गुजरात की देवभूमि कहे जाने वाले द्वारका जिले में स्थित द्वारकाधाम अतिप्राचीन नगरी में से एक हैं, यह तो श्रीकृष्ण की राजधानी थी। यहाँ प्रभु कृष्ण ने लगभग 36 वर्षो तक शासन किया। अंतिम समय यानी देहावसान तक वे द्वारिका में थे।
यह नगरी भारत के पश्चिमी तट पर स्थित हैं। कहते हैं कि यह नगरी जो वास्तव में थी, वह समुन्द्र (अरब सागर) में डूब चुकी हैं।
परन्तु, अभी भी हिन्दू धर्म में आस्था का केंद्र यह द्वारका श्रीकृष्ण के आशीर्वाद से सराबोर रहती हैं,
ताकि जो भी इस नगर की धूल भी माथे पर लगा लें, तो मानो कि स्वयं श्रीकृष्ण जी ने अपने भक्त को गले लगा कर आशीर्वाद दे कर धन्य कर देते हैं।
आदि गुरु शंकराचार्य के चार धाम में एक धाम
आदि गुरु शंकराचार्य ने भारत में चार धाम की स्थापना की थी जो हैं-
- बद्रीनाथ
- द्वारका
- जगन्नाथपुरी
- श्रृंगेरी
यह सभी मन्दिर जो धाम के रूप में सुविख्यात है, सभी श्रीकृष्ण के मन्दिर के रूप में स्थापित हैं।
सप्तपुरी में से एक पुरी हैं- द्वारका
हिन्दू मान्यताओं और पुराणों के अनुसार भारत के सात प्राचीन नगर जो सप्तपुरी के नाम से सुविख्यात हैं, जहाँ की महत्ता इतनी हैं कि इन नगरों को मोक्ष धाम के रूप में भी जानते हैं-
- काशी (वाराणसी- उत्तरप्रदेश),
- शूरसेन नगरी (मथुरा- उत्तरप्रदेश),
- अवंतिका (उज्जैन- मध्यप्रदेश),
- अयोध्या (कोशल- उत्तरप्रदेश),
- माया (मैनपुरी- उत्तरप्रदेश),
- कांची (कांचीपुरम- तमिलनाडु),
- द्वारिकापुरी (द्वारका- गुजरात)
"भेंट-द्वारका" मन्दिर की महत्ता निराली हैं
इस स्थान को गुजराती भाषा में 'बेट द्वारका' या 'बेत द्वारका' भी कहते हैं। यह पवित्र जगह ओखा से मात्र 4 KM जबकि द्वारका से लगभग 32 KM की दूरी पर एक छोटा सा द्वीप हैं।
यह वही स्थान हैं, जहाँ पर श्री कृष्ण ने सुदामा से भेंट किया था या ये कहे कि सुदामा श्रीकृष्ण से जब मिलने आये तो इसी स्थान पर मुलाकात हुई थीं।
सुदामा जो कि कृष्ण के बाल सखा थे, इन्होंने कृष्ण जी को चावल दिया था खाने को, जिसे श्रीकृष्ण ने खा कर सुदामा की दरिद्रता मिटाई थी।
आज भी यहाँ चावल का दान करने से गरीबी दूर होती हैं और पुण्य की प्राप्त होती हैं। यहाँ कई मन्दिर बने हैं, जहाँ दर्शन मात्र से सारे कष्ट और भव- बाधा दूर हो जाते हैं। यहाँ पर शंक (शंख) की भरमार हैं, इसीलिए इस द्वीप को शंकद्वीप (शंखद्वीप) भी कहते हैं।
द्वारका का इतिहास हिंदी में
द्वारका या द्वारकापुरी या द्वारकाधाम हिन्दू तीर्थस्थली के रूप में विद्यमान हैं। महाभारत और भागवतपुराण के अनुसार श्रीकृष्ण ने लगभग 5000 वर्ष पहले अपनी कर्मभूमि द्वारका को बसाया था।
इस नगर को अपनी राजधानी बना कर निवास किये थे। आगे चल कर इस नगर का अन्य नाम हरिगृह या हरिस्थल भी हुआ।
इसका एक अन्य नाम कुशस्थली भी हैं। कंस मामा का वध करके श्रीकृष्ण मथुरा से द्वारका आ कर बस गए थे। यह नगर सप्तपुरी में भी अपना विशेष स्थान रखती हैं।
श्रीकृष्ण की कर्मभूमि हैं द्वारका
द्वारका में बसने के बाद श्रीकृष्ण द्वारकाधीश कहलाये, जीवन के अंतिम समय तक शासन किया था। जब कुरुक्षेत्र में पांडव और कौरवों के मध्य 18 दिन का युद्ध हुआ था, तो स्वयं अर्जुन के रथ के सारथी बन कर अपनी मित्रता भी निभाई थी।
श्रीकृष्ण का अंतिम समय भी यही द्वारका में व्यतीत किये थे। महाभारत के युद्ध के बाद कौरवों की माता गांधारी के श्राप के कारण पूरी द्वारका समुन्द्र में डूब गई थी।
आज भी मूल द्वारिका समुन्द्र के अंदर पूरी तरह से समा चुकी हैं।
श्रीकृष्ण की मृत्यु
गुजरात के सौराष्ट्र में स्थित द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक सोमनाथ ज्योर्तिलिंग के क्षेत्र में भालुका तीर्थ पर श्रीकृष्ण ध्यान में लीन थे,
तभी जरा नाम का एक शिकारी हिरण के शिकार करने के चलते गलती से श्रीकृष्ण के पैर को हिरण की आँख समझ कर तीर चला दिया था और परिणामस्वरूप कृष्ण की मृत्यु हो गई थी।
यही पास में ही बलराम जी ने भी शरीर का त्याग किया था, इनका भव्य मंदिर यही पर बना हुआ हैं।
कब जाये द्वारका दर्शन करने?
द्वारका आप कभी भी जा सकते हैं, चूंकि यह स्थान समुन्द्र के किनारे पर स्थित हैं, तो मौसम हमेशा सदाबहार बना रहता हैं।
बरसात में घूमने का अपना अलग मज़ा हैं। मेरी राय में मार्च से जून या सितम्बर से फरवरी यहाँ आने का सबसे अच्छा समय हैं।
जन्माष्टमी पर भीड़ ज्यादा होती हैं, इसलिए यदि भीड़- भाड़ न पसन्द हो तो इस समय यहाँ आने से बचे।
कैसे पहुँचे द्वारका?
द्वारका सड़क मार्ग से लगभग भारत के सभी महत्वपूर्ण शहरों से सीधे जुड़ा हुआ हैं। यहाँ पर यात्रा कर पहुँचने के लिए गुजरात राज्य सरकार की बसें, प्राइवेट बसें या अपने निजी साधन से द्वारकाधाम पहुँच सकते हैं।
अगर बात नज़दीकी रेलवे स्टेशन की करें तो द्वारका का खुद अपना रेलवे स्टेशन (Station Code- DWK) हैं, जो पश्चिम रेलवे के अंतर्गत आने वाला महत्वपूर्ण स्टेशनों में एक स्टेशन हैं।
यह रेलवे स्टेशन उत्तर भारत के साथ ही दक्षिण भारत से सीधे वेल कनेक्टिविटी में विकसित हैं।
कई ट्रेन और सुपर फास्ट ट्रेन का ठहराव हैं। बस देरी आपके जाने की हैं।
द्वारका यदि हवाई मार्ग से जाना चाहते हैं तो नज़दीकी एयरपोर्ट जामनगर का हैं, जो लगभग 140 KM की दूरी पर हैं।
प्रमुख नगरों से द्वारका की दूरी
सोमनाथ से- 230 KM
जामनगर से- 132 KM
पोरबंदर से- 124 KM
राजकोट से- 90 KM
ओखा से- 30 KM
अहमदाबाद से- 305 KM
गांधीनगर से- 345 KM
उज्जैन से- 690 KM
नासिक से- 765 KM
शिर्डी से- 820 KM
हैदराबाद से- 1445 KM
वाराणसी से- 1835 KM
रुकने के स्थान द्वारका में
द्वारका में रुकने के लिए बहुत सारे होटल महंगे और बजट में भी उपलब्ध हैं। धर्मशाला और लॉज या फिर कहे तो होम स्टे का भी एक विकल्प मिल जाएगा।
कुल मिला कर कम से कम 1 दिन या 2 दिन आपको द्वारकाधाम के लिए देना पड़ेगा तभी आप पूरे आनन्द और शांति से घूम और दर्शन कर सकते हैं।
द्वारका में दर्शनीय स्थल
जब भी द्वारका जाये तो मुख्य रूप से यह नगर दो हिस्सों में विभाजित हैं-
- गोमती द्वारका धाम
- भेंट द्वारका
यहाँ बहुत सारे मन्दिर और ताल, कुंड मिलेंगे जिसमें गोमती ताल, रणछोड़ मन्दिर, दुर्वासा मंदिर, कुशेश्वर मन्दिर, द्वारकाधीश मन्दिर, सुदामा मन्दिर, शारदा मठ, हनुमान मंदिर, कैलाश मन्दिर, बलराम मन्दिर, चक्र तीर्थ, गोपी तालाब इत्यादि प्रसिद्ध मंदिर और स्थान हैं।
यह सभी जगह एक से दो दिन में कवर हो जायेंगे
खानपान और खरीदारी
गुजराती थाली अपने आप में विश्व प्रसिद्ध हैं। आपको जगह- जगह पर होटल, ढाबा और फैमिली रेस्टोरेंट मिल जायेगा, जहाँ अपनी मन पसन्द का नाश्ता और भोजन आर्डर कर सकते हैं।
गुजरात जाये तो ढोकला और गुजराती कढ़ी का स्वाद लेना न भूलें। रही बात खरीदारी की तो शंख से बने हुये समान, साड़ी, अन्य सजावट के समान यहाँ मिल जाएगा। तब आप अपनी यात्रा कब कर रहे हैं द्वारकाधाम की, अपने साथी सोलो ट्रैवलर सूर्य प्रकाश को कमेंट्स कर के जरूर बताइयेगा।
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