जब आप ट्रेन के सफर पर निकले और आपको उसके इतिहास के बारे में पता चले, तो आप भी उस ट्रेन के इतिहास का हिस्सा बनना जरूर चाहेंगे।
वैसे भारत में ट्रेन का इतिहास बहुत पुराना है और ट्रेन के क्रमिक विकास में सर्वाधिक योगदान ब्रिटिश हुकूमत का है (1853 से शुरू)। हाँ इतना जरूर हैं कि वर्तमान समय में हमारी भारतीय रेल अन्य देशों की तुलना में बहुत आगे निकल चुकी हैं।
दोस्तो, कुल मिलाकर आज की यात्रा आपके, अपने चहेते सोलो ट्रैवलर सूर्य प्रकाश के साथ ज़बरदस्त होने वाला हैं क्योंकि आज केवल आप यात्रा ही नही करेंगे बल्कि अपनी सामान्य जानकारी को भी बढ़ायेंगे।
और सबसे बड़ी बात ध्यान देने वाली यह हैं कि यह रेल ट्रैक पिकनिक के लिये बहुत ही आनंदमय और रोमांच से भरपुर हैं। तो चलिये फिर मेरे साथ कम बजट की छोटी सी यात्रा पर-
आज का पूरा सफर एक ट्रेन की यात्रा हैं, जिसे पातालपुरी- कालाकुंड हैरिटेज ट्रेन के नाम से जानते हैं, भारत में हेरिटेज की कोई कमी नही हैं, बस एक्सप्लोर करने की देरी हैं।
जी हाँ, आप बिल्कुल सही सोच रहे हैं कि क्या ट्रेन में केवल घूमना हैं?
हम आपको पूरी जानकारी इस ट्रेन का, आस- पास के प्राकृतिक सौंदर्य का, समय का और खाने- पीने का देंगे लेकिन
उसके लिए आपको आज पूरे दिन मेरे साथ रहना पड़ेगा तो चलिए शुरू करते हैं आज की यात्रा-
इंदौर कहे या मिनी बॉम्बे
मध्य प्रदेश की आर्थिक राजधानी तथा मिनी मुंबई कहा जाने वाला शहर इंदौर (भारत का सबसे साफ- सुथरा शहर) जो प्राकृतिक रूप से और कई झरनों के लिए प्रसिद्ध है। इसी जिले के अंतर्गत मात्र 20 से 25 KM की दूरी पर स्थित एक जगह जिसका नाम " महू " हैं, से यह यात्रा शुरू होकर पातालपानी होते हुए कालाकुंड तक जाती हैं।
इस जगह से उसी दिन 2 घण्टे रुक कर कालाकुंड से वापस उसी रास्ते से होते हुये महू यानी डॉ अम्बेडकर नगर यात्रा समाप्त हो जाती है।
अब 'महू' रेलवे स्टेशन का नाम बदलकर 'डॉ अम्बेडकर नगर' हो गया हैं
भारत के संविधान निर्माता और भारत रत्न से सम्मानित डॉ भीमराव अंबेडकर का 14 अप्रैल, 1891 को मध्य प्रदेश के महू नामक स्थान पर हुआ था। इनका अन्य नाम बाबा साहब या पूरा नाम डॉ भीम राव रामजी अम्बेडकर हैं।
इन्ही के सम्मान में महू का नाम बदलकर डॉ अम्बेडकर नगर कर दिया गया हैं और इसका जिला इंदौर हैं।
इस नगर का अपना रेलवे स्टेशन है, जिसका नाम महू से अब डॉ अम्बेडकर नगर हो गया हैं ( स्टेशन कोड- DADN) जो खंडवा से इंदौर तक के रेल रूट पर स्थित हैं।
डॉ अम्बेडकर नगर- पातालपानी- कालाकुंड स्पेशल हेरिटेज ट्रेन
मध्य प्रदेश पर्यटन और भारतीय रेलवे के सौजन्य से शुरू किया गया यह हेरिटेज ट्रेन प्राकृतिक सौंदर्य, वाटरफॉल तथा मनोरम हरे- भरे पहाड़ियों की सैर कराने के लिये हैं।
स्थानीय लोगो और देश के विभिन्न कोने से आये पर्यटकों के मध्य कुछ वर्षों में काफी लोकप्रिय हो गया हैं।
लगभग 140 वर्षो से अधिक पुराने रेल ट्रैक पर मीटर गेज की इस ट्रेन को आधुनिक रूप से दुल्हन की भांति सजाया गया हैं अर्थात
इस ट्रेन का आंतरिक साज सज्जा देखने लायक हैं। ट्रेन के पीछे लगे कैमरे से बाहर के सभी दृश्यों से अंदर बैठे हुये सैलानियों को एलसीडी के माध्यम से रूबरू कराता हैं।
मात्र एक दिन की यह यात्रा रोमांच और प्राकृतिक वादियों से भरा हुआ हैं। आप एक बार तो अवश्य ही इस ट्रेन से यात्रा करें, यकीन मानिये आप निराश तो होंगे ही नही।
यात्रा वर्णन विस्तार से
महू यानी डॉ अम्बेडकर नगर से प्रतिदिन सुबह 11:05 am पर यह हेरिटेज ट्रेन केवल 15 से 16 KM की दूरी 2 घण्टे में तय करती हुई अपने अंतिम पड़ाव कालाकुंड पहुँच जाती हैं, वहाँ लगभग 2 घण्टे रुक कर सैलानियों को घूमा कर वापस शाम को डॉ अम्बेडकर नगर आ जाती हैं।
आम भारतीय के बजट में आने वाली यह यात्रा खासा फैमिली के लिए पिकनिक स्पॉट से कम नही हैं।
इस यात्रा को आगे बढ़ाते हुये हम आपको छोटी से बड़ी हर जानकारी देने जा रहे हैं क्योंकि पूरी यात्रा के दौरान इसके चार महत्वपूर्ण स्टॉपेज हैं, जिसका वर्णन निम्नवत हैं
पातालपानी
जब ट्रेन डॉ अम्बेडकर नगर से चलती हैं, तो मात्र 6 KM की दूरी पर ही पहला स्टॉपेज पातालपानी आता हैं।
यहाँ पर ट्रेन लगभग 15 से 20 मिनट रुकती हैं, जिसमें पर्यटक साफ सुथरे और स्वच्छ वातावरण में बने स्टेशन परिसर को घूमते हैं, मानो जैसे कि कोई हिल स्टेशन पर आये हों।
खूबसूरत पेंटिंग की हुई दीवार और साथ में कलाकृतियों को बना कर स्टेशन को अत्यधिक लोकप्रिय बनाया गया हैं।
दुल्हन की भांति सजा हुआ यह रेलवे स्टेशन बरबस ही अपने ओर सभी को आकर्षित करती हैं।
कबाड़ हो गए वस्तुओं से सजावट के अनुरूप विभिन्न कलात्मक आकर प्रदान करके ऐसे रखा गया हो, जैसे कि मानो आपके आगमन पर अभिनंदन और वंदन कर रहे हों।
पातालपानी झरना
अगला दूसरा पड़ाव पातालपानी वाटरफॉल अर्थात झरने के पास कुछ देर के लिये रुकती हैं, तो लोगो में खासा उत्साह देखने को मिलता हैं। यहाँ पर लगभग 20 मिनट तक रुकती हैं ट्रेन।
पातालपानी झरना की ऊँचाई लगभग 300 मीटर की हैं। यहाँ बने हुए सेल्फी पॉइंट पर आकर लोग बिना फ़ोटो खींचे अपने को रोक नही पाते हैं।

इस झरने को लेकर एक कहानी भी प्रचलित हैं कि इस झरने का जल नीचे पाताल तक जाता हैं, जिसकी गहराइयों का पता आज तक नही चल सका हैं।
यहाँ से प्राकृतिक नज़ारे सभी को मंत्र मुग्ध कर देते हैं, मनो जैसे कि हिल स्टेशन पर आ गए हो। आज के भाग दौड़ की उबाऊ ज़िंदगी से थक कर कुछ पल शुकुन के बिताते हुये तथा पक्षियों के मधुर आवाज के साथ ताल मेल मिलाते हुये खूबसूरत वादियों में खो जाते हैं।
तब तक ट्रेन की सीटी अचानक लोंगो की तन्द्रा तोड़कर आगे बढ़ने के लिये आमंत्रण देती हैं।
ट्रेन अब अपने आगे के पड़ाव के लिये चलती हैं तो थोड़ी ही दूरी पर सुरंग में प्रवेश करती हैं, पूरे ट्रेन में कुछ देर के लिये अंधेरा छा जाता है,
जैसे कि मानो रात्रि का समय हो गया हैं। बच्चों के साथ बुढ़े भी बिना हल्ला किये बिना नही रहते और एक दूसरे का मनोबल बढ़ाते हुए ट्रेन की चाल के साथ अपनी चाल मिलाकर अपनी मंज़िल की ओर आगे बढ़ते जाते हैं।
रेलवे ओल्ड ब्रिज
थोड़े ही देर में ट्रेन बहुत ही पुराने रेल ब्रिज पर पहुँचती हैं तब ब्रिज से कुछ दूर पहले ट्रेन रुकती हैं, तो लोग अपने बोगी से उतर कर ट्रेन के इंजन पर चढ़ कर सेल्फी लेते हैं और फ़ोटो खिंचवाना नही भूलते हैं।

इस पूरे ट्रैक पर कुल छोटा और बड़ा मिलाकर 4 सुरंग पड़ती हैं, जिसमें सबसे लंबी सुरंग लगभग चार किलोमीटर (4 KM) की हैं, जिससे गुजरते समय का रोमांच पूछो मत क्या नज़ारा होता हैं।
कालाकुंड
अब समय अपने अंतिम पड़ाव का हैं, जिसका सबको बेसब्री से इंतजार था कि जल्दी से पहुँच कर अपना पिकनिक मनाया जाये, जी हाँ सही पकड़े अब आप कालाकुंड रेलवे स्टेशन पर पहुँच गये हैं।
यहाँ जगह- जगह सेल्फी पॉइंट, खाने-पीने तथा नाश्ते से लेकर लंच का अच्छा प्रबन्ध हैं।
बच्चों के लिए झूला तथा अन्य खेलने वाले स्पॉट और देखने लायक रेलवे का एक छोटा सा म्यूज़ियम भी हैं। कुल मिला कर पिकनिक की पूरी व्यवस्था हैं।
कालाकुंड का कलाकंद बहुत प्रसिद्ध हैं, आप जरूर टेस्ट करिये और खरीद कर भी ले जाइये ताकि इसका स्वाद घर पर भी ले सके।
यही पास में एक नदी बहती हैं जिसे पार कर के एक पुराना मन्दिर का दर्शन भी किया जा सकता हैं। कुछ लोग तो नदी में नहा कर भी अपनी मौज मस्ती को पूरा करते हैं।
आस- पास का प्राकृतिक नज़ारा केवल हिल स्टेशन की याद दिलाता हैं क्योंकि दूर- दूर तक फैले देवदार के ऊंचे पेड़ मानो की आपसे कुछ कहना चाहते हो।
कुल 2 घण्टे के ठहराव के बाद अब वापसी का समय हो जाता हैं, तो वापस आते समय ट्रेन में एक और इंजन लगाया जाता हैं ताकि चढ़ाई में कोई दिक्कत न हो।
इस पूरे ट्रैक में कई मोड़ आते हैं, जो लगभग 100 से 120 डिग्री पर घूमे हुए हैं। अगल- बगल हरे- भरे जंगली फलों और फूलों से लदे पेड़, बहती नदी तथा झरने ऐसी सीनरी बनाते हैं, जो हमेशा हम अपने लैपटॉप और कंप्यूटर देखते हैं।
सच पूछो तो जन्नत से कम नही हैं, यहाँ का वातावरण। 4 से 5 घण्टे के इस अदभुत सफर में कई यादें दिल में अपनी छाप छोड़ जाती हैं।
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हेरिटेज ट्रेन से सफर करने का सही समय
यहाँ का मौसम गर्मी में भी सुहाना रहता हैं, परन्तु गर्मी के समय झरनों में पानी न के बराबर रहता हैं। फिर आप के जाने का समय या तो सर्दी या फिर बरसात सबसे अच्छा मौसम हैं।
बरसात में इधर का वातावरण और भी हरा- भरा रहता हैं। सच कहें तो घूमने का असली मज़ा बरसात में हैं, लेकिन ध्यान दे कि बरसात में यहाँ पग- पग पर फिसलन मिलेगा तो ऐसे में बच्चों पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत हैं। बाकी घूमने का पूरा आनंद लेंगे, जो जीवन भर याद रहेगा।
हेरिटेज ट्रेन की टिकट की बुकिंग कैसे करें?
महू रेलवे स्टेशन पर ट्रेन लगने से 3 घण्टे पहले से शुरू हो कर ट्रेन के छूटने से 10 मिनट पहले तक टिकट की बुकिंग, स्टेशन के बुकिंग काउंटर से कर सकते हैं।
हेरिटेज ट्रेन की टिकट का किराया प्रति व्यक्ति बहुत कम हैं, जो कोई भी पे कर सकता हैं, यहाँ हम किराया का जिक्र इसलिए नही कर रहे हैं कि समय- समय पर रेलवे इसके फेयर में कुछ मामूली सा बदलाव करती रहती हैं।
तब कब जा रहे हैं? पिकनिक मनाने, जल्दी से प्लान बना कर घूम कर आइये और अपना अनुभव साझा करिये ट्रिपघूमों के साथ हमें कमेंट्स कर के हमें आपके कमेंट्स का बेसब्री से इंतजार रहेगा।
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