पितृ विसर्जन को हिन्दू सनातन संस्कृति में एक पर्व या त्योहार के रूप में मान्यता प्राप्त हैं। वैसे तो वर्ष भर तर्पण, बरसी, पिंडदान और श्राद्ध जैसे कर्मकांड होते रहते हैं, लेकिन पितृ पक्ष के इस पखवाड़े में अपने पूर्वजों और पितरों को खुश करने और उनके मोक्ष प्राप्ति के लिए ही इस पर्व की महिमा का वर्णन हमारे वैदिक साहित्य स्कंदपुराण और गरुणपुराण जैसे धार्मिक शास्त्रों में मिलता हैं।
मैं सूर्य प्रकाश आपका चहेता सोलो यात्री अपने बचपन के साथी आशुतोष त्रिपाठी के साथ बिहार की पवित्र स्थली गया आ पहुँचे हैं ताकि आज आपको हमारे मित्र की जुबानी गया के महत्वपूर्ण पितृ विसर्जन के स्थल की सम्पूर्ण जानकारी आपके साथ साझा कर सकूं।
पितृ विसर्जन कब मनाया जाता हैं?
हिन्दू पंचांग के अनुसार प्रत्येक वर्ष के अश्विन मास के कृष्ण पक्ष में प्रथमा से अमावस्या तक 15 दिन और 1 दिन पहले भी भाद्रपद के शुक्लपक्ष में पूर्णिमा को भी पितृ विसर्जन के कार्य किये जाते हैं। इस प्रकार कुल मिलाकर 16 दिन का पितृ पक्ष होता हैं अर्थात भाद्रपद मास के पूर्णिमा से अश्विन मास के अमावस्या तक कुल सोलह दिन तक पितृ पक्ष मनाया जाता हैं।
वाराणसी के पिशाच मोचन से शुरुआत
उत्तर प्रदेश के काशी (वाराणसी) में जो गंगा नदी के किनारे बसे धार्मिक स्थलों में सबसे महत्वपूर्ण नगर हैं। प्राचीन काल में वाराणसी को काशी कहा गया हैं।
वाराणसी के पिशाच मोचन में भी कुण्ड के समीप पितृ पक्ष में पितरों को जल से तर्पण, दान-पुण्य, पिंड दान इत्यादि करके पूर्वजो के शांति के लिए अनुष्ठान किया जाता हैं।
काशी में द्वादश ज्योतिर्लिंग में शामिल काशी विश्वनाथ मंदिर दर्शनीय स्थल हैं। मणिकर्णिका घाट को मुक्ति धाम भी कहते हैं और इसी के बगल में रत्नेश्वर महादेव मंदिर स्थित हैं, जहाँ पर पूजा अर्चना नही किया जाता हैं।
गया के फल्गु नदी के किनारे तर्पण
बिहार राज्य का गया, भारत ही नही बल्कि पूरे विश्व में पितृ दोष निवारण कर्मकांड जिसे पिंडदान, तर्पण कहा जाता हैं, के लिए प्रसिद्ध हैं।
गया में फल्गु नदी (प्राचीन नाम- निरंजना नदी) के किनारे ब्राह्मणों के द्वारा जो वही इस कर्मकांड कराने के लिए होते हैं, से यजमान अपना पितृ दोष समाधान पूजा कराते हैं।
आप गया में वहाँ से मात्र 13 से 15 Km की दूरी पर स्थित बोधगया में बौद्ध धर्म और हिन्दू धर्म से सम्बंधित मंदिरों में दर्शन कर सकते हैं और कुछ ऐतिहासिक महत्व के धरोहरों को घूम सकते हैं।
बद्रीनाथ धाम के ब्रह्मकपाल पर तर्पण
उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित बद्रीनाथ धाम इन्हें बद्रीविशाल भी कहते हैं। यहाँ पर मन्दिर परिसर से सटे ब्रह्मकपाल पर भी पितृ पक्ष में पिंडदान और तर्पण से सम्बंधित पूजा पाठ किया जाता हैं।
वैसे आप जब भी बद्रीनाथ धाम (विष्णु जी को समर्पित मंदिर) के दर्शन करने आये तो भी पितृ विसर्जन से सम्बंधित सभी कार्य कर सकते हैं, लेकिन विशेष महत्व की बात करें तो पितृ पक्ष में कराने से पूजा पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती हैं।
आपके पास समय हो तो यही से आप मात्र 3 से 4 Km की दूरी पर स्थित हैं "माना गांव" जिसे भारत का पहला गांव कहा गया गया हैं, जबकि इसे कुछ वर्ष पहले भारत का अंतिम गांव बोलते थे।
पितृ विसर्जन का इतिहास
पूरे भारत में कई स्थानों पर यदि छोटे-बड़े सभी को शामिल कर ले तो लगभग 50 से भी अधिक स्थानों पर पितृ विसर्जन का कार्यक्रम होता हैं, लेकिन उन सभी स्थानों में बिहार के गया का स्थान सर्वोपरि हैं।
गया में पितृ विसर्जन का इतिहास यह हैं कि प्राचीन समय में यहाँ गयासुर नामक एक दैत्य या असुर रहता था, जो विष्णुजी का परम भक्त था।
जिसे विष्णुजी से वरदान प्राप्त था कि त्रिदेव के अलावा इसका कोई वध नही कर सकता हैं।
गयासुर त्रिदेव को छोड़ कर सभी देवी, देवताओं के साथ ही पृथ्वीवासियों पर अत्याचार करने लगा, जिससे दुखी हो कर समस्त देवी तथा देवताओं ने विष्णुजी से मदद मांगी थी तब विष्णु जी ने गयासुर का वध कर दिया और गया में ही अपने को स्थापित कर लिया।
ब्रह्माजी ने भी यही तपस्या की थी और गयासुर के मरने के बाद श्री विष्णुजी ने यह वरदान दिया कि जैसे मैने तुमको मोक्ष दिया हैं उसी प्रकार से कोई भी अपने पूर्वजों का आहवान करके उनकी पूजा अर्चना करेगा उनका तर्पण करेगा उसे भी मोक्ष की प्राप्ति होगी।
गया को हिन्दू धर्म में एक पवित्र स्थान के रूप में जाना जाता हैं। गरुण पुराण के आधारकाण्ड में पितृ ऋण से मुक्त होने का मार्ग बताया गया हैं।
गया में स्वयं प्रभु श्रीराम ने सीता माता के साथ ही अपने पिता राजा दशरथ और वंशज का पिंडदान और तर्पण करके श्राद्ध कर्म किया था।
पितृ पक्ष की पूजा कैसे होती हैं
पितृ विसर्जन के इस विशेष पूजा में खोवा, काला तिल, जौ आटा, चावल इत्यादि का पिंड बना कर अपने पूर्वजों के नाम पर जल से तर्पण किया जाता हैं।
गया में या किसी भी स्थान पर जहाँ पिंडदान करना होता हैं, जाने से पहले बाल को उतार कर करके यानी मुंडन करा कर ही इस पूजा को सम्पन्न कराया जाता हैं।
पिंड दान, जल से तर्पण और श्राद्ध कर्म करने के बाद ही यजमान अपनी शक्ति और सामर्थ्य के अनुसार अपने निवास स्थान भोज का आयोजन करके प्रसाद को अपने रिश्तेदारों तथा मित्रों में बांट कर आशीर्वाद ग्रहण करते हैं।
पितृ पक्ष पर मेला का आयोजन होता हैं
जब पितृ पक्ष आता हैं, तो सभी ऐसे स्थल जहाँ पर इस पूजा का आयोजन होता हैं, वहाँ पर मेला का माहौल बना रहता हैं। यह एक त्योहार के रूप में मनाया जाता हैं इसलिए इसे पर्यटन की दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण माना जाता हैं।
लगभग सभी ऐसे जगहों पर रुकने के लिए धर्मशाला, होटल, लॉज और मोटल की व्यवस्था की गई हैं। रुकने के साथ ही खाने-पीने के लिए रेस्टोरेंट, ढाबा की सुविधा मिल जायेगी।
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धन्यवाद।
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