह मेरा लेख इस बात को बिल्कुल भी सपोर्ट नही करता हैं। मैं सिर्फ आध्यात्मिक ज्ञान, पवित्र स्नान, मेला दर्शन तथा घूमने की बात कर रहा हूँ, आपसे।
आगे हम अपनी जानकारी पर आते हैं कि...
वैसे यह कुम्भ भी 12 होते हैं। जी हाँ, 4 पृथ्वी लोक पर और 8 देवलोक में यह कुम्भ मनाये जाते हैं। देवलोक के कुम्भ में हम मानव नही पहुँच सकते, परन्तु पृथ्वी पर भारत देश मे होने वाले 4 कुम्भ मेले में तो पहुँच ही सकते हैं।
मनुष्य की पहुँच में ये केवल 4 कुम्भ स्थान ही हैं। "कुम्भ" का इस मेले में अर्थ
जब भी हम इस मेले को नाम ले कर पुकारते हैं, तो कुम्भ मेला कह कर सम्बोधन करते हैं। इसके पीछे भी एक इतिहास है।
कुम्भ का अर्थ घड़ा या कलश या मिट्टी का पात्र हैं, जिसमें अमृत भरा हुआ था।
मेला का अर्थ भीड़ या ऐसा स्थान जहाँ मनुष्य इकट्ठा हुए हों।
अर्थात अमृत रूपी नदी के जल में स्नान करने के लिये जब सभी लोग एक स्थान पर इकट्ठा हो जाये तो यही मेला का रूप ले लेता हैं, जिसे "कुम्भ मेला" कहते है।
आधुनिक समय की बात करें तो कुम्भ मेले का आयोजन करने का श्रेय आदि गुरु शंकराचार्य जी को जाता हैं।
लेकिन पौराणिक कथाओं को भी नकारा नही जा सकता हैं कि कुम्भ मेला कितना पुराना हैं।
आप कुम्भ मेला दर्शन जरूर करने जाये। जरूरी नही की आप स्नान ही करें, क्योंकि भक्ति जबरदस्ती करने वाली नही बल्कि मन से मानने वाली विषय वस्तु हैं।
आप इस मेले की यात्रा जब भी करें, तो घूमने के नाम पर भी छोटी यात्रा या कहे तो एक स्माल ट्रिप बना सकते हैं क्योंकि यह मेला भारत ही नही अपितु पूरे विश्व में एक विशेष स्थान रखता हैं।
अपनी भव्यता और आकर्षण के लिए देशी पर्यटकों के साथ ही साथ विदेशी पर्यटकों को भी आकर्षित करने वाला मेला हैं।
हिन्दू धर्म में यह कोई मेला नही बल्कि आस्था का प्रतीक एक पर्व के समान हैं।
तो आइए आज आपको इन चारों स्थानों की सैर कराते है तथा साथ में आपकी जानकारी को बढ़ाते हैं-
कुम्भ मेला लगने वाले चार (4) पवित्र स्थान
कुम्भ मेला कहाँ-कहाँ लगता है इसकी जानकारी नीचे दी गयी है और सभी के एक एक स्थान के बारे में विस्तार से बताया गया है।
प्रयागराज (इलाहाबाद)
यह उत्तर प्रदेश का अति महत्वपूर्ण प्राचीन नगर हैं जो गंगा नदी, यमुना नदी और अदृश्य सरस्वती नदी के संगम पर स्थित हैं।
इस स्थान पर प्रत्येक 12 वर्षो पर कुम्भ और 6 वर्षो पर अर्द्ध कुम्भ का आयोजन होता हैं।
चारो कुम्भ नगरी में यह विशेष स्थान रखता हैं क्योंकि कुंभ का कुंभ अर्थात 12×12 वर्ष यानी 144 वर्षो पर आने वाले महाकुम्भ का आयोजन भी यही प्रयाग की धरती पर होता है।
अगर आपको यह मालूम न हो कि प्रयागराज में पिछला कुम्भो का कुम्भ मेला (144 वर्षो वाला) अर्थात महाकुंभ कब आयोजित हुआ था तो
आपको बता दे कि 2001 में यह सम्पन्न हुआ था, जिसे कुम्भ का कुम्भ यानी महाकुंभ कहा जाता हैं।
यही आप यह भी जाने की अगला महाकुंभ 144 वर्षो के बाद 2145 में सम्पन्न होगा।
इसे देवताओं वाला कुम्भ मेला भी कहते है। इससे साफ संकेत इस बात के मिल रहे हैं कि कुम्भ की शुरुआत भी प्रयागराज से हुई हैं, तभी तो 144 वर्षो वाला कुम्भ भी यही मनाया जाता हैं।
एक बात और कि इन सभी चारो कुम्भ स्थानों में सबसे अलग, सर्वाधिक प्रसिद्ध और पहचान प्रयागराज (इलाहाबाद) का है, क्योंकि यह संगम तट पर आयोजित होता हैं, जो अपने आप मे महान हैं।
यहाँ प्रतिवर्ष माघी मेला का भी आयोजन होता है। यह भी लगभग 1 माह तक चलने वाला मेला होता है। इसमें भी लाखों की संख्या में श्रद्धालु स्नान, दान-पुण्य करने के लिए आते हैं।
प्रयागराज को कुम्भ का कुम्भ अर्थात कुम्भ मेला में भी सबसे बड़ा माना जाता हैं। बहुत बड़े क्षेत्र में इसका आयोजन होता हैं। करोड़ो की संख्या में श्रद्धालु और पर्यटक दर्शन और घूमने के लिए आते हैं।
रात्रि में इसकी लाइटिंग देखते ही बनता हैं। पूरा एक शहर बसा हुआ होता हैं, जहाँ सभी सुविधा जो एक नगर में होती हैं, मिलती हैं। क्या आप इसके गवाह नही बनना चाहेंगे?
उत्तर में यदि हाँ, हैं तो एक बार कुम्भ में जरूर जाइयेगा।
लगभग एक माह तक चलने वाला कुम्भ मेला प्रयाग में सबसे अधिक क्षेत्र में लगाया जाता हैं।
यह नगर सड़क मार्ग और रेल मार्ग ( नई दिल्ली-कानपुर-पटना-हावड़ा मुख्य मार्ग) से पूरे भारत से जुड़ा हुआ हैं। वही अगर वायु मार्ग की बात करें तो नजदीकी एयरपोर्ट प्रयागराज एयरपोर्ट ( कुम्भ मेला से 10 KM) जबकि दूसरा वाराणसी का एयरपोर्ट (125 KM) हैं।
हरिद्वार
इस नगर को हरि का द्वार भी कहते हैं, जो उत्तराखंड राज्य में गंगा नदी के किनारे स्थित हैं। यहाँ पर भी 12 वर्षो के कुम्भ मेले के साथ 6 वर्षो पर अर्द्ध कुम्भ का भी आयोजन होता हैं।
यहाँ पर हर की पौड़ी पर इस विशाल मेले का आयोजन होता हैं। यहाँ भी श्रद्धालुओं की भीड़ होती हैं।
हरिद्वार सड़क मार्ग और रेल मार्ग से लगभग भारत के सभी स्थानों से जुड़ा हुआ हैं। हरिद्वार से
नजदीक का एयरपोर्ट देहरादून में (38 KM) जॉली ग्रांट एयरपोर्ट हैं।
नाशिक (नासिक)
नाशिक एक प्राचीन नगर है जो महाराष्ट्र में गोदावरी नदी के तट पर स्थित हैं। नाशिक में केवल 12 वर्षो वाला ही कुम्भ मेले का आयोजन किया जाता हैं। यह सिंहस्थ महाकुंभ के नाम से भी जाना जाता हैं।
यहाँ पर पंचवटी और द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक ज्योर्तिलिंग त्रयम्बकेश्वर मन्दिर स्थित हैं।
यहाँ पहुँचने के लिए सड़क मार्ग के साथ ही रेल मार्ग भी हैं क्योंकि इस नगर का रेलवे स्टेशन नासिक रोड हैं, जो-
हावड़ा-पटना-जबलपुर-भुसावल-मुंबई मुख्य रेल मार्ग पर स्थित हैं, जो सभी महत्वपूर्ण शहरों से जुड़ा हैं। वही अगर एयरपोर्ट की बात करें तो सबसे नजदीक का मुंबई एयरपोर्ट(170 KM) है।
उज्जैन
यह मध्य प्रदेश में क्षिप्रा नदी के तट पर स्थित प्राचीन नगर हैं। यहाँ पर केवल 12 वर्षो वाला कुम्भ मेले का आयोजन होता हैं। यहाँ इसे सिंहस्थ महाकुंभ भी कहते हैं।
इसे शिव की नगरी अर्थात महाकाल की नगरी के रूप में भी जानते हैं। यहाँ द्वादश ज्योतिर्लिंग में एक ज्योर्तिलिंग महाकाल मंदिर भी स्थित हैं।
इसीलिए इस नगर का महत्व और भी बढ़ जाता हैं।
यह सड़क मार्ग और नई दिल्ली- भोपाल-इंदौर रेल मार्ग पर स्थित हैं जबकि एयरपोर्ट में इंदौर (55 KM) और भोपाल (195 KM) के एयरपोर्ट नजदीक है।
कुम्भ मेले का आयोजन समय
12 वर्षो के इस कुम्भ का आयोजन 1 माह से लेकर सवा माह तक चलता हैं।
यह मेला मकर संक्रांति से शुरू होकर महाशिवरात्रि तक चलता हैं। इस दौरान कई शुभ दिन में साधुओं और संतो के शाही स्नान के साथ आम जनमानस भी पुण्य की डुबकी लगाते हैं।
प्रमुख शाही स्नान
- मकर संक्रांति
- मौनी अमावस्या
- बसन्त पंचमी
- माघी पूर्णिमा
- महाशिवरात्रि
कुम्भ मेले के दौरान इस विशेष दिवस पर अत्यधिक भीड़ होती हैं जबकि इसके अलावा बाकी तिथियों पर स्नान कर पुण्य की डुबकी लगा सकते हैं।
कुम्भ मेला में रुकने की व्यवस्था
यह मेला भारत की पहचान हैं। जब भी आप मेला क्षेत्र में जायेंगे तो आप को एक टेंट नगरी नज़र आयेगी। बड़े-बड़े पंडाल में देश-विदेश से आये साधु, महात्मा, योगी प्रवचन और भजन कीर्तन करते नजर आयेंगे।
साथ ही इन पंडालों में इनको मानने वाले अनुयायी और श्रद्धालु पूजा अर्चन करते हुये मिल जायेंगे।
सरकार की तरफ से इनके रुकने का प्रबंध टेंट में किया गया रहता हैं। सभी को रुकने के लिये सभी व्यवस्थाओं से सुसज्जित टेंट जो 3 स्टार से लेकर 5 स्टार की सुविधा से पूर्ण होते है।
सभी टेंट का अपना अलग-अलग शुल्क निर्धारित होता हैं, जिनकी बुकिंग आप मेला प्रशासन काउंटर से कर सकते हैं या मेला प्रशासन की अधिकारिक वेबसाइट पर भी बुकिंग किया जा सकता हैं।
इसके अलावा इन चारो शहरों में भी कई होटल, धर्मशाला, लॉज, आपके बजट के अनुरूप मिल जायेंगे।
भीड़ से बचने के लिए आप अपनी बुकिंग पहले से करा के रखे ताकि मेला क्षेत्र में आ कर कोई दिक्कत नही हो।
आपको फायदा भी हैं, कि आपका समय बचेगा तो मेला को घूम सकते हैं।
खान-पान मेला क्षेत्र में
मेले में स्नान, दर्शन, घूमने के दौरान पेट पूजा के लिये ज्यादा कुछ नही सोचना हैं क्योंकि मेला क्षेत्र में विभिन्न रेस्टोरेंट, ढाबा, होटल मिल जायेंगे, जहाँ आप अपनी मर्ज़ी का नाश्ता, लंच, डिनर का लुफ्त ले सकते हैं।
कुछ लंगर भी आप को मिलेंगे जहाँ आप स्वयं सेवा करके भोजन ग्रहण कर सकते हैं।
आप सभी विकल्प अपनी सुविधा के अनुसार चुन सकते हैं।
क्या खरीदे?
पूरा मेला क्षेत्र में देश-विदेश के बने हुये समान की विक्री होती हैं। आप हस्तशिल्प की वस्तुओं को, लकड़ी के नक्काशीदार वस्तुओं को या फिर कोई भी अपने जरूरी के सामानों को खरीद सकते हैं।
हाँ, एक बात का जरूर ख्याल रखे कि आप किसी भी स्टाल पर खरीदारी करते समय मोल भाव जरूर करें।
कुम्भ मेला स्नान और दर्शन का क्या लाभ?
कुल मिला कर आप कुम्भ मेला को आध्यात्मिक रूप से देखेंगे तो यह मेला पूरे विश्व का सबसे बड़ा मेला हैं।
जहाँ पुण्य को प्राप्त करने वाले पवित्र स्नान, मंदिर के दर्शन, ख्याति प्राप्त साधु और सन्तो के समागम आपको कुछ समय के लिए भौतिक सुखों, सांसारिक मोह माया को अलग रख कर कुछ समय के लिए वैराग्य जीवन की ओर ले जायेंगे।
आप बिल्कुल मत घबराये, आप को सन्यासी नही बना रहा हूँ, बल्कि देव दर्शन के साथ घूमना भी बता रहा हूँ।
यदि आप मेला को अध्यात्मवाद से नही जोड़ते है तो न सही आप इस मेले की भव्यता को देखने, घूमने, सैर-सपाटे और नयी जगहों पर जाने का प्लान तो बना ही सकते हैं जिससे कि आप का मनोरंजन के साथ व्यक्तिगत ज्ञान भी मिलेंगा।
आप किसी भी कुम्भ मेला क्षेत्र को जो चार स्थान पर लगता हैं, अपना ट्रिप प्लान कर सकते हैं और साथ ही अपनी यात्रा सेट कर सकते हैं।
मैंने भी प्रयागराज के 2001 कुम्भ मेला में सभी स्नान और दर्शन किया हैं। बाकी हरिद्वार, उज्जैन, नासिक में भी (बिना कुम्भ मेला के) स्नान और दर्शन कर चुका हूँ।
एक व्यक्तिगत अनुभव जरूर शेयर करना चाहूंगा कि इन सभी जगहों पर दर्शन के साथ घूमने की अनुभूति जो मिली हैं उसे बयां नही कर सकता।
आज का सफर बस यहीं तक हैं आगे एक नये खूबसूरत जगह की सैर पर मेरे साथ चलने को तैयार रहियेगा, आप अपना कॉमेंट जरूर दीजियेगा कि आज की जानकारी आप को कैसी लगी हैं? तब तक के लिये आप सभी का शुक्रिया और दिल से-
धन्यवाद,
इन स्थानों को भी घूमे -
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